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Azab gajab: दो सौ किलो आम रस पिया तो भगवान हो गए बीमार.. 15दिन वैद्यजी की देखरेख में ‘जगदीश ‘

राजस्थान के इस मंदिर में अजब मामला, निभाई जा रही है विशेष परम्परा

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कोटा

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Suraksha Rajora

Jun 17, 2019

 

कोटा. इसे भगवान की सेवा का तरीका करेंगे या, बदले मौसम व खानपान से आमजन पर पडऩे वाले असर का संदेश देने का तरीका। जो भी हो…रामपुरा स्थित
जगदीश मंदिर में ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान जगदीश का स्वास्थ्य नरम हो
गया। अब से १५ दिन वह पूरी तरह से रेस्ट पर रहेंगे। नियमित रूप से
वैद्यजी उनके स्वास्थ्य को जांचने आएंगे। ठाकुरजी जब पूर्ण रूपेण स्वस्थ
हो जाएंगे, तब भक्तों को दर्शन देंगे।

200किलो आम का भोग

सोमवार को ज्येष्ठ पूर्णिमा उत्सव मनाया। सुबह ठाकुरजी का ज्येष्ठाभिषेक
, पंचामृत व जलधारा स्नान करवाया गया। शाम को दो क्विं. आम का भोग लगाया
गया। विशेष शृंगार के दर्शन हुए। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने ठाकुरजी के दर्शन किए।

अब इस तरह से रखेंगे ठाकुरजी का खयाल

भगवान जगदीश अब १५ दिन विश्राम पर रहेंगे। इस दौरान प्रतिििदन वैद्यजी
ठाकुरजी का स्वास्थ्य परीक्षण करने के लिए आएंगे। इन पन्द्रह दिनों में
सेवा व आरती के दौरान घंटी व झालर नहीं बजाई जाएगी। ठाकुरजी को राजभोग भी
नहीं लगाया जाएगा। सुबह व शाम बालभोग लगाया जाएगा। इसमें ठाकुरजी को केसर दूध व ठंडाई का भोग लगाया जाएगा।

दो को मिलेगा दर्शन का सुख

पन्द्रह दिन वैद्यजी की देखरेख में रखने के बाद २ जुलाई को निजमंदिर में
सिंहासन पर भगवान जगदीश के दर्शन करवाए जाएंगे। इस दिन सिर्फ आधा घंटे
दर्शन करवाए जाएंगे। बाद में ३ जुलाई को हवन पूजन किया जाएगा। ४ तारीखे
को भगवान को विशेष भोग लगाया जाएगा व ठाकुरजी के रथ में दर्शन होंगे।


सेवा का यह भाव अनूठा

भगवान बीमार नहीं होते, दरअसल यह भी सेवा का एक तरीका है। मंदिर में
भगवान का बाल स्वरूप मानकर सेवा की जाती है। मंदिर के स्वामी एसके चिरंजीवी व मंदिर मैनेजर कमलेश दुबै बताते हैं कि जिस तरह से बालक के स्वास्थ्य को छोटी-छोटी चीजें प्रभावित कर बीमार कर देती है, इसी भाव से कि ज्येष्ठ पूर्णिमा पर ज्यादा स्नान करने व आम का अत्यधिक सेवन करने से उनका स्वास्थ्य खराब हो गया।

 

घर में बीमार बालक का जिस तरह से खयाल रखा जाता है, उसी सावचेती के साथ भगवान की सेवा की जाती है। इस दौरान ठागवान को विश्राम में कोई खलल न पड़े इसलिए झालर इत्यादी नहीं बजाते। भोग इत्यादि में भी ध्यान रखा जाता है। यह परम्परा करीब ३५० वर्षों से निभाई जा रही है। दरअसल यह लोगों को संदेश देने का भी तरीका है कि बदलते मौसम में बच्चों का ध्यान इस तरह से रखें कि उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर न पड़े।