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भज लो दादाजी का नाम भज लो हरिहरजी का नाम 

खंडवा के दादाजी दरबार मेें भक्त असीम श्रद्धा के साथ जुटते हैं। गुरु पूर्णिमा पर यह आंकड़ा लाखों में पहुंच जाता है। भक्त भज लो दादाजी का नाम.. भज लो हरिहरजी का नाम गीत सामूहिक रूप से गुनगुनाते हुए किलोमीटर लंबी अपनी यात्रा पूरी कर लेते हैं।

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Rajiv Jain

Jul 10, 2017

dhuniwale dadaji khandwa mp3 mp song

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खंडवा. खंडवा के दादाजी दरबार मेें भक्त असीम श्रद्धा के साथ जुटते हैं। गुरु पूर्णिमा पर यह आंकड़ा लाखों में पहुंच जाता है। भक्त भज लो दादाजी का नाम.. भज लो हरिहरजी का नाम गीत सामूहिक रूप से गुनगुनाते हुए किलोमीटर लंबी अपनी यात्रा पूरी कर लेते हैं। दादाजी के दरबार और उनके भक्तों में एक खास तरह का अनुशासन होता है। हजारों हजार भक्तों को कंट्रोल करने के लिए किसी भी तरह की प्रशासनिक व्यवस्था की जरूरत नहीं होती है। भक्तों का भी ऐसा ही मानना है कि दादाजी महाराज ही सारी व्यवस्थाओं को खुद अंजाम देते हैं। इसलिए ट्रस्ट को भी अलग से व्यवस्था या इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को किसी तरह की जिम्मेदारी नहीं देनी होती।



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धूनीवाले दादाजी से निराला कोई और नहीं...
जय जय बोलो, दादाजी की जय बोलो
दीवाना तेरा आया
खोल दे नसीब
दादाजी सरकार तेरे दीवाने आए हैं
दादा धाम है न्यारा
श्री दादा धूनी वाले
गुरु पूर्णिमा की रात सुहानी



सेवा विधान का पालन
छोटे दादाजी अर्थात हरिहरानंदजी महाराज जिन्हें विष्णु स्वरूप माना गया है, वे अखंड धूनी के प्रणेता शिव स्वरूप श्री केशवानंदजी महाराज के परम शिष्य थे। श्री छोटे दादाजी ने अनेक सेवा विधान बनाए, जो उनकी आज्ञा स्वरूप हैं। आज भी तमाम सेवा विधान को मर्यादित ढंग से निर्वहन किया जाता हैं। कड़ाके की ठंड हो या बारिश। प्रतिदिन प्रात: 4.30 बजे समाधि सेवा होती है। ब्रह्ममुहूर्त में नर्मदाजल, गंगाजल और स्नान के निमित्त आश्रम के ही सुरक्षित कूप से जल लाकर दोनों समाधि देवता का स्नान होता है। स्नान पश्चात मुलायम तौलिए से समाधि के जल को पोंछा जाता हैं। रुद्राक्ष की मालाएं, पुष्प मालाओं से समाधि शंृगार होता है। इसी समय छोटे भंडार से बनाया गया नैवेद्य समाधि देवता को अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात ब्रह्ममुहूर्त का पूजन व आरती होती है। प्रात: 8 बजे प्रात:कालीन विस्तृत पूजन दिव्य मंत्रों के साथ होता है एवं उसके बाद प्रात: कालीन बड़ी आरती होती है। श्री दादाजी धूनीवाले की आरती के बाद अखंड धूनी का पूजन आरती और फिर श्री छोटे दादाजी की संक्षिप्त आरती होती है और फिर बड़े दादाजी के यहां स्त्रोतवाचन व दादाजी नाम होता है। प्रात:कालीन पूजा पश्चात पुन: समाधि सेवा होती है। दोपहर 3 बजे पुन: दोनों समाधियों पर स्नान गंगाजल, नर्मदाजल व कूप जल से होता है। समाधि स्नान पश्चात शृंगार व सायंकालीन संक्षिप्त आरती होती है। रात्रि 8 बजे विस्तृत पूजन दिव्य मंत्रों के साथ और फिर बड़ी आरती होती है।


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मौसम के हिसाब से रिजाई या कूलर
बड़े दादाजी की आरती के बाद अखंड धूनी और अंत में छोटे दादाजी का पूजन आरती होकर समाधि पर नैवेद्य अर्पित होता है। यदि मौसम ठंड का है, तो रात्रि में मौसम के अनुरूप रजाई, कम्बल, गर्म शाल दादाजी को ओढाई जाती है। गर्मी के मौसम में खस-खस के टट्टे, कूलर लगाए जाते हैं। हाथ से पंखा करने वाले प्राचीन समय के आकर्षक पंखेनुमा हवा के लिए रस्सी बंधे पंखे भी है, जिसे खींचकर सेवा आज भी होती है।



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तीन दिन नहीं रुकी थी बारिश
छोटे दादाजी के पास भी भक्तजन अपनी अर्जी लेकर आते थे। 1941 की एक घटना है। उस समय में नामी वकील सुब्बाराव की पत्नी दरबार आई और आंवले के पेड़ के नीचे बैठै छोटे दादाजी से खूब शिकायत की कि आप अगर भगवान हो तो हमारी सुनो। खंडवा में पानी नहीं बरस रहा, आप बरसाओ। दादाजी बोले इसमें मैं क्या कर सकता हूं। मैं तो संन्यासी ठहरा। ज्यादा ही है, तो जा दो आने का गुगल और आठ आने का सिंदूर ले आ। वह महिला शिकायत के बाद वहां से चली गई। मगर दादाजी ने उसी स्थान पर हवन किया और देखते ही देखते जमकर बारिश शुरु हो गई। बारिश भी ऐसी की तीन दिन तक रुकी नहीं।

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