
कोटा. Kota Coaching Student: बॉलीवुड फिल्म 'थ्री इडियट' के इस डायलॉग में बहुत गहराई है कि दोस्त परीक्षा में फेल हो जाए तो दुख होता है...और दोस्त टॉप कर जाए तो 'बहुत दुख' होता है...। कड़ी प्रतिस्पर्धा के दौर में एक दोस्त, जो कि स्टूडेंट भी है, कि मानसिकता को समझने के लिए इससे अच्छा उदाहरण नहीं मिल सकता। सफल होने के सपनों के साथ कोटा आए विद्यार्थियों बीच दोस्ती के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा भी होती है।
अपने माता-पिता, सगे-संबंधियों को छोड़कर छोटी उम्र में जीवन का मुकाम हासिल करने कोचिंग सिटी कोटा आए बच्चे अपने मन का बोझ हल्का करने के लिए दोस्तों से बात तो करते हैं, लेकिन उनके बीच प्रतिस्पर्धा बनी रहती है। कई बार कई ऐसी बातें होती हैं, जिन्हें वह अपने अभिभावकों से शेयर नहीं कर पाते, ऐसे में दोस्त ही काम आते हैं। लेकिन, बच्चों की दोस्ती पर प्रतिस्पर्धा हावी होती जा रही है। इसका असर बच्चों की मानसिकता पर पड़ रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों में पनपते तनाव को कम करने के लिए प्रतिस्पर्धा के साथ सामाजिकता से जोड़ना होगा।
यह बोले कोचिंग स्टूडेंट
बिहार निवासी प्रिंस ने बताया कि वे कोटा में रहकर आईआईटी की तैयारी कर रहा है। सुबह 7 बजे से दोपहर 1 बजे तक कोचिंग में रहता है। उसका यहां कोई दोस्त नहीं है। उत्तरप्रदेश निवासी आर्य ने बताया कि वे आईआईटी की तैयारी कर रहा है। दोपहर 2 बजे से रात 8 बजे तक कोचिंग में पढ़ाई करता है। यदि कोई डाउट हो तो उसे क्लियर करते हैं। इससे कोचिंग में ही समय बीत जाता है। कोचिंग व बाहर कोई दोस्त नहीं है, जिससे वे अपने मन की बात शेयर कर सके।
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कोचिंग स्टूडेंट में ज्यादा तनाव
गवर्नमेंट नर्सिंग कॉलेज कोटा के मनोविज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दिनेश शर्मा ने बताया कि पिछले दिनों उन्होंने 400 कोचिंग स्टूडेंट पर सर्वे किया था। इसमें 6 C कम्यूनिकेशन, कैयरिंग, कॉफिंडेंट, कॉम्पीटेंट, कॉन्ट्रीब्यूशन, करेक्टर बिन्दुओं को पॉजिटिव यूथ डेवलपमेंट प्रोग्राम में शामिल किया था। सर्वे में सबसे बड़ा कारण यही सामने आया कि कोचिंग में पढ़ रहे स्टूडेंट कॉम्पीटिशन के चलते ज्यादा तनाव में हैं। स्कूल में बच्चों के दोस्त होते हैं, जिनके साथ पढ़ाई का तनाव कम हो जाता है, लेकिन कोचिंग में प्रतिस्पर्धा के कारण स्टूडेंट दोस्त नहीं बना पाते। उनमें यह कम्यूनिकेशन गेप देखा गया। वे अपने मन की बात खुलकर नहीं करते हैं।
पैरेंट्स का भी दबाव
कोचिंग में पढ़ाई के साथ पैरेंट्स का दबाव भी देखा गया है। वे अपनी भावनाएं उन पर थोपते हैं। बच्चों को दोस्त बनाने से मना करते हैं। उन्हें लगता है कि दोस्त बनाने से वे अपने लक्ष्य से भटक जाएंगे। कोचिंग के अलावा हॉस्टल में भी सिंगल रूम कल्चर से समस्या बढ़ रही है। दोस्त नहीं होने से बच्चे अपने मन की बात शेयर नहीं कर पाते, इस कारण वे कई बार दबाव में आ जाते हैं और गलत कदम उठा लेते हैं।
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करियर में और भी ऑप्शन हैं
डॉ. शर्मा के अनुसार, कोचिंग बच्चों में कॉिन्फडेंस डवपल करना चाहिए। शिक्षक के अलावा पैरेंट्स भी यह बताएं कि डॉक्टर व इंजीनियर नहीं बन सकते तो करियर में और भी ऑप्शन हैं। अन्य क्षेत्रों में भी सफल होकर परिवार व समाज का नाम रोशन कर सकते हैं। उन्होंने बच्चों में सुसाइड की प्रवृत्ति रोकने के लिए इन्फोरमेंशन नॉलेज बुक्स बच्चों को दी। सात दिन बाद वापस उसने वही सवाल पूछे तो उनकी भावना बदली नजर आई।
Updated on:
28 Aug 2023 12:31 pm
Published on:
28 Aug 2023 10:51 am
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