
CG News: नाइट्रोजन ऑक्साइड के लेवल को कम करने लगेंगे कंट्रोल सिस्टम
कोरबा। CG News: उत्पादन कंपनी के तीनों प्रमुख पॉवर प्लांटों से उत्सर्जित हो रहे नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर को कम करने के लिए कंट्रोल सिस्टम लगाए जाएंगे। इससे जहरीली गैस का स्तर चिमनी से निकलने से पहले शून्य हो जाएगा।
नाइट्रोजन ऑक्साइड कंट्रोल सिस्टम डीएसपीएम की दोनाें यूनिट, मड़वा संयंत्र की दो यूनिट और एचटीपीपी की एक यूनिट में लगाए जाएंगे। गौरतलब है कि केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की गाइडलाइन के मुताबिक पीएम 10 वैल्यू की मात्रा 4.8 किग्रा प्रति मेगावाट और नाइट्रोजन ऑक्साइड भी 4.8 प्रति किग्रा प्रति मेगावाट तक स्तर होना चाहिए। दरअसल थर्मल पॉवर प्लांटों में जब कोयले से बिजली बनाई जाती है तो कोयले से एनओएक्स गैस निकलती है जो कि चिमनी से होकर वातावरण में मिलती है। इसके लेवल को चिमली से बाहर निकलने से पहले ही शून्य करने के लिए कंट्रोल सिस्टम लगाए जाएंगे।
बारिश में खतरनाक हो जाती हैं गैस
थर्मल प्लांटों में कोयला जलने पर धुंए के साथ नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाय ऑक्साइड भी उत्पन्न होती है। बारिश में जब यह गैस पानी में घुलती है तो सल्फ्यूरिक एसिड बनकर जमीन पर गिरती है। इससे जमीन की उर्वरता कम होती है। इसका असर उत्पादन पर पड़ता है।
उत्पादन कंपनी कर रही सबसे पहले प्रयोग
एनओएक्स कंट्रोल सिस्टम लगाने के लिए सबसे पहली पहल उत्पादन कंपनी द्वारा की गई है। इसके लिए मुख्यालय ने मार्च में निविदा निकालने की तैयारी शुरु की थी,लेकिन आचार संहिता लगने की वजह से इसे रोक दिया गया है। दिसंबर में फिर से प्रक्रिया शुरु की जाएगी। आगामी एक से दो महीने में वर्कआर्डर होने के बाद कंपनी काम शुरु करेगी।
एफजीडी सिस्टम पर भी काम होगा जल्द शुरू
नाइट्रोजन ऑक्साइड की तरह चिमनियों से सल्फर डाय ऑक्साइड गैस निकलने की बात सामने आई थी। कंपनी ने अपने तीनों संयंत्रों में एफजीडी(फ्यूल गैस डी सल्फराइजेशन सिस्टम) लगाने जा रही है। ताकि चिमनी से निकलने से पहले खतरनाक गैस को अलग कर लिया जाए। करीब 1358 करोड़ की लागत से ये मशीन स्थापित की जाएगी।
उत्पादन कंपनी के मड़वा संयंत्र, डीएसपीएम व कोरबा पश्चिम विस्तार संयंत्र में ये सिस्टम लगाने की तैयारी शुरु कर दी गई है। डीएसपीएम की 500 मेगावाट की दो यूनिट की 2007-08 में कमिशनिंग हुई थी, पश्चिम विस्तार की 500 मेगावाट की एक यूनिट 2013 से उत्पादन में आई थी जबकि मड़वा संयंत्र 2016 से उत्पादन में है। थर्मल प्लांटों से निकलने वाले हानिकारक गैस को लेकर समय-समय पर सीपीसीबी और एनजीटी द्वारा अध्ययन किया गया था।
Published on:
09 Nov 2023 12:01 pm
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