18 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

नायक पैदा नहीं होते, विचारों से बनाए जाते हैं: निवेदिता

धर्म से बढ़कर है देश, एकात्मता का भाव होना जरूरी

2 min read
Google source verification

खंडवा

image

Rahul Singh

Oct 22, 2018

Lecture wreath

Lecture wreath

खंडवा. राष्ट्र किसी भी धर्म से ऊपर होता है, राष्ट्रभक्ति के लिए मन में एकात्मता का भाव होना जरूरी है। दूसरे देश और दूसरे धर्म की होने के बाद भी स्वामी विवेकानंद की मानसपुत्री भगिनी निवेदिता की हम आज 150वीं जयंती मना रहे है तो इसका सिर्फ एक ही कारण है, उनकी राष्ट्रभक्ति।
उन्होंने अपना धर्म निभाते हुए भी इस देश की गौरवशाली संस्कृति से प्रभावित होकर तमाम सुख सुविधाओं को त्यागकर विपरीत परिस्थितियों में भी भारत के लोगों की सेवा को चुना। ये बात रविवार को गौरीकुंज सभागृह में आयोजित एकात्मता विषय पर व्याख्यान माला में पद्मश्री निवेदिता भिड़े ने कही।
स्वागत भाषण राजीव उपरित ने दिया। अतिथि परिचय ब्रह्मानंद पाराशर ने दिया। मंच पर प्रज्ञा प्रवाह की ओर से गल्र्स कॉलेज प्राचार्य डॉ. गीताली सेनगुप्ता, विवेकानंद केंद्र अध्यक्ष पूनम भारती और विवेकानंद केंद्र विभाग प्रमुख शामकांत देशपांडे उपस्थित थे। आयोजन शाम 7.30 बजे से रात 9.30 बजे तक चला। कार्यक्रम के अंत में उपस्थितजनों ने अपनी जिज्ञासाओं को भी शांत किया। राष्ट्रगान के साथ ही सभी को देशहित में आगामी चुनाव में अवश्य रूप से मतदान करने का संकल्प दिलाया गया। आभार आनंद फेंडसे द्वारा व्यक्त किया गया।
हृदय के समान 24 घंटे काम करो
निवेदिता ने कहा कि समाज के लिए ह्दय के समान काम करने की आवश्यकता है। भारत में आज भी जिन विदेशियों पर गर्व किया जाता है उनमें भगिनी निवेदिता का नाम पहली पंक्ति में आता है, जिन्होंने न केवल भारत की आजादी की लड़ाई लडऩे वाले देशभक्तों की खुलेआम मदद की बल्कि महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। मूल रूप से आयरिश मार्गरेट नोबल भगिनी निवेदिता का भारत से परिचय स्वामी विवेकानन्द के जरिए हुआ। स्वामी विवेकानन्द के आकर्षक व्यक्तित्व, निरहंकारी स्वभाव और भाषण शैली से वह इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने न केवल रामकृष्ण परमहंस के इस महान शिष्य को अपना आध्यात्मिक गुरु बना लिया बल्कि भारत को अपनी कर्मभूमि भी बनाया।


राष्ट्रसेवा के लिए करना पड़ता खुद को समर्पित
राष्ट्रसेवा के लिए स्वयं को राष्ट्र के प्रति समर्पित करना पड़ता है। ये भगिनी निवेदिता ने कर दिखाया। उन्होंने आह्वान किया कि देश के लिए पुरानी संकल्पनाओं को तोड़कर सामाजिक समरसता के लिए मनपूर्वक एकात्मता का भाव मन में लाना होता है। व्याख्यान के बाद हुए जिज्ञासा समाधान में कुछ लोगों ने प्रश्न किया वो क्रिश्चन होने के बाद भी भारत में क्यों याद की जाती है। उन्होंने कहा भारतीय संस्कृति से प्रभावित होने के बाद भी उन्होंने अपना धर्म और हिंदू धर्म को निभाया। विवेकानंद ने भी कभी अपना धर्म त्यागने को नहीं कहा, जिस स्थिति में राष्ट्र है उसे अपनाकर योगदान देने को कहा। उनके लिए धर्म से भी ऊपर भारत राष्ट्र था। नायक पैदा नहीं होता, नायक राष्ट्रीय विचारों से बनाए जाते है।