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WEST BENGAL –दुख के बाद भी मूंछों पर ताव, -फिरंगी राज से लोहा लेने वाले 102 साल के पहलवान लोकगायक जंगबहादुर गुमनामी के अंधेरे

locationकोलकाताPublished: Aug 13, 2022 12:06:18 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

बंगाल से था गहरा नाता, अनसंग हीरो, 60 के दशक के सुप्रसिद्ध भोजपुरी लोक गायक

WEST BENGAL --दुख के बाद भी मूंछों पर ताव, -फिरंगी राज से लोहा लेने वाले 102 साल के पहलवान लोकगायक जंगबहादुर गुमनामी के अंधेरे

WEST BENGAL –दुख के बाद भी मूंछों पर ताव, -फिरंगी राज से लोहा लेने वाले 102 साल के पहलवान लोकगायक जंगबहादुर गुमनामी के अंधेरे

BENGAL NEWS-कोलकाता (शिशिर शरण राही)। फिरंगी राज से लोहा लेने वाले 102 वर्षीय पहलवान लोकगायक जंगबहादुर सिंह आज गुमनामी के अंधेरे में जी रहे। एक तरफ जहां देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा वहीं स्वतंत्रता संग्राम के 60 के दशक के इसअनसंग हीरो प्रसिद्ध भोजपुरी लोक गायक की न तो सरकार ने सुध ली। बंगाल से जंगबहादुर का गहरा नाता होने के बावजूद न किसी जनप्रतिनिधि न किसी संस्था ने उनकी कुशलक्षेम जानने की कोशिश की। 1942-47 तक आजादी के तराने गाने के लिए जंगबहादुर कई दफा ब्रिटिश प्रताडऩा के शिकार हुए और जेल गए। लगभग दो दशकों तक अपने भोजपुरी गायन से बंगाल से लेकर बिहार, झारखंड, उत्तर-प्रदेश आदि राज्यों में डंका बजाने वाले जंगबहादुर आज 102 वर्ष की आयु में गुमनामी के अंधेरे में जीने को विवश हैं। आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा है पर देशभक्तों में जोश भरने-वाले अपने समय के नामी भोजपुरी लोक-गायक जंगबहादुर को कोई पूछने वाला नहीं।
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आसनसोल में साइकिल कारखाने में करते थे नौकरी
मूल रूप से बिहार के सीवान जिले के रघुनाथपुर प्रखण्ड के कौसड़ गांव के निवासी जंगबहादुर कुश्ती के दंगल के पहलवान हुआ करते थे। 10 दिसंबर 1920 को जन्मे जंगबहादुर बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल कारखाने में नौकरी करते हुए भोजपुरी की व्यास शैली में गायन-कर दुर्गापुर, संबलपुर, रांची आदि क्षेत्रों में देश और देशभक्तों के लिए गाते थे। वे पहले कुश्ती के दंगल के पहलवान हुआ करते थे। जिस दौर में चारों तरफ आडादी के लिए संघर्ष चल रहा था।
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आजादी के तराने गाने के लिए गिरफ्तार कर प्रताडि़त किया
युवा जंगबहादुर देशभक्तों में जोश जगाने के लिए घूम-घूमकर देशभक्ति के गीत गाने लगे। 1942-47 तक आजादी के क्रांतिकारी तराने गाने के लिए अंग्रेज़ी शासन ने गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेजा और कई दफा प्रताडि़त किया।
1970 में पारिवारिक जीवन टूट गया जब उनके बेटे और बेटी की आकस्मिक मृत्यु हुई। धीरे-धीरे उनका मंचों पर जाना और गाना कम होने लगा। दुर्भाग्य ने अभी पीछा नहीं छोड़ा था और पत्नी महेशा देवी एक दिन खाना बनाते समय बुरी तरह जल गईं। 1980 के आसपास एक और बेटे की कैंसर से मौत हो गई। फिर वे अंदर से बिल्कुल टूट गए। अभी दो बेटे में एक मानसिक-शारीरिक रूप से अक्षम है। छोटे बेटे राजू ने परिवार संभाल रखा है जो विदेश में रहता है।
इतने दुख के बाद भी वे मुस्कुराते रहते हैं और मूंछों पर ताव देते रहते हैं। पिछले 30 साल से जंगबहादुर अपने गांव में किसी के भी दुख-सुख में लाठी लेकर खड़े रहते हैं। फिलहाल 102 वर्ष के इस वयोवृद्ध गायक हार्ट पैसेंट हैं। डॉक्टर से गाने की मनाही है पर लगातार ४ घंटे तक देशभक्ति गीत सुनाने की क्षमता है।
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….घास की रोटी खाई वतन के लिए
आज भी वे ….घास की रोटी खाई वतन के लिए, हम झुका देम दिल्ली के सुल्तान के, गांधी खद्दर के बान्ह के पगरिया, ससुरिया चलले ना..सरीखे गीत गुनगुनाते रहते हैं। वीर अब्दुल हमीद व सुभाषचंद्र बोस की गाथा गाते-गाते गाने लगते हैं कि ….जाये के अकेल बा, झमेल कवना काम के।
उम्र के इस पड़ाव पर वह फिट हैं और मुस्कुराते रहते हैं। दमा और हृदय के मरीज होने पर भी 102 वर्ष की आयु में भी उनका पहलवान उनका गायक जिंदा है।
—इनका कहना है
जंगबहादुर की पोती खुशबू सिंह, लोकगायक मुन्ना सिंह व्यास व भरत शर्मा व्यास ने कहा कि जंगबहादुर को पद्मश्री पुरस्कार मिलना चाहिए। झारखंड-बंगाल-बिहार में उनका नाम था और एक क्षत्र राज्य था उनका। उनके साथ के करीब-करीब सभी गायक दुनिया छोडक़र जा चुके हैं। खुशी की बात है कि वह 102 वर्ष की उम्र में भी आज स्वस्थ हैं। ऐसी प्रतिभा को पद्मश्री देकर सम्मानित किया जाना चाहिए। भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कोच हरेन्द्र सिंह का कहना है कि मैं उन खुशनसीब लोगों में से हूं जिन्होंने जंगबहादुर को लाइव सुना है। इनकी कृति और रचनाओं को कला संस्कृति विभाग बिहार सरकार को सहेजना चाहिए। प्रसिद्ध भोजपुरी कवि फिल्म समीक्षक मनोज भावुक ने कहा कि जंगबहादुर को उनके हिस्से का वाजिब हक तो मिलना ही चाहिए।
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