खंडवा. भामगढ़ के अस्तित्व को बचाने के लिए हलमा का आहृवान किया गया है। इस बारे में शनिवार को डॉ. दीपमाला रावत, विषय विशेषज्ञ जनजाति प्रकोष्ठ राज भवन भोपाल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि झाबुआ की भील परंपरा हलमा से जनभागीदारी के जरिए पर्यावरण संरक्षण के प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए 21 जनवरी को खंडवा जिले के भामगढ़ से निमाड़ में हलमा की शुरूआत होगी। इस आयोजन में पदमश्री महेश शर्मा भी आएंगे। डॉ. रावत ने बताया कि भामगढ़ गांव के एक किनारे से भाम नदी निकलती है और दूसरे किनारे पर सुक्ता की धारा है। टीले पर बसे इस गांव की मिट्टी बसरात होने पर नदियों के रास्ते बहने से अब भामगढ़ का अस्तित्व खतरे में है। इसलिए मनरेगा के तहत चल रहे काम में जनभागीदारी के लिए हलमा की शुरूआत की जा रही है। मिट्टी का कटाव रोकने के लिए नदी के किनारों पर बांस के पौधे रोपे जाएंगे। उन्होंने बताया कि यह आयोजन पूरी तरह गैर राजनैतिक है। यहां दो घंटे के श्रमदान के लिए सभी वर्गों के व्यक्ति शामिल हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि करीब पांच हजार बांस रोपने का लक्ष्य रखा गया है। बांस के प्रत्येक पौधे भामगढ़ के स्व सहायता समूहों को गोद दे दिए जाएंगे। तीन साल बाद जब बांस बड़ा होगा तो इससे होने वाली आय का 80 फीसदी हिस्सा स्व सहायता समूह रखेगा और 20 प्रतिशत हिस्सा ग्राम पंचायत के विकास में काम आएगा। आदिवासी बाहुल्य इस पंचायत में पांच गांव आते हैं, जिनकी आबादी करीब पांच हजार है। हलमा की शुरूआत में हम फाउंडेशन, रेवा फाउंडेशन समेत खंडवा की कई संस्थाएं भी योगदान देने के लिए आगे आई हैं।