
Jyeshtha Shukla Purnima today
खंडवा. ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा वट सावित्रि व्रत बुधवार को है। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान हैं। पं अंकित मार्कण्डेय के अनुसार वट पूर्णिमा व्रत माताओं, महिलाओं को सौभाग्य प्रदान करने, संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। आध्यात्मिक दृष्टि से इस वट वृक्ष का बहुत महत्व बताया गया है।
शास्त्रों के अनुसार वट वृक्ष की पूजा करने वाली महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए और उन्हें संतान सुख प्राप्त हो इसलिए यह व्रत करती है। वट वृक्ष की शाखाओं और लटों को सावित्री का रूप माना जाता है। देवी सावित्री ने कठिन तपस्या से अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थीं। पं. मार्कण्डेय ने बताया वट वृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना जाता है। यह एकमात्र ऐसा वृक्ष है। जिसे तीनों देवों का रूप माना गया है। इसलिए वट वृक्ष की पूजा करने से तीनों देवता प्रसन्न होते हैं। सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
दर्शनिक दृष्टिकोण से दीर्घायु व अमरत्व बोध के प्रतीक
दार्शनिक दृष्टि से वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व बोध के प्रतीक के रुप में भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना।
ये है वट व्रत का महत्व
सुबह स्नान कर साफ वस्त्र और आभूषण पहनें। व्रत के दिन वट वृक्ष के नीचे अच्छी तरह साफ सफाई करें। वृक्ष के नीचे सत्यवान और सावित्री की मूर्तियां स्थापित करें और लाल वस्त्र चढ़ाएं। बांस की टोकरी में 7 तरह के अनाज रखें और कपड़े के दो टुकड़े से उसे ढक दें। एक और बांस की टोकरी लें और उसमें धूप, दीप कुमकुम, अक्षत, मोली आदि रखें। वट वृक्ष और देवी सावित्री और सत्यवान की एक साथ पूजा करें। इसके बाद बांस के बने पंखे से सत्यवान और सावित्री को हवा करें और वट वृक्ष के एक पत्ते को अपने बाल में लगाकर रखे। इसके बाद प्रार्थना करते हुए लाल मौली या सूत के धागे को लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करें। पंडित और घर के बड़ों का आर्शीवाद लें, मिठाई खाकर अपना व्रत खोलें।
Published on:
26 Jun 2018 02:44 pm
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