बांध के डूब की जद में बड़वानी, धार, खरगोन और आलीराजपुर जिले के 178 गांव आ रहे हैं। इनमें कुछ गांवों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर गांवों में मुआवजा वितरण में गंभीर लापरवाही बरती गई है। वहीं भ्रष्टाचार के ऐसे मामले सामने आएं है कि पूरे के पूरे गांव को ही मुआवजा नहीं दिया गया। धार जिले के कोठड़ा गांव को ही लें....कोठड़ा के 200 परिवारों के घर का प्रत्येक सदस्य एक-एक दिन इस दर्द में गुजार रहा है कि कल क्या होगा? बच्चों को क्या खिलाएंगे? परिवार कैसे चलाएंगे? डूब प्रभावितों के मुआवजा वितरण में भ्रष्टाचार का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता। सबसे बड़ी बात वर्ष 2001 में सर्वे के दौरान अफसरों ने इस गांव को ही डूब प्रभावित नहीं माना। आज स्थिति ये है कि परिवारों के सामने दो जून की रोटी और छत की तलाश है। यहां बड़ा सवाल ये है कि इस गंभीर लापरवाही के बाद भी न तो जनप्रतिनिधि आगे आए और न ही वरिष्ठ अफसरों ने कोई सुध ली? जो परिवार आज हंसते-खेलते हुए जीवन गुजार रहे हैं और कल उनके लिए छत तक नसीब न होगी, इसका जिम्मेदार कौन? वहीं बड़वानी जिले के 46 डूब प्रभावित गांवों में 1300 परिवार ऐसे हैं जिनके घर डूबने की स्थिति में उन्हें रहने के लिए छत तक नहीं है और न ही टीनशेड में व्यवस्था की गई है? इस सबके बाद भी इनके दर्द को न तो अफसर मानने को तैयार हैं और न सरकार। यदि डूब प्रभावितों ने आंदोलन की राह पड़की है तो इसके पीछे उनका दर्द है, पीड़ा है और छलावा है। इनकी समस्या और पीड़ा जब प्रशासनिक अफसर और सरकार नहीं समझेगी तो कौन समझेगा? गांव खाली करने की अंतिम घडिय़ां चल रहीं हैं और इनकी फिक्र न तो प्रशासन कर रहा है और न ही सरकार। लापरवाही की हद यही नहीं रुकती... सरकार की घोषणा के अनुसार मकान खाली करने वाले परिवारों को ८० हजार और घर बनाने के लिए १.४० लाख रुपए मिलना हैं। इस घोषणा पर भरोसा करके कुछ लोगों ने पुराने मकान तोड़ लिए, लेकिन उन्हें आज तक रुपए ही नहीं मिले हैं। अब स्थिति ये है कि बारिश में सिर ढंकने के लिए न छत है और न पैसा जिससे कि नया घर बसा सकें। मजबूरन इन्हें किराए के मकान या रिश्तेदारों के यहां शरण लेना पड़ रही है।