छोटे दादाजी अर्थात हरिहरानंदजी महाराज जिन्हें विष्णु स्वरूप माना गया है, वे अखंड धूनी के प्रणेता शिव स्वरूप श्री केशवानंदजी महाराज के परम शिष्य थे। श्री छोटे दादाजी ने अनेक सेवा विधान बनाए, जो उनकी आज्ञा स्वरूप हैं। आज भी तमाम सेवा विधान को मर्यादित ढंग से निर्वहन किया जाता हैं। कड़ाके की ठंड हो या बारिश। प्रतिदिन प्रात: 4.30 बजे समाधि सेवा होती है। ब्रह्ममुहूर्त में नर्मदाजल, गंगाजल और स्नान के निमित्त आश्रम के ही सुरक्षित कूप से जल लाकर दोनों समाधि देवता का स्नान होता है। स्नान पश्चात मुलायम तौलिए से समाधि के जल को पोंछा जाता हैं। रुद्राक्ष की मालाएं, पुष्प मालाओं से समाधि शंृगार होता है। इसी समय छोटे भंडार से बनाया गया नैवेद्य समाधि देवता को अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात ब्रह्ममुहूर्त का पूजन व आरती होती है। प्रात: 8 बजे प्रात:कालीन विस्तृत पूजन दिव्य मंत्रों के साथ होता है एवं उसके बाद प्रात: कालीन बड़ी आरती होती है। श्री दादाजी धूनीवाले की आरती के बाद अखंड धूनी का पूजन आरती और फिर श्री छोटे दादाजी की संक्षिप्त आरती होती है और फिर बड़े दादाजी के यहां स्त्रोतवाचन व दादाजी नाम होता है। प्रात:कालीन पूजा पश्चात पुन: समाधि सेवा होती है। दोपहर 3 बजे पुन: दोनों समाधियों पर स्नान गंगाजल, नर्मदाजल व कूप जल से होता है। समाधि स्नान पश्चात शृंगार व सायंकालीन संक्षिप्त आरती होती है। रात्रि 8 बजे विस्तृत पूजन दिव्य मंत्रों के साथ और फिर बड़ी आरती होती है।