
Big News: राजावत की दबंगई, जिस काम के लिए यूआईटी अधिकारियों को फटकारा, उसी में निकला फर्जीवाड़ा
कोटा विधायक भवानी सिंह राजावत ने अपने कार्यकर्ताओं के काम नहीं होने की शिकायत पर यूआईटी पहुंच कर अधिकारियों को जमकर लताड़ा। साथ ही उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगा दिए। उन्होंने अधिकारियों की बैठक बुलाकर भरी सभा में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि यूआईटी में बिना पैसे दिए काम नहीं होता।
अधिकारी पैसे खाने के लिए लोगों को चक्कर पे चक्कर कटाते हैं। उनके इस बयान से कोटा की राजनीति में भूचाल आ गया। यूआईटी अध्यक्ष ने कमेटी गठित कर राजावत के आरोपों की जांच करवाई। जिसमें चौंकाने वाला खुलासा हुआ। जिस काम के लिए विधायक ने अधिकारियों को जमकर लताड़ा उसी काम में फर्जीवाड़ा मिला।
गौरतलब है कि कार्यकर्ता द्वारा दुकान के प्लेटफॉर्म को बेचने की स्वीकृति जारी कराने के लिए लाडपुरा विधायक ने नगर विकास न्यास अफसरों को फटकार लगाई थी, उसकी रजिस्ट्री ही फर्जी निकली। न्यास ने प्रथम आवंटी को दुकान के साथ उसके सामने का प्लेटफॉर्म कभी बेचा ही नहीं था, लेकिन उसने इकरारनामे के जरिए उसे दूसरे को बेच दिया। न्यास कर्मचारियों ने भी दूसरे खरीदार की रजिस्ट्री कर दी। यूआईटी ने अब रजिस्ट्री रद्द कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, वहीं दोषी कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी है।
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राजावत ने यूआईटी पर लगाया था भ्रष्टाचार का आरोप
विधायक भवानीसिंह राजावत ने यूआईटी में भ्रष्टाचार का आरोप लगा उनके कार्यकर्ताओं का काम समय पर नहीं करने के लिए अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई थी। जिन मामलों की फेहरिस्त विधायक ने अधिकारियों को दी, उनमें नई धानमंडी की दुकान संख्या 27 ए के प्लेटफॉर्म की विक्रय स्वीकृति जारी नहीं करने का मामला भी शामिल था। विवाद के बाद जब यूआईटी ने इस प्रकरण की जांच कराई तो बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ।
कभी आवंटित ही नहीं की दुकान
मंडी समिति योजना के तहत यूआईटी ने इस दुकान की रजिस्ट्री पहले खरीदार छीतरमल के नाम की थी, जबकि यूआईटी ने न तो दुकान का प्लेटफॉर्म कभी बेचा, न ही उसकी लीज डीड जारी की। छीतरमल ने भी बिना प्लेटफॉर्म के यह दुकान राजेंद्र जैन को बेच दी। जैन ने 15 मार्च 2010 को दुकान मोहम्मद सलीम को बेच दी। विक्रय पत्र के आधार पर यूआईटी ने दुकान का नाम हस्तांतरण भी कर दिया।
कर्मचारियों की मिलीभगत
कर्मचारियों की मिलीभगत से खेल दुकान नाम होने के बाद मोहम्मद सलीम ने इकरारनामे का हवाला देते हुए प्लेटफॉर्म भी हस्तांतरित करने के लिए आवेदन किया। 13 अक्टूबर 2017 को यूआईटी के कर्मचारियों की मिलीभगत से सलीम ने प्लेटफॉर्म खरीदे बिना ही उसकी रजिस्ट्री अपने पक्ष में करवा ली, लेकिन जब दुकान और प्लेटफॉर्म बेचने के लिए उसने यूआईटी से विक्रय स्वीकृति मांगी तो पूरे फर्जीवाड़े की पोल खुल गई।
Published on:
21 May 2018 05:43 pm
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