
न कोई ट्रेनिंग, न क्लास, फिर भी उस्ता कला में बनाया खास मुकाम....कैसे? जानिए यहां.....
कोलकाता. (शिशिर शरण राही). कला के प्रति जुनून और प्यार हो तभी कलाकार का कौशल निखरता और वह लक्ष्य की ओर बढ़ता है। राजस्थानी प्रवासी नीलम सेठिया भी ऐसी ही कलाकार हैं जिन्होंने बीकानेर की प्रसिद्ध उस्ता कला में महारत हासिल की है। वे राजस्थान के महाकवि पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया को प्रेरणा स्रोत मानते हुए उन्हीं के पद्चिन्हों पर अग्रसर हैं। वे महाकवि सेठिया की पौत्रवधू हैं। महानगर में ऑयल पेन्टिंग्स, ग्राफिक्स व उस्ता पेन्टिंग्स में अहम मुकाम बनाया है। नीलम ने पहली बार इस कला के जरिए महाकवि कन्हैयालाल सेठिया की तस्वीर को कैनवास पर उकेरा। इसे पिछले दिनों बिड़ला सभागार में महाकवि सेठिया की 100वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदर्शित किया गया। उस्ता कलाकृति के साथ बादल आर्ट, ऑयल पेंटिंग्स और मिक्स मीडिया आदि पर उनकी खासी पकड़ है। खास बात यह है कि यह सब उनके शौक और जुनून का परिणाम है। इसके लिए उन्होंने किसी संस्थान से कोई प्रशिक्षण नहीं लिया। विद्यालयी शिक्षा के दौरान ही शौक चढ़ा। फिलहाल वे कृष्ण लीला पर पेंटिंग्स बनाने में मशगूल हैं।
कला के क्षेत्र में विशेष योगदान पर जीतो कोलकाता की ओर से सर्टिफिकेट ऑफ एप्रेसिएशन, कलामंदिर में 9 अप्रैल को सृजन अवार्ड से सम्मानित नीलम की पहली प्रदर्शनी कोलकाता में गत वर्ष 17 मार्च को एकेडमी ऑफ फाइन आट्र्स में लगी थी, जो 7 दिन चली। आईसीसीआर में 28 से 31 मार्च, 2019 तक महिला दिवस के मद्देनजर मदर एंड मदरहुड पर भी प्रदर्शनी आयोजित हुई थी। कोलकाता में 1980 में जन्मी और बीकानेर शहर में पली-बढ़ी नीलम का कला के साथ समाजसेवा के प्रति समर्पण का भाव है। कला को लेकर उनसे इस तरह हुई खास बातचीत-
महाकवि सेठिया हैं प्रेरणास्रोत
चर्चा के दौरान नीलम ने दादा श्वसुर महाकवि कन्हैयालाल सेठिया की कविता की ये पंक्तियां बयां की ‘...बीज का अंतिम चरण प्रिय बीज ही है फल नहीं, डाल कोपल फूल किसलय, एक केवल आवरण है, भूलता इनमें कभी क्या? बीज निज को एक क्षण है?’
वे कहती हैं कि इन्हीं पंक्तियों की प्रेरणा से उनमें कलारूपी बीज का प्रस्फुटन हुआ। समाजसेवा को लक्ष्य बनाकर भारतीय पौराणिक कथा, प्रकृति से प्रभावित होकर वे अपने कैनवास में रंग भरती रही हैं। बचपन से ही कला में रुचि थी। आज भी बीकानेर स्थित उनके घर में उनकी बनाई कृतियां टंगी हुई हैं। अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संघ के अध्यक्ष एवं समाजसेवी जयचंदलाल डागा की पुत्री नीलम ने कहा कि पिता की कर्मशीलता-कर्मनिष्ठता सहित माता राजदेवी डागा की धर्मपरायणता का उन पर गहरा प्रभाव है। वे सौभाग्यशाली हैं कि उनका विवाह ऐसे घर में हुआ, जहां कला-साहित्य को प्रोत्साहन मिलता है।
क्लांति दूर कर शांति की यात्रा
नीलम के अनुसार कोशिश यही रहती है कि उनकी पेंटिंग्स मन क्लांति दूर कर शांति की एक और यात्रा करवाए। महज रंग भरना या चित्र उकेरना ही उनका लक्ष्य नहीं बल्कि कृतियां स्मृति पटल पर गहरा असर डालते हुए प्रसन्नता का अनुभव करा सकें। वे कहती है कि उनकी वर्कशॉप से जो भी अर्जित होगा वह समाजसेवा में ही इस्तेमाल होगा। उनकी आगामी प्रदर्शनी इसी साल 9 से 11 अक्टूबर को मुंबई आर्ट फेस्टिवल नाम से लगने वाली है.
विराम के बाद फिर लगे रंगों को पंख-बचपन से महात्वाकांक्षी थीं मगर शादी के बाद परिवार, बच्चों की जिम्मेदारी के चलते उनकी कला की दुनिया में विराम आ गया। आखिरकार लंबे अंतराल के बाद श्वसुर जेपी सेठिया, पति गौतम सेठिया व ससुराल पक्ष के सदस्यों ने फिर रुख कला की ओर मोड़ा...रंग और इच्छाओं को पंख लगे।
क्या है उस्ता कला?
उस्ता कला का संबंध बीकानेर से है। ऊंट की खाल पर की जाने वाली स्वर्ण मीनाकारी और मुनव्वत कार्य को ही उस्ता कला कहा जाता है। कला जगत में उस्ता कला ने खास मुकाम बनाया है। इस कला का विकास १९८६ में पद्मश्री से सम्मानित बीकानेर के सिद्धहस्त कलाकार हिसामुद्दीन उस्ता ने किया था। इसके लिए १९६७ में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। बीकानेर के छठे राजा रायसिंह तथा कर्ण सिंह कुछ उस्ता चित्रकारों को मुग़ल दरबार से बीकानेर लाए थे। उन्हें वहां राजकीय चित्रकार का ओहदा दिया गया था। बीकानेर के उस्ता मोहल्ले में आज भी अनेक कलाकार हैं।
Published on:
12 Feb 2020 04:18 pm
बड़ी खबरें
View Allकोलकाता
पश्चिम बंगाल
ट्रेंडिंग
