दूषित चिंतन का करे त्याग
कबीर आश्रम में संत गौरवदास के प्रवचन
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
मदनगंज-किशनगढ़.
आजादनगर स्थित कबीर आश्रम में चल रही चातुर्मास कथा के दौरान संत कबीर की वाणी बीजक के पावन प्रसंगों की व्याया करते हुए कथा व्यास संत गौरवदास ने कहा कि संग्रह और भोग में विवाद है कलह है परन्तु त्याग में सेवा और मीठा संवाद है। स्वार्थ के साथ संग्रह की भावना बढ़ती है तो आदमी पाप करता है। जीवन गुजर और उदर पोषण तो स्वभाविक परिश्रम करने से हो ही जाता है परंतु मन की हवस इन्सान को चैन से जीने नहीं देती है। पेट तो सबका भर जाता है पर पेटी आज तक किसी की नहीं भरी। जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं पर नियंत्रण रखेगा वही दूसरों की सेवा के लिये अपने धन का त्याग कर सकता है। दान धर्म सेवा परोपकार सहायता तभी हो सकते हैं जब मन में त्याग की भावना आएगी। प्रसन्न मन की ये पहचान है कि मन हर समय राग द्वेष विहीन चिन्तन करे। मन में छल कपट आपाधापी के विचार आते रहने से चित्त मलीन होता है और मलीन चित्त विषमतापूर्ण परिस्थितियों का निर्माण करता हैं। पापकर्मो के मूल में है दूषित चिन्तन। दूषित विचारों का त्याग ही पाप का त्याग है और पुण्य का बीजारोपण है। जीवन गुजर और उदर पोषण तो स्वभाविक परिश्रम करने से हो ही जाता है आदमी अनैतिक व्यवहार पेट भरने के लिये नहीं सेठ बनने के लिये करता है। संग्रह संग्रह के लिये नहीं होना चाहिये संग्रह खर्च के लिये होना चाहिये। जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं पर नियंत्रण रखेगा वही दूसरों की सेवा के लिये अपने धन का त्याग कर सकता है। दान धर्म सेवा परोपकार सहायता तभी हो सकते हैं जब मन में त्याग की भावना आयेगी। इस अवसर पर कबीर आश्रम सेवा समिति के अध्यक्ष बोदूराम कुमावत, उपाध्यक्ष राधेश्याम सैनी, महामंत्री कन्हैयालाल कुमावत, सचिव रामस्वरुप शर्मा, संगठन मं़त्री नाथूलाल कुमावत आदि उपस्थित रहे। महिला मण्डल की उपाध्यक्ष प्रेमदेवी ने बताया कि कबीर आश्रम में चलने वाली चातुर्मास कथा प्रतिदिन दोपहर 3 से 6 बजे तक होती है।
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