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CG Human Story : ‘इलेक्ट्रॉनिक सामानों से चमक-दमक तो रहती है, लेकिन लक्ष्मी का वास घर में चाहिए तो मिट्टी के दीये जलाना जरूरी’

- दीवाली का त्यौहार और 25 हजार दीयों से सात हजार रूपए का व्यापार

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कोरबा

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Shiv Singh

Nov 02, 2018

CG Human Story : 'इलेक्ट्रनिक सामानों से चमक-दमक तो रहती है, लेकिन लक्ष्मी का वास घर में चाहिए तो मिट्टी के दीये जलाना जरूरी'

CG Human Story : 'इलेक्ट्रनिक सामानों से चमक-दमक तो रहती है, लेकिन लक्ष्मी का वास घर में चाहिए तो मिट्टी के दीये जलाना जरूरी'

कोरबा- दीवाली करीब है, बाजार में रौनक है। सभी शॉपिंग की तैयारी कर रहे हैं, तो कुछ की बाकी है। इन सबके बीच कुम्हार सुखीराम प्रजापति का काम दोगुना हो गया है। लेकिन इससे वह खुश है। क्योंकि यही वो मौका है जिसका उसे साल भर से इंतजार रहता है। कुम्हार की मेहनत देख ये लाइन उस पर बिल्कुल फिट बैठती है- बनाकर दीये मिट्टी के, जऱा सी आस पाली है, मेरी मेहनत खऱीदो लोगों, मेरे घर भी दीवाली है..

दीवाली के त्यौहार में ज्यादा से ज्यादा व्यापार हो सके इसके लिए वार्ड ४२ के बेलगरी बस्ती के कुम्हार सुखीराम पूरे उत्साह से दीये बनाने में लगा हुआ है। सुखीराम कहता है कि काश वो दिन लौट आए जब मिट्टी के दीये से उन्हें अच्छा मुनाफा होता था। कारण यह है कि विगत कुछ सालों के दौरान दीवाली के दिन मिट्टी के दीयों की जगह सस्ते इलेक्ट्रानिक सामान लेने लगे हैं।

सुखीराम बताते हैं कि पहले हमारे समाज के सारे लोग यही काम करते थे, लेकिन बढ़ती महंगाई और दीयों के घटते चलन से बहुत से कुम्हारों ने दीये बनाने का काम छोड़ दिया है। सभी कुछ न कुछ रोजी मजदूरी कर पेट पालते हैं। बीते ५ से १० वर्षों के दौरान स्थिति ज्यादा खराब हुई है।

घाटे के कारण कई परिवारों ने अब अपने इस पारंपरिक व्यवसाय से तौबा कर ली है। सुखीराम कहते हैं कि पहले कम दाम पर दीये बेचकर भी मुनाफा अधिक होता था। अब तो कारोबार काफी कम हो गया है। हर साल लगभग २५ हजार दीये बनाता हूं। जिससे सात से आठ हजार रूपयों का मुनाफा हो जाता है। थोक व्यापारी मे दीयों को ८० से १०० सैंकड़ा के भाव से दीये खरीदते हैं। लेकिन बाजार भाव इससे कहीं ज्यादा का होता है।

नहीं मिलती सहायता
सरकार द्वारा मेक इन इंडिया के तहत स्वदेशी उत्पादों से जुड़े व्यवसायों को बढ़ावा देने की बातें कहीं जाती हैं। मिट्टी से दीये बनाने वाले इस व्यवसाय को कोई खास सहायता नहीं मिली है। हालांकि कुम्हारों को छत्तीसगढ़ माटी कला बोर्ड से कुछ वर्षांे पूर्व इलेक्ट्रॉनिक चाक जरूर प्रदान किया गया था। लेकिन सुखीराम को इसका लाभ अब तक नहीं मिला है। सुखीराम बताते हैं कि दो वर्ष पूर्व समाज के एक पदाधिकारी को इलेक्ट्रॉनिक चाक के लिए फॉर्म भरकर दिया था, लेकिन अब तक इसका कुछ भी अता-पता नहीं है। इसलिए हाथ से ही पहिया घुमाकर वह दीयों को आकार दे रहे हैं, और विषम परिस्थितियों में भी अपनी पुश्तैनी संस्कृति को संजोकर रखा है। कुम्हारों का ऐसा मानना है धन की देवी लक्ष्मी मिट्टी के दीये जलाने से ही घर आती ही। इलेक्ट्रनिक सामानों से चमक-दमक तो रहती है, लेकिन लक्ष्मी का वास घर में चाहिए तो मिट्टी के दीये जलाना जरूरी है।