हार्मोनियम पर मचलती अंगुलियों को देख मैंने एक बार पूछ ही लिया था...सर ये पेटी बजाना आपने किस उम्र से सीखना शुरू कर दिया था। हंसते हुए बोले- गोविंदा, मैंने कभी किसी वाद्ययंत्र को बजाने की औपचारिक शिक्षा नहीं ली, बस देखता गया और सीखता गया। पाठ के दौरान वे जैसे प्रभु में एकाकार हो जाते थे। सेवानिवृत्ति के बाद व्यवसाय भी कागज, कलम का चुना। पुष्पगोरनी एेसी दुकान थी, जहां से सामान के साथ उनकी मुस्कान मुफ्त में मिलती थी। यही पुष्पगोरनी प्रकाशन में बदला। लेखन सामग्री के अलावा उनका प्रयास होता, उच्चकोटि का साहित्य शहर के शब्द प्रेमियों को उपलब्ध करवाना।