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स्वतंत्रता, समानता, सर्वधर्म समभाव एवं हो सर्वजन विकास

भारतीय गणतंत्र के 73 साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान हमने अलग-अलग क्षेत्रों में तरक्की की नई इबारत लिखी है। आज हमारा देश ज्ञान- विज्ञान, प्रौद्योगिकी, सूचना क्रांति, परमाणु शक्ति आदि सभी क्षेत्रों में दुनिया के अग्रणी देशों में है। पूरा विश्व दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सफलता को सम्मान के साथ देखता है।

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स्वतंत्रता, समानता, सर्वधर्म समभाव एवं हो सर्वजन विकास

स्वतंत्रता, समानता, सर्वधर्म समभाव एवं हो सर्वजन विकास

तंत्र के गण बोले, देश के बहुमुखी विकास के लिए संकल्प लेने का भी दिन
कोलकाता. भारतीय गणतंत्र के 73 साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान हमने अलग-अलग क्षेत्रों में तरक्की की नई इबारत लिखी है। आज हमारा देश ज्ञान- विज्ञान, प्रौद्योगिकी, सूचना क्रांति, परमाणु शक्ति आदि सभी क्षेत्रों में दुनिया के अग्रणी देशों में है। पूरा विश्व दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सफलता को सम्मान के साथ देखता है। स्वतंत्रता, समानता, सर्वधर्म समभाव एवं सर्वजन विकास पर आधारित जिस संविधान को हमने 26 जनवरी 1950 को अंगीकार किया उस पथ पर अनेक चुनौतियां भी हैं। मसलन अभिव्यक्ति की पूरी आजादी हो, मानवाधिकारों का कहीं भी किसी भी रूप में हनन न हो। साथ ही देश के बहुमुखी विकास में हर नागरिक को हर संभव योगदान देने का संकल्प लेने का भी दिन है।
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वनवासी समाज का हो सर्वांगीण विकास
आज हमें यह देखना है कि संविधान में जन सामान्य के कल्याण के लिए समाहित आदर्शों और विचारधाराओं को मूर्त रूप देने में हम किस सीमा तक सफल हुए हैं। सामाजिक समानता के लक्ष्य को पाने के लिए समाज के कमजोर वर्गों का विशेषकर सुदूर वनों, पहाड़ों एवं जंगलों में रहने वाले 11 करोड़ वनवासी समाज का सर्वांगीण विकास एवं उन्नयन सुनिश्चित करना भी अपेक्षित है। वनवासी के विकास के बिना भारत का विकास अधूरा है, इस सत्य को स्वीकार करना होगा। गणतंत्र दिवस के अवसर पर हमें संविधान के प्रति अपनी निष्ठा एवं प्रतिबद्धता को दोहराना चाहिए।
स्नेहलता वैद, सामाजिक कार्यकर्ता
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विश्वास है, बदलेगा हमारा तंत्र
मेरी दृष्टि में आज लोकतंत्र में लोक लुप्त हो चुका है। मात्र तंत्र रह गया है और वह भी अधिनायक वाद के रूप में। लोक आज असहाय और कृपा निर्भर पहले कभी नही था। हमारे संविधान का मूल आधार समानता है। पर हम आज जैसे विषम पहले कभी नही थे। मानवाधिकार मात्र चर्चा का विषय है। यही सच्चाई है। बावजूद इसके हमें विश्वास है कि हमारा तंत्र बदलेगा। सर्वोच्च न्यायालय हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करेगा।
राम गोपाल बागला, व्यापारी
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सिर्फ हक नहीं फर्ज भी हैं गणतंत्र के प्रति
1950 में गणतंत्र दिवस की स्थापना के दिन ही हमारा वो संविधान लागू किया गया जो हमें अपने मौलिक अधिकारों की बात बताता है। लेकिन इसी संविधान में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को भी सूचीबद्ध किया गया है। सांप्रदायिक सद्भाव ,राष्ट्रीय गौरव की रक्षा, सार्वजानिक संपत्तियों की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा और संसाधनों का सही उपयोग करने के साथ साथ ट्रैफिक नियमों का पालन करना, अपनी आय पर समुचित टैक्स देना आदि हमारे कर्तव्य हैं जिनके निर्वाह पर भी हमें ध्यान देना चाहिए।
शिखर चंद जैन, लेखक, संयुक्त सचिव बंगाल आयल ब्रोकर्स एसोसिएशन
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मूल भावना को लेकर आगे बढ़ें
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में स्थापना के 73 वर्ष बाद भी गणतंत्र सही अर्थों में स्थापित नहीं हो पाया है। आज भी गणतंत्र के नाम पर संविधान को ताक पर रख दिया जाता है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जब तक तथाकथित सेक्युलर वर्ग अपने विचार थोपने की कोशिश करता है। ऐसी गतिविधियां जब तक बंद नहीं होंगी तब तक सही अर्थ में हम गणतांत्रिक देश नहीं बन पाएंगे। हम सभी को देश की एकता और अखंडता की मूल भावना को लेकर आगे बढऩे की जरूरत है।
महेन्द्र जैन, सचिव, कोट्टी
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समझें संविधान की मूल भावनाओं को
26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ। यह एक व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकारों का स्वामी और एक व्यक्ति एक वोट यानी सत्ता में भागीदारी या सहयोग का हक देता है, आजादी हमें 1947 मे मिली लेकिन अधिकार नहीं मिले, हमारा संविधान हमें एक भारतीय होने के अधिकारों को दिलाता है, इसी दिन हमें हमारे पहले राष्ट्रपति मिले। हम सभी को इस दिन संविधान की मूल भावनाओं को समझना चाहिए तथा उसके अनुसार राष्ट्र के विकास में योगदान देना चाहिए।
पी. शीतल हर्ष, समाजसेवी