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नवरात्रि विशेष : पश्चिम बंगाल का यह शक्तिपीठ है तीन धर्मों के स्थापत्य का संगम

west bengal Navratri : kiriteswari shaktipeeth proves harmony: मुर्शिदाबाद जिले के जियांगज स्थित मुकुन्दबाग गांव में है किरीटेश्वरी शक्तिपीठ। मान्यता है कि यहां मां शक्ति का किरीट अर्थात मुकुट गिरा था यहां पर हिंदू, बौद्ध, इस्लामिक स्थापत्य की निशानियां मौजूद हैं।

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नवरात्रि विशेष : पश्चिम बंगाल का यह शक्तिपीठ है तीन धर्मों के स्थापत्य का संगम

नवरात्रि विशेष : पश्चिम बंगाल का यह शक्तिपीठ है तीन धर्मों के स्थापत्य का संगम

मुर्शिदाबाद (West Bengal). आदि शक्ति मां के विश्व भर में मौजूद 51 शक्तिपीठों में से एक किरीटेश्वरी शक्तिपीठ सर्वधर्म समभाव की अद्भुत मिसाल है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में जियागंज थानान्तर्गत मुकुन्दबाग ग्राम में स्थित इस शक्तिपीठ के मूल मंदिर का गर्भगृह इसका प्रमाण है। गर्भगृह में माता रानी की कोई प्रतिमा नहीं है। वहां दीवार पर सदियों पुराना नक्शा, उस पर उकेरे गए चित्र, मंडप की आकृतियां और चाल चित्र मंदिर पर सर्वधर्म स्थापत्य से प्रेरित होने का राज खोलते हैं।

साधकों का बड़ा केन्द्र रहा है
मंदिर के पुजारी दिलीप भट्टाचार्य के मुताबिक धार्मिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार यहां मां सती का किरीट यानि मुकुट गिरा था। सदियों तक यह स्थान मां सती के साधकों का बड़ा केन्द्र रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि यहां सिर्फ हिन्दू साधक ही आते रहे। लगभग तीन सदी पुराने मूल मंदिर का जीर्णोद्धार बांग्लादेश के राजशाही की रानी भवानी ने कराया था।

शिलापट पर बौद्ध तंत्र के नक् शे
मंदिर के मुख्य पुरोहित भट्टाचार्य दावा करते हैं कि मंदिर के आदि शिलापट पर बौद्ध तंत्र के नक् शे हैं, वहीं उसके ऊपर मुगलकालीन स्थापत्य की निशानियां यानि फूल पत्ते उकेरे गए हैं। जबकि शिलापट के सबसे ऊपर हिंदू स्थापत्य का चाल चित्र है। इस तरह मंदिर के गर्भगृह में हिंदू, बौद्ध और मुगल स्थापत्य साफ साफ देखा जा सकता है। पुरोहित भट्टाचार्य के अनुसार इस शक्तिपीठ पर सदियों से विभिन्न धर्मों के साधकों का आनाजाना लगा रहा। बौद्ध तांत्रिकों ने यहां रहकर लंबे समय तक साधना भी की है।

समय ने उजाड़ा अब भी हैं अवशेष
शक्तिपीठ परिसर में एक ओर जहां तीन सदी पुराना टेरोकोटा लाल रंग का मूल मंदिर है। वहीं आधे दर्जन से ज्यादा मंदिरों के भग्रावशेष
मौजूद हैं। जिनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है। मंदिरों की ईंटें निकल चुकी हैं। झाड़ झंकाड़ ने भग्रावशेषों को अपने कब्जे में ले लिया है। संबंधित एजेंसियों की नजर नहीं जाती है।

मुस्लिम परिवार ने दान की मंदिर को जमीन
शक्तिपीठ के पास ही मुसलमान परिवार की जमीन थी। मंदिर के आने जाने में लोगों को उनकी जमीन से होकर आना जाना पड़ता था। इसलिए गांव के हक परिवार ने अपने पूर्वजों की इच्छा के अनुरूप वर्ष 2017 में मंदिर को तीन शतक जमीनदान कर दी। परिवार के लुत्फुल हक व उनकी तीन बहनों की ओर से मंदिर को दान की गई जमीन का शिलालेख भी मौजूद है।