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युवाओं का अध्यक्ष चुनने मे गलती से मिस्टेक! भाजपा-कांग्रेस दोनो दलों के युवाओं के मुखिया निपट गए

दो प्रमुख पार्टियों के यूथ संगठन के जिलाध्यक्ष एक सप्ताह के भीतर बारी-बारी से निपट गए। दोनों को पद से हाथ धोना पड़ गया।

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Piyushkant Chaturvedi

Aug 02, 2017

Mistake in choosing the president of youth!

Mistake in choosing the president of youth!

कोरबा. दो प्रमुख पार्टियों के यूथ संगठन के जिलाध्यक्ष एक सप्ताह के भीतर बारी-बारी से निपट गए। दोनों को पद से हाथ धोना पड़ गया।

भाजयुमो के जिलाध्यक्ष पर पार्टी के कार्यक्रम में शराबखोरी का आरोप लगा तो यूथ कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पर रेप का। इससे कहीं न कहीं संगठन की किरकिरी हुई तो नए अध्यक्ष के लिए अब फिर से राजनीति शुरू हो गई है।

छह दिन पहले जब भाजयुमो के जिलाध्यक्ष मनोज मिश्रा की इस्तीफे की खबर आम आई तो विरोधी पार्टी यूथ कांग्रेस के पदाधिकारी खुशी से झुम उठे। बयानबाजी तक का दौर शुरू हो गया। पदाधिकारी सिद्धांतवादी का परिचय देने में लग गए। लेकिन ये खुशी बहुत ज्यादा देर तक नहीं टिक सकी।

पंाच दिन बाद ही यूथ कांग्रेस के जिलाध्यक्ष नितीन चौरसिया छात्रा से रेप के मामले में घिर गया। फिर अपराध दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी भी हो गई। यूथ कांग्रेस ने फिर भी चौरसिया का साथ नहीं छोड़ा और इसे राजनीतिक साजिश करार दी।

इसी बीच जब चौरसिया ने थाने में अपराध कबूल करते हुए घटनास्थल की जानकारी पुलिस को दी। तब जाकर आलाकमान को संगठन की बदनामी होते देख मजबूरन चौरसिया को पद से निलंबित करना पड़ा।

एक तरफ शराबखोरी तो दूसरी तरफ अनाचार का आरोप इस तरह दोनों ही प्रमुख युवा संगठन में इन दिनों खलबली मची हुई है। अब नए अध्यक्ष के लिए कवायद शुरू हो चुकी है। संगठन स्तर पर निर्विवाद छवि के युवाओं की तलाश का काम तेज हो गया है।

कई खेमे चित, तो कुछ में खुशी का माहौल- दोनों ही संगठन के अध्यक्ष के निपटने के बाद जहां कई खेमे में निराशा छा गई है तो कई में खुशी की लहर है।

भाजयुमो में एक तरफ से देखा जाए तो मिश्रा की नियुक्ति के बाद से एक नहीं दो-दो खेमा नाराज चल रहा था। गुटबाजी खुलकर सामने आने लगी थी। उन गुटों का नेतृत्व करने वाली पार्टी अब अपना अध्यक्ष बनाने में जुटी हुई है।

वहीं यूथ कांग्रेस में भी कुछ इसी तरह है। यूथ कांग्रेस को शहर से ज्यादा ग्रामीण कांग्रेस का साथ ज्यादा मिल रहा था। हर बार विरोध प्रदर्शन में यूथ कांग्रेस के स्वर अलग-अलग देखने को मिलते थे।

चौरसिया पर आरोप के पांच दिन पहले ही कांग्रेस की मौन यात्रा और डीएफओ कार्यालय के घेराव में गुटबाजी सबके सामने आ गई थी।

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