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पूर्व संयंत्र से बिजली बनती थी 4 रूपए यूनिट में, बंद होने के बाद सेंट्रल से ले रहे 8.85 रूपए की दर से

कोरबा. पूर्व संयंत्र के बंद होने के बाद बिजली की कमी लगातार बनी हुई है। इसकी भरपाई के लिए सेंट्रल सेक्टर के महंगी बिजली पर निर्भर रहना पड़ता है। एक साल में २१०० मिलियन यूनिट बिजली की कमी बनी हुइै है। उत्पादन कंपनी जिस दर पर बिजली बनाती थी उससे दो गुने अधिक दर पर बिजली खरीदने की मजबूरी बनी हुई है।

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एक ओर जहां प्रदेश में बिजली की उच्चतम डिमांड में हर साल २० फीसदी का इजाफा हो रहा है। २०२२ अप्रेल में जहां डिमांड ५४०० मेगावाट तक जा पहुंचा था जो कि इस बार अप्रेल में बढ़कर ५८०० मेगावाट को भी पार कर गया था। जब डिमांड उच्चतम स्तर पर होती है तो सेंट्रल सेक्टर पर निर्भरता और बढ़ जाती है। जबकि कोरबा पूर्व संयंत्र के बंद होने के बाद से बिजली की कमी पहले बनी ही हुई है। पूर्व संयंत्र में प्रति यूनिट औसतन साढ़े रूपए यूनिट में बिजली तैयार हो रही थी। इसके बंद होने के बाद कंपनी २०२२-२३ में ७.६६ रूपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद रही थी। जो कि २०२३ जून तक बढ़कर ८.८५ रूपए प्रति यूनिट जा पहुंची है। एक तरह से देखा जाए तो कंपनी के निर्माण लागत से दोगुने से अधिक दर पर बिजली खरीदी जी रही है।

हर साल औसतन ३० हजार मिलियन यूनिट की खपत

प्रदेश में हर साल औसतन ३० हजार मिलियन यूनिट बिजली की खपत हो रही है। २०२२-२३ मेें खपत २९०९८ मिलियन यूनिट थी। अप्रेल में जब खपत बढ़ गई थी तब एक महीने में ही २७४० मिलियन यूनिट बिजली प्रदेश में डिमांड गई थी। उत्पादन कंपनी के संयंत्रों ने २०२२-२३ में१७९८४.९२ मिलियन यूनिट और २०२३-२४ में १५ जून तक ४५६८ मिलियन यूनिट का उत्पादन किया गया। ० बिजली बनाने की क्षमता कम, डिमांड की वजह से अधिक खरीदी पूर्व संंयंत्र के बंद होने और बिजली की डिमांड भी बढऩे लगी है तो दूसरी ओर बिजली उत्पादन की क्षमता जस की तस है। प्रदेश में जितनी बिजली बन रही है उसकी तुलना में अधिक खरीदी करनी पड़ रही है। २०२२-२३ में उत्पादन कंपनी के संंयंत्रों ने १७९८४.९२ मिलियन यूनिट बिजली तैयार की, जबकि अन्य स्त्रोतों २१११९.०२ मिलियन यूनिट बिजली क्रय की गई।

० अब ग्रीन एनर्जी पर पूरा दरोमदा

उत्पादन कंपनी के प्रस्तावित १३२० मेगावाट संयंत्र २०२९-३० तक ही परिचालन में आएगा। तब तक बिजली की आपूर्ति पूरी करने के लिए पूरा दरोमदार ग्रीन एनर्जी पर ही होगा। प्रदेश में हाइड्रो, सोलर और बायोमास संयंत्र स्वीकृत हुए हैं। इनसे १६०० मेगावाट बिजली बनेगी। हालांकि इन संयंत्रों को भी पूरा होने में कम से कम एक से दो साल का समय लग सकता है।