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पश्चिम बंगाल : हिंदी में नए शब्द गढऩे की क्षमता – राज्यपाल त्रिपाठी

हिंदीतर प्रांतों व विदेशों में हिन्दी भाषा-साहित्य: दशा-दिशा पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

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भारतीय विद्या मंदिर और भारतीय संस्कृति संसद ने किया आयोजन
कोलकाता. आम आदमी के लिए हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में उपयोगी साहित्य सृजन के मुद्दे पर चर्चा के साथ जन-जन को उसकी अपनी भाषा में चिंतकों और विचारकों के ज्ञान को पहुंचाने के लिए हिन्दी भाषा-साहित्य: दशा-दिशा पर ३ दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन शुक्रवार शाम जीडी बिड़ला सभागार में हुआ। कोलकाता की अग्रणी सांस्कृतिक संस्था भारतीय विद्या मंदिर और भारतीय संस्कृति संसद की ओर से हिंदीतर प्रांतों व विदेशों में हिन्दी भाषा-साहित्य: दशा-दिशा पर ३ दिवसीय आयोजित इस सम्मेलन का दुनिया भर में इंटरनेट के जरिए सीधा प्रसारण किया गया। सम्मेलन में असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, तेलांगना, मणिपुर और आंध्र प्रदेश सहित देश के २८ राज्यों के ५०० से अधिक हिंदी प्रेमी लेखक, संपादक और १२ अन्य देशों के प्रतिनिधि इसमें भाग ले रहेहैं। राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी की अध्यक्षता में हुए सम्मेलन के मुख्य अतिथि हिंदी निदेशालय, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निदेशक प्रो. अवनीश कुमार, संयोजक डॉ. बाबूलाल शर्मा और संस्था सचिव विजय झुनझुनवाला मौजूद थे। राज्यपाल ने कहा कि हिंदी हमारी सम्पर्क भाषा हो सकती है, क्योंकि यह देश के लगभग सभी प्रांतों में बोली जाती है। हिंदी की विशेषताओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी में नए शब्द गढने की क्षमता है और यह सरल और ग्राह्य है। त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए पाठ्यक्रम में इंडोलोजी अनिवार्य कर देना चाहिए। अनुवाद को साहित्य की महत्वपूर्ण विधा बताते हुए त्रिपाठी ने कहा कि अनुवाद के जरिए ही हम एक दूसरे के साहित्य को पढ सकेंगे और दूसरों के विचारों को समझ सकेंगे। उन्होंने कहा कि हमारे भीतर इतना स्वाभिमान होना चाहिए कि हम अपनी भाषा बोल सकें।

६० करोड़ लोग स्कूली शिक्षा से आगे नहीं पढ़ पाते
भारतीय विद्या मंदिर के अध्यक्ष डॉ. विट्ठलदास मूंधड़ा ने स्वागत संबोधन में कहा कि हिंदी इस देश के जन साधारण की भाषा है। देश के लगभग ६० करोड़ लोग स्कूली शिक्षा से आगे नहीं पढ़ पाते हैं। इनके लिए तकनीकी पाठ्य सामग्री और चरित्र निर्माण से संबंधित साहित्य जन साधारण की भाषा में लिखा जाना चाहिए। मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी निदेशालय के प्रो. अवनीश कुमार ने कहा कि आम जन में ज्ञान के प्रसार के लिए जन जन की भाषा को अपनाना जरूरी है। भाषा से ज्ञान मिलता है और देश के विकास के लिए जरूरी है कि हमारा ज्ञान हमारी भाषा में हो।

घरों में बच्चों से हिंदी में करें बात
विशिष्ट अतिथि डॉ. रविप्रभा बर्मन ने कहा कि यदि हम हिंदी को सम्पर्क भाषा बनाना चाहते हैं तो हमें भी कोई न कोई दक्षिण भारतीय भाषा अनिवार्य रूप से सीखनी चाहिए। अंग्रेजी सीखना अच्छी बात है, पर घरों में बच्चों से बात हिंदी में करनी चाहिए, तभी हिंदी का विकास हो सकेगा।

संचालन प्रो. राजश्री शुक्ला और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. तारा दुगड़ ने किया। उद्घाटन सत्र के बाद रात ८ बजे तक चले रचना सत्र में सत्र संचालक रावेल पुष्प के सान्निध्य में विभिन्न प्रतिभागियों ने कविताओं, लघुकथा और व्यंग्य रचना का पाठ किया।
माधोदास मूंधड़ा के जन्म शताब्दी वर्ष में सम्मेलन
भारतीय विद्या मंदिर और भारतीय संस्कृति संसद के संस्थापक व अनेक पुस्तकों के लेखक माधोदास मूंधड़ा (दिवंगत) के जन्म शताब्दी वर्ष में उनकी स्मृति में इस सम्मेलन का आयोजन किया गया है।