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निपाह को लेकर अलीपुर चिंडिय़ाखाना में अलर्ट जारी

पर्यटकों से जमीन पर गिरे फल न खाने अथवा जानवरों को न खिलाने का अनुरोध। जगह-जगह लगाया नोटिस।

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निपाह को लेकर अलीपुर चिंडिय़ाखाना में अलर्ट जारी

कोलकाता

जानलेवा वायरस निपाह को लेकर कोलकाता के अलीपुर चिंडिय़ाखाना में प्रबंधन की ओर से अलर्ट जारी किया गया है। चिंडिय़ाखाना प्रबंधन ने पर्यटकों को जमीन पर गिरे फल नहीं खाने अथवा जानवरों को नहीं खिलाने का अनुरोध किया है। प्रवेश द्वार समेत चिंडिय़ाखाना परिसर में जगह-जगह पर इस बावत नोटिस चस्पाया गया है। प्रबंधन की ओर से कहा गया है कि चमगादड़ के जूठे फल खाने से निपाह वायरस फैल रहा है। अलीपुर चिंडिय़ाखाना परिसर में आम, जामुन, अमरुद आदि की बड़ी संख्या में वृक्ष हैं। अक्सर पर्यटक जमीन पर गिरे फल उठा लेते हैं। लोगो फलों को स्वयं खाते हैं अथवा अपने बच्चों या फिर जानवरों को खिलाते हैं। इसे देखते हुए उक्त अलर्ट जारी किया गया है। उल्लेखनीय है कि निपाह वायरस को लेकर इन दिनों देश के कई राज्यों में आतंक फैला हुआ है। कोलकाता के आईडी अस्पताल में दो जने भर्ती है। दोनों को निपाह वायरस से पीडि़त होने का संदेह जताया जा रहा है। हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है।

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क्या है निपाह वायरस?
‘निपाह’ पशुओं से पशुओं, इंसानों और इंसानों से इंसानों में फैलने वाला लाइलाज, संक्रामक और घातक वायरस है। यह एक तरह का दिमागी बुखार है, जिसके लिए चमगादड़ जिम्मेदार है। निपाह वायरस संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ मनुष्य में आसानी से फैल जाता है। यह वायरस चमगादड़ों से फैलता है और इसका कोई वैक्सीन फिलहाल मौजूद नहीं है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक कमेटी बनाई है, जो बीमारी की तह तक जाने में जुटी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक निपाह एक ऐसा वायरस है, जो जानवरों से इंसानों में फैलता है। यह जानवरों और इंसानों दोनों में गंभीर बीमारियों की वजह बन सकता है। इस वायरस का मुख्य स्रोत फ्रूट बैट यानी वैसे चमगादड़, जो फल खाते हैं।
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क्या है लक्षण?
निपाह वायरस के लक्षण दिमागी बुखार की तरह है। बीमारी की शुरुआत सांस लेने में दिक्कत, भयानक सिरदर्द और बुखार से होती है, जिसके बाद दिमागी बुखार की चपेट में व्यक्ति आता है। बुखार, सिरदर्द, चक्कर, दिमाग में जलन, सांस लेने में तकलीफ, धुंधला दिखना, ब्रेन में सूजन, मानसिक भ्रम, कोमा और आखिर में मौत, इसके प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं। कुछ मामलों में रोगी को सांस संबंधित समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है। इसका संक्रमण किसी भी मनुष्य को 48 घंटे के भीतर कोमा में ले जा सकता है और 21 से 22 दिनों में जान तक जा सकती है। अभी तक ‘निपाह’ लाइलाज है। संक्रमित लोगों में कुछ उत्तम रोग प्रतिरोधक क्षमता के चलते इसकी चपेट से उबर भी जाते हैं। वैसे सतर्कता ही है इससे बचाव का उपाय है। नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज के पैथोलोजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कल्याण खान के मुताबिक ‘निपाह’ के संक्रमण का अभी तक इलाज विकसित नहीं हो पाया है। यह बहुत ही घातक होता है। इसकी चपेट में आने वाले ज्यादातर लोग जान से हाथ धो बैठते हैं। खुद की सशक्त रोग प्रतिरोधक क्षमता के चलते इसके संक्रमण से उबर भी जाते हैं, पर इस वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सतर्कता ही सबसे बेहतर उपाय है।
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इससे करें परहेज
संक्रमित पशुओं व इंसानों के सीधे संपर्क में नहीं आना, चमगादड़ों व सुअरों से सावधानी, कहीं भी गिरे फल और सब्जियों का सेवन नहीं करना, जानवरों, पक्षियों के खाए हुए निशान वाले यानी खुदे हुए फल-सब्जी का सेवन न करना,जहां चमगादड़ अधिक हो वहां आम, लीची व खजूर खाने से परहेज, आम, लीची व खजूर खाने में सावधानी बरतना।आम, लीची व खजूर के पेड़ पर चमगादड़ फलों को संक्रमित करते हैं, इसलिए उस संक्रमित फल के सेवन से खतरा अधिक बढ़ जाता है। फलों-सब्जियों को खूब अच्छी तरह धोकर खाएं। ताड़/खजूर के पेड़ पर चमगादड़ उसके रस को संक्रमित कर सकते हैं और उस संक्रमित रस के सेवन से व्यक्ति भी संक्रमित हो सकता है। विशेष ऐहतियात, खान-पान में जितनी ज्यादा हो उतनी सफाई, खुद, घर और आसपास सफाई का ख्याल रखना। जिन इलाकों में निपाह वायरस फैला है वहां जाने से बचें। केरल में फैले निपाह वायरस से बचाव के पक्ष में डॉक्टरों का कहना है कि लोगों को बचाव के उपाय के तहत केरल से आने वाले फलों के सेवन से परहेज करना चाहिए। उत्तर भारत में ज्यादातर केले केरल से ही आते हैं, इसलिए इन्हें खाना सेहत के लिए ठीक नहीं। खजूर और आम को धोकर खाएं।

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सबसे पहले पहचान 1998 में मलेशिया में हुई थी
इस वायरस की सबसे पहले पहचान 1998 में मलेशिया के काम्पुंग सुंगाई के निपाह इलाके में हुई थी। उस समय वहां दिमागी बुखार का संक्रमण था और यह बीमारी चमगादड़ों से इंसानों और जानवरों तक फैल गई। इस बीमारी की चपेट में आने वाले ज्यादातर लोग ***** पालन केंद्र में काम करते थे। यह वायरस ऐसे फलों से इंसानों तक पहुंचा, जो चमगादड़ों के संपर्क में आए थे।