
कोविड काल में बच्चों को निमोनिया के खतरे से बचाने में मददगार है यह टीका
खंडवा. चिकित्सा जगत की सबसे बड़ी खोज वैक्सीन को माना जाता है। इससे आज गंभीर और घातक बीमारियों का इलाज संभव हो पाया है। खासतौर पर जन्म के बाद शिशुओं के लिए यह काफी जरूरी हो गया है। इसके लिए केंद्र सरकार ने मिशन इंद्रधनुष प्रारंभ किया है।
प्रति वर्ष प्रति बच्चे पर सरकार करीब 37000 रुपए खर्च कर रही है। निजी अस्पताल में यही टीके लगवाने में अधिक खर्च आता है। मिशन इंद्रधनुष का उद्देश्य उन बच्चो का टीकाकरण करना है, जिन्हें यह टीके नही लगे हैं। बच्चों के टीकाकरण के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार काम कर रहा है, जिससे बच्चों के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में हर मंगलवार और शुक्रवार को बच्चों के टीके लगाए जाते हैं। शहर की आंगनवाडिय़ों में सप्ताह के चार दिन टीकाकरण किया जा रहा है।
समय के साथ लगने चाहिए बच्चों को यह टीके...
- जन्म के तुरंत बाद बच्चे को हेपेटाइटिस-बी व जीरो डोज पोलियो का टीका लग जाना चाहिए।
- बच्चे को एक वर्ष की आयु तक बीसीजी का टीका लगाया जाना चाहिए जो टीबी जैसी घातक बीमारी से बचाता है।
- बच्चा जब 6 सप्ताह का हो जाए तो उसे रोटावायरस, पेंटावैलेंट, पीसीवी निमोनिया का टीका लगाना चाहिए।
- ढाई माह होने पर पोलियो, रोटावायरस, पेंटावैलेंट की दूसरी खुराक दी जानी चाहिए।
- साढ़े तीन माह पर फिर पोलियो, रोटावायरस, पेंटावैलेंट की तीसरी व पीसीवी की दूसरी खुराक दी जानी चाहिए।
- 9 माह पर विटामिन ए का टीका दिया जाना चाहिए, जिससे बच्चों के शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता भी बढ़ती है। इसके साथ ही खसरे का टीका भी लगया जाना चाहिए।
- 16 से 24 माह के बच्चों को विटामिन-ए की दूसरी और पोलियो बूस्टर खुराक तथा डीपीटी के टीके से शिशु का तीन तरह के संक्रामक रोग (डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनेस) से बचाव किया जाता है।
- 5 से 6 वर्ष पर डीपीटी की दूसरी खुराक दी जानी चाहिए।
निजी से ज्यादा बेहतर सरकारी में सुविधा
एक मां अस्मा ने कहा कि बच्चे की डिलीवरी एक निजी अस्पताल में हुई थी, जिस दिन बच्चे का जन्म हुआ उस दिन वहां टीका नही लगता है, जब मां ने इसका विरोध किया तो निजी अस्पताल के डॉक्टर्स ने कहा आपको जल्दी है तो आप सरकारी अस्पताल चले जाओ। ऐसे में 11 दिन बीत जाने के बाद मां बच्चे को लेडी बटलर हॉस्पिटल लेकर आई। शोधार्थी शिखर नेगी ने बताया कि यहां एएनएम अकिला खान ने बच्चे को जीरो डोज पोलियो व बीसीजी लगाया। उन्होंने कहा हेपेटाइटिस-बी इसलिए नहीं लगाया क्योंकि 11 दिन का बच्चा हो गया है।
टीकों का रखरखाव होता है बेहद खास...
टीका बहुत नाजुक जैविक पदार्थ है, यह समय के साथ कमजोर होते हैं। अर्थात बीमारी को रोकने की क्षमता कम होती जाती है । इसलिए प्रत्येक टीके को उचित तापमान पर ही रखा जाना चाहिए। सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर दो अलग अलग तरह के फ्रीज रखे गए हैं।
पहला-आइएलआर
इस रेफ्रिजरेटर का तापमान 2 डिग्री से 8 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है, जिसमे टीकों का भंडारण किया जाता है। यह इतना सुविधाजनक है कि अगर यहां बिजली आपूर्ति ठप भी हो जाए तो 72 घंटों तक इसे ठंडा रखा जा सकता है। इस रेफ्रिजरेटर का निचला तल सबसे ठंडा होता है, इसलिए टी-सीरिज के टीको को नीचे नहीं रखना चाहिए, अन्यथा जम कर खराब हो जाएंगे। इन टीकों को रेफ्रि जरेटर के साथ दी गई टोकरी मे रखना चाहिए।
दूसरा: डीप फ्रीजर
इस रेफ्रिजरेटर का तामपान माइनस 25 डिग्री तक होता है, इसमे आइस पैक या बर्फ से जमी पतली बोतल को रखा जाता है। इस बोतल का उपयोग टीकों को ठंडा रखने के लिए किया जाता है। टीकों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए वैक्सीन कॅरियर का इस्तेमाल किया जाता है। इसे बड़ी सावधनी से लेकर जाया जाता है, क्योंकि इस वैक्सीन कॅरियर का तामपान उतना ही रहना चाहिए, जितना टीके का उचित तापमान होता है। इसमे 4 आइस पैक डीप फ्रीजर से निकालकर कंडिशन किया जाता है, उसके बाद वैक्सीन कॅरियर में रखा जाता है। इस वैक्सीन कॅरियर का तामपान 2 डिग्री से 8 डिग्री तक होता है और यह 24 घंटों तक इसी तापमान में रह सकता है। यह मध्यप्रदेश के हर छोटे बड़े परिवार के लिए नि:शुल्क होता है।
- टीकाकरण को लेकर गंभीरता से कार्य किया जा रहा है। 15 साल तक आयु वर्ग के बच्चों के लिए टीके उपलब्ध हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों में जागरुकता आई है। जो अविभावक अपने बच्चों को किसी कारणवश आंगनवाड़ी और आशा सेंटर पर नहीं ला पाते हैं, उनके बच्चों को घर जाकर टीका लगाया जाता है।
अनिल तंतवार, जिला टीकाकरण अधिकारी
Published on:
17 Mar 2020 01:25 pm
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