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election 2023 satire : चुनावी दिनों की चकल्लस

चुनाव सामने हैं और जनता के सामने भी प्रश्न खड़े हैं मुंह बाए। लोकतंत्र की यही खूबी है कि पांच साल भी जनता प्रश्नों के घेरे के ही उलझी रहती है। यह प्रश्न नहीं चक्रव्यूह के घेरे जैसे हैं और पब्लिक मानो अभिमन्यु है। सब तरफ़ बंधु बांधव और चाचा, ताऊ। सबकी नज़र कि मैं वोट खाऊं। कोई जाति का है तो कोई धर्म की बघार से मस्त हो रहा है। प्रश्न हैं ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहे।

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कोटा

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Deepak Sharma

Nov 08, 2023

Rajasthan Assembly Election 2023

डॉ. अतुल चतुर्वेदी
चुनाव सामने हैं और जनता के सामने भी प्रश्न खड़े हैं मुंह बाए। लोकतंत्र की यही खूबी है कि पांच साल भी जनता प्रश्नों के घेरे के ही उलझी रहती है। यह प्रश्न नहीं चक्रव्यूह के घेरे जैसे हैं और पब्लिक मानो अभिमन्यु है। सब तरफ़ बंधु बांधव और चाचा, ताऊ। सबकी नज़र कि मैं वोट खाऊं। कोई जाति का है तो कोई धर्म की बघार से मस्त हो रहा है। प्रश्न हैं ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहे। किस को टिकट मिलेगा? मेरे वाले को कि तेरे वाले को? राम को कि रहीम को। क़यास चल रहे हैं। कोशिशें की जा रही हैं।

जनता को लुभाने के टोटके किए जा रहे हैं। रेवड़ियां बंट रही हैं। मंत्र फेंके जा रहे हैं। अफ़वाहें आकार ले रही हैं। लॉलीपॉप दिखायी जा रही हैं। क्या करें सत्ता का सूर्य आजकल इतनी अभ्यर्थनाओं के उपरांत ही निकलता है। आचार संहिता का भूत अलग आतंकित कर रहा है। आचार संहिता के भय से सरकारें थर्राने लगती हैं। उनके बेहतरीन प्रदर्शन के दिन हैं यह। रात रात भर बैठकें हो रहीं हैं। उदारता के ख़ज़ाने खुल रहे हैं। मुक्त हस्त से दानवीर कर्ण के नए एडिशन सामने आ रहे हैं।

तमाम आदेश सुप्तावस्था के तरकश से निकाल कर फेंके जा रहे हैं। शायद कोई तीर निशाने पर लग जाए और वोट की गंगा बह निकले पार्टी के पक्ष में। उधर ख़म ठोकने की वर्जिश जारी है। तरह तरह के पहलवान हैं अखाड़े में। कुछ हुंकार रहे हैं, कुछ चीत्कार रहे हैं तो कुछ त्राहिमाम त्राहिमाम पुकार रहे हैं। कुछ जुगाड़बद्ध हैं, तो कुछ करबद्ध हैं, कुछ कटिबद्ध हैं कि पलट कर रहेंगे बाज़ी। इन संभावनाओं और चर्चाओं के बीच चुनाव का बिगुल फुंकने वाला है।

रणभेरी की इस प्रतीक्षा में दिन बड़े हलकान हैं। संभावित दावेदारों की दयनीयता और विनम्रता देखने काबिल है। काश ऐसा सुदर्शन स्वरूप वे सत्तानशीं होने के बाद भी बनाए रख सकें तो तमाशा, नौटंकी और ख़्याल गायकी के इतने हथकंडे न अपनाने पड़ें। सहजता ही सुगमता है, लेकिन वही सबसे दुर्लभ है प्राणियों में। यही चुनाव सत्य है और जीवन सत्य भी ।