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पश्चिम बंगाल में भी आपातकाल जैसे हालातः जगदीप धनखड़

इमरजेंसी का काला दौर हमें कई चीजों पर ध्यान केंद्रित करने की याद दिलाता है। पहली‌ लोकतंत्र की महत्ता, दूसरी मानवाधिकार का मूल्य और तीसरी मीडिया की स्वतंत्रता की जरूरत। अगर ममता बनर्जी नित पश्चिम बंगाल सरकार के शासन में स्थिति का आकलन करें तो पता लगेगा कि यहां भी हालात आपातकाल के जैसे हैं...

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पश्चिम बंगाल में भी आपातकाल जैसे हालातः जगदीप धनखड़

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कोलकाता

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने आपातकाल की बरसी पर गुरुवार को कहा कि बंगाल में भी हालात आपातकाल से कम बदतर नहीं है। सुबह राज्यपाल ने दो ट्वीट किया। उसमें उन्होंने लिखा है कि इमरजेंसी का काला दौर हमें कई चीजों पर ध्यान केंद्रित करने की याद दिलाता है। पहली‌ लोकतंत्र की महत्ता, दूसरी मानवाधिकार का मूल्य और तीसरी मीडिया की स्वतंत्रता की जरूरत। अगर ममता बनर्जी नित पश्चिम बंगाल सरकार के शासन में स्थिति का आकलन करें तो पता लगेगा कि यहां भी हालात आपातकाल के जैसे हैं। सच्चाई यह है कि आपातकाल लोकतंत्र और मानवीय मूल्यों के लिए विनाशकारी है। लोकतंत्र स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के बिना नहीं पनप सकता है। मौन और वैज्ञानिक रिगिंग लोकतंत्र के विध्वंसक हैं। लोगों को फिलहाल इसके लिए एकजुट होकर इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी। मुझे आपका समर्थन चाहिए।
उल्लेखनीय है कि 1975 में 25 जून को ही आधी रात के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था। विपक्ष के अधिकतर नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था और मीडिया पर सेंसरशिप लगा दिया गया था। सरकार की आलोचना करने वालों की गिरफ्तारियां होती थी और देशद्रोह की धाराओं के तहत मामले दर्ज किए जाते थे। इसकी बरसी की पूर्व संध्या पर भी राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने 10 बिंदुओं पर एक बयान जारी किया था, जिसमें बंगाल के वर्तमान हालात की तुलना आपातकाल से की थी और उसके खिलाफ युवाओं को एकजुट होने का आह्वान किया था।

में भी आपातकाल जैसे हालातः जरदीप धनखड़

कोलकाता
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने आपातकाल की बरसी पर गुरुवार को कहा कि बंगाल में भी हालात आपातकाल से कम बदतर नहीं है। सुबह राज्यपाल ने दो ट्वीट किया। उसमें उन्होंने लिखा है कि इमरजेंसी का काला दौर हमें कई चीजों पर ध्यान केंद्रित करने की याद दिलाता है। पहली‌ लोकतंत्र की महत्ता, दूसरी मानवाधिकार का मूल्य और तीसरी मीडिया की स्वतंत्रता की जरूरत। अगर ममता बनर्जी नित पश्चिम बंगाल सरकार के शासन में स्थिति का आकलन करें तो पता लगेगा कि यहां भी हालात आपातकाल के जैसे हैं। सच्चाई यह है कि आपातकाल लोकतंत्र और मानवीय मूल्यों के लिए विनाशकारी है। लोकतंत्र स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के बिना नहीं पनप सकता है। मौन और वैज्ञानिक रिगिंग लोकतंत्र के विध्वंसक हैं। लोगों को फिलहाल इसके लिए एकजुट होकर इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी। मुझे आपका समर्थन चाहिए।
उल्लेखनीय है कि 1975 में 25 जून को ही आधी रात के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था। विपक्ष के अधिकतर नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था और मीडिया पर सेंसरशिप लगा दिया गया था। सरकार की आलोचना करने वालों की गिरफ्तारियां होती थी और देशद्रोह की धाराओं के तहत मामले दर्ज किए जाते थे। इसकी बरसी की पूर्व संध्या पर भी राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने 10 बिंदुओं पर एक बयान जारी किया था, जिसमें बंगाल के वर्तमान हालात की तुलना आपातकाल से की थी और उसके खिलाफ युवाओं को एकजुट होने का आह्वान किया था।