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बेटी को लड़कों वाला नाम पसंद या लड़की का, यह फैसला मां-बाप ने उसपर छोड़ा

आमतौर पर लड़का और लड़की के बीच फर्क करना बेहद आसान होता है।

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Parenting

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हमारी सामाजिक परम्पराएं ***** के आधार पर फर्क कर बच्चों को सिखाती हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। बजाय इसके कि उनकी योग्यता क्या है और वे क्या कर सकते हैं। यह अवधारणा बच्चों एवं युवाओं दोनों के लिए ही नकारात्मक हैं।

आमतौर पर लड़का और लड़की के बीच फर्क करना बेहद आसान होता है। पहनावा, भाषा, पसंद, शारीरिक बनावट और दुनिया का हमें देखने का नजरिया चंद ऐसी कसौटियां हैं जो हम अक्सर दोनों लिंगों में भेद करने के लिए चुनते हैं। पुरुष के शरीर में भी अगर कोई स्त्री होने का अहसास करता है तो प्रकृति और कानून दोनों उसे इसकी आजादी देते हैं कि वो जिस तरहचाहे रह सकता है। अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में रहने वाले जेरेमी और ब्रायन ने अपने तीन साल के बच्चे का जेंडर (लिंग) निर्धारण का अधिकार उस पर ही छोड़ दिया।

उन्होंने बच्चे के ***** के बारे में सार्वजनिक रूप से किसी को भी जानकारी नहीं दी। फेसबुक पर दोनों ने लोगों से अपने तीन साल के बच्चे नाया को सिर्फ नाम से बुलाने का आग्रह किया। ताकि नाया लड़का या लड़की के फर्क के बिना अपनी जिंदगी जी सके। जेरेमी और ब्रायन ने सोचा कि ये उनके बच्चे का निर्णय होना चाहिए कि वो क्या कहलाना पसंद करेगा- एक लड़का या एक लड़की। अभिभावक इस बात पर भी ध्यान देने लगे हैं कि ***** आधारित भेदभाव और माता-पिता की आशाएं बच्चों पर कितना असर डालती हैं। सभी माता-पिता अपने बच्चों को खुश देखना चाहते हैं। लेकिन बहस इस बात पर है कि क्या हम अपने बच्चों की परवरिश आज के परिवेश के हिसाब से करेंगे या सदियों पुरानी परंपराओं के हिसाब से।

ऐसे मिली प्रेरणा
नाया के माता-पिता ने भी इन सभी बातों पर बहुत विचार-विमर्श किया। नाया के पिता जेरेमी ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्सुअल व्यक्तित्व के लोगों के साथ काम करते थे। इन लोगों के कटु अनुभवों ने पिता बनने के बाद जेरेमी को काफी चिंता में डाल दिया। जेरेमी को यह फिक्र सताने लगी कि कहीं बड़ा होने पर उनका बच्चा भी दबाव में आकर जन्म प्रमाण पत्र में लिखे ***** को ही स्वीकार करने को बाध्य महसूस न करे। इसलिए जेरेमी ने यह फैसला बच्चे पर ही छोडऩा उचित समझा।

नहीं किया कोई फर्क...
उन्होंने नाया को लड़का-लड़की दोनों की तरह पाला। नाया को कभी एहसास नहीं होने दिया कि उसकी पहचान क्या है। वे नाया को रिश्तेदारों की तस्वीरें दिखाकर उसे समझाते कि दादा खुद को पुरुष कहलाना पसंद करते हैं जबकि दादी को महिला कहलाने में रुचि है। ताकि नाया को अपना व्यक्तित्व निर्धारित करने में आसानी हो। दोनों का मानना था माता-पिता होने के नाते हमें कम से कम एक ईमानदार प्रयास तो करना चाहिए। समाज के नियम हर जगह लागू नहीं हो सकते।

जब नाया ने चुना...
एक दिन जेरेमी नाया और उसके डॉगी के साथ कमरे में खेल रहे थे। अचानक नाया ने कहा कि वह डॉगी है और अब से सब उसे डॉगी न कहकर उसका नाम लेंगे। जेरेमी ने बातचीत को जारी रखते हुए उन्होंने पूछा कि नाया जीवन भर क्या कहलाना पसंद करेगी। नाया ने कहा कि वो एक लड़की कहलाना पसंद करेगी। ब्रायन और जेरेमी कहते हैं कि वे नाया के किसी भी चुनाव पर खुश होते। क्योंकि वे बस इतना चाहते थे कि उनकी बेटी वो चुनें जो वो अपने बारे में दिल से महसूस करती है।


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