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आम का पत्तो को मानते है आमंत्रण पत्र,जानिए कौन और कहां निभाई जाती है यह रस्म…..

आदिवासी अंचल बस्तर के चैबीस परघना की देवी-देवताओं की मौजूदी में होने वाले कोण्डागांव नगर के वार्षिक मेला में देवी देवताओं सहित आमजनों को आमंत्रण देने की यह अनूठी रस्म है जो कि दशकों से आज भी निभाई जा रही है इसमें आयोजन समिति के लोग देवी के मावली माता मंदिर में एकत्रित होकर बाजार परिसर में परमपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाचते-गाते हुए कोटवार लोगों को आम के पत्तों की टहनी से आमंत्रण देते हुए निकलते है। ऐसा माना जाता है कि, शुभ कार्य आम के पत्तों से ही किया जाता है।

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700 वर्षो से चली आ रही कोण्डागांव नगर में मेले की परंपरा

चैबीस परघना की देवी-देवताओं की मौजूदी में होने वाले कोण्डागांव नगर के वार्षिक मेला में देवी देवताओं सहित आमजनों को आमंत्रण देने की यह अनूठी रस्म है जो कि दशकों से आज भी निभाई जा रही है इसमें आयोजन समिति के लोग देवी के मावली माता मंदिर में एकत्रित होकर बाजार परिसर में परमपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाचते-गाते हुए कोटवार लोगों को आम के पत्तों की टहनी से आमंत्रण देते है

कोण्डागांव- लगभग 700 वर्षो से चली आ रही कोण्डागांव नगर में मेले की परंपरा आज भी अपने परंपरिक व सांस्कृतिक रिति-रिवाजों को संजोए हुए है। भले ही आज वतर्मान समय में आधुनिकता ने लोगों को जकड़ रखा है, लेकिन मेले में निभाई जा रही परंपरा आज भी पीढ़ी दर पीढी चली आ रही है। दराअसल कोण्डागांव मेला हिन्दु पंचाग और चंद्र स्थिति के कारण माघ शुल्क पक्ष के प्रथम मंगलवार को ही मनाया जाता है। इस दिन इलाके के 24 परघना के देवी-देवता इसमें शामिल होते हैं, लगतार सप्तहभर चलने वाला यह पर्व अपने-आप में कई परंपराओं को समटे हुए है। मेले में आज भी देव परिक्रमा से पहले तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर सहित जनप्रतिनिधियों को बकायदा सम्मान के साथ मेला स्थल तक समिति के लोग लाते है। इसके बाद ही देव समांगम के साथ देवी-देवता एक साथ मेला परिसर की परिक्रमा करते है। इस देव मेला को देखने के लिए दूर-दराज से भी लोग यहाॅ बड़ी संख्या में पहुंचते वही विदेशी सैलानी व शोधकतार्ओं को भी मेले में देखा जा सकता है। मेला समिति ने इस बार देवमेला व परिक्रमा के दौरान सभी लाट, डंगई, आंगा सहित अन्य देवी-देवताओं को धारण करने वाले लोगों को धोती पहनना अनिवार्य हैं। इसके साथ ही परिक्रमा के दौरान एक कतार में लाट तो दूसरे कतार में डंगई सहित सभी एक के बाद एक करके निकलेगें। जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि, मेले में कितने देवी-देवताओं के लाॅट, डंगई, बैरक, आंगा यहाॅ पहुंचे है। और मेले का आनंद लेने पहुंचने वालों को भी यह आकषर्क दिखे।