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रोचक: 1200 मीटर की ऊंचाई में भी आसानी से उड़ता है ये पक्षी

नेशनल ईगल सेव डे आज,कीटनाशक दवाओं से घट रही बाज की संख्या

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National Eagle Save Today

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खंडवा. प्राचीन काल से साहस और शक्ति का प्रतीक माना जाने वाला पक्षी बाज का पौराणिक के साथ-साथ वैज्ञानिक महात्व भी है। पर्यावरण संतुलन में सहायक इस पक्षी का रहना बहुत ही जरूरी है।
1200 मीटर की ऊंचाई तक आसमान की सैर करने वाले शिकारी पक्षी बाज के उडऩे की रफ्तार 160 किमी प्रति घंटा है। आज नेशनल ईगल सेव डे है। जानकारी के मुताबिक शहर में बाज की प्रजाति न के बराबर हैं, लेकिन जंगलों में कॉमन ईगल देखने को मिलता है। यह बाज ज्यादातर कीड़े खाता हंै। सर्दियों के मौसम में भी हिमालय क्षेत्र से शहर के जंगलों में बाज आ जाते हैं, जो नागचून के अलावा इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांधों के आसपास भी मार्र्श हैरियर प्रजाति का बाज देखने को मिलता है।
वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञों ने बताया शहर में शिकरा और वल्चर प्रजाति का पक्षी ज्यादातर देखने को मिलता है और यह बिल्कुल बाज की तरह नजर आता है। शिकरा जब उड़ता है तो बिल्कुल बाज की तरह नजर आता है, इसलिए इसे लोग सामान्यत: बाज बोल देते हैं। हिमालय ग्रिफिन कल्चर काले रंग का होता है और गर्दन सफेद रंग की होती है। शहर के जंगलों में कॉमन ईगल है।
ऐसे पड़ रहा पक्षियों का असर
वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञों का मानना है जानवरों और इंसानों को दी जाने वाली दर्द निवारक दवाएं और अनाज में रखे जाने वाले कीटनाशक, पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। मनुष्य या पशु को जो दर्द निवारक दिया जाता है उसमें डाइक्लोफेनेक सोडियम होता है। यह दर्द तो खत्म कर देता है, लेकिन इंसान या पशु के टिश्यू में ही रह जाता है। मौत होने की स्थिति में शव अगर खुला रहता है और गिद्ध, बाज इन्हें खाते हैं तो यह रसायन पक्षी के शरीर में पहुंच जाता है। डाइक्लोफेनेक सोडियम इन पक्षियों के लिए टॉक्सिन का काम करता है और उनके लीवर पर असर डालता है, जिससे इनकी मौत हो जाती है।
समुद्री इलाके में ज्यादा पाए जाते हैं बाज
पर्यावरण संतुलन में बाज की अहम भूमिका है। वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि मछली इसका मुख्य आधार है। पानी में यह मछलियों की संख्या को नियंत्रित करता है। जब ऐसे जीव-जन्तुओं की तादाद कम होती है तो पर्यावरण भी संतुलित रहता है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण कम होता है।