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उल्लास का नाम ही राम : विजया उर्मलिया

- प्रसन्नता, आनन्द और उल्लास का नाम ही राम है

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उल्लास का नाम ही राम : विजया उर्मलिया

कोलकाता . कुमारी विजया उर्मलिया ने राम कथा के पंचम दिवस पर पूर्वांचल कल्याण आश्रम की ओर से दी स्टेडल में आयोजित राम कथा में कहा कि प्रभु श्रीराम को कम से कम शब्दो में परिभाषित करना हो तो कहा जा सकता है कि प्रसन्नता, आनन्द और उल्लास का नाम ही राम है। भयंकर कष्टों एवं आपदाओं के बीच भी उनके चेहरे पर चिन्ता एवं अवसाद की रेखाएं कभी नहीं उभरती। अपनी साधना को जनकल्याण के लिए समर्पित करना ही सच्चा संतत्व है। जीव को जब तक अपनी असमर्थता का भान नहीं होता तब तक प्रभु के दर्शन नहीं होता। जीवन में किसी भी माया बल की अधिकता होने पर मानव अहंकारी हो जाता है। वो चाहे धनबल हो शस्त्र बल हो या कोई भी सांसारिक बल हो। वह स्वयं को सर्वेसर्वा मान लेता है। शिव धनुष भंग की कथा में यही रूपक है। राजा जनक की प्रतिज्ञा के अनुकूल जब श्रीराम की ओर से शिव के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाई गई और वह भंग हो गया तो अनेक राजा-महाराजओं का जो गर्व से मस्तक ऊंचा करके बैठे थे उनका मान-मर्दन हो गया वे तो प्रत्यंचा तो क्या, धनुष भी नहीं हिला सके। इक्कीस्वी बार क्षत्रियों से रहित करने वाले ऋषि परशुराम की क्रोधाग्नि को श्रीराम के मधुर वचनों ने शांत किया। क्रोध की तरंगों में मानव को सही एवं गलत का भान नहीं रहता है। ज्ञान जन आचरण में आता है तब भक्ति का प्राकट्य होता है। माता सीता भक्ति स्वरूप है श्रीराम ब्रह्म है। ब्रह्म का भक्ति के साथ संयोग होने पर ही धर्म की स्थापना होती है। राम जानकारी विवाह जगत के कल्याण के लिए हुआ। पूर्वांचल कल्याण आश्रम सदियों से उपेक्षित वनवासी को गले लगाने का ईश्वरीय कार्य कर रहा है।

श्रीमद्भागवत कथा श्रवण से उद्धार

कोलकाता . पुरुषोत्तम मास के अवसर पर इलाहाबाद से आए कथा व्यास ऋषिराज त्रिपाठी के मुखारविंद से भक्ति-रससिक्त अमृतमयी श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के सप्ताहव्यापी आयोजन के सातवें एवं विश्राम दिवस पर व्यासपीठ से कहा कि रास में प्रभु का सानिध्य पा कर गोपियों को अपनी श्रेष्ठता का अभिमान हो गया तो तुरंत ही श्रीकृष्ण अंतरध्यान हो गए एवं मथुरा चले गए। फिर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने के लिए अपने मित्र सखा परम ज्ञानी उद्धवजी को गोकुल भेजा। वहां गोपियों के विरल प्रेम के समक्ष वे हार मान कर मथुरा लौट आए। फिर मथुरा में श्रीकृष्ण ने अपने मामा महाराजा कंस का उद्धार कर नगरवासियों को भयमुक्त किया। समयानुसार श्र? कृष्ण ?? का रुक्मणी जी के साथ विवाह संम्पन्न हुआ एवं वे द्वारिका चले गए। द्वारिका में फिर अपने बचपन के मित्र सुदामा को लीला दर्शन कराते हुए उसे उसकी अटूट कृष्ण भक्ति के वरदान के रूप में संम्पन्नता का आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात कथा विराम करते हुए राजा परीक्षित के मोक्ष गमन का मार्ग प्रशस्त किया। पूरी कथा में उपस्थित भक्तगण कथा व्याख्या एवं मीठे भजनों में एकाग्रचित होकर आनंदित-आल्हादित नजर आए। पुन: इस कलयुग में श्रीमद्भागवत कथा श्रवण को ही मानव उद्धार का एकमात्र सहज एवं सुगम उपाय बताया गया।