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अन्नदाता के आंसूः लोगों के पेट की आग बुझाने के लिए जिंदगी को दांव पर लगा रहा राजस्थान का किसान

सरकार और अफसरों की तानाशाही के आगे बेबस राजस्थान का किसान दूसरों के पेट की आग बुझाने के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाने को मजबूर है।

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Farmers of Rajasthan are putting their lives for irrigation

चारों और घना कोहरा... हाड़ जमा देने वाली ठंड... पारा 10 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे उतरने के उतावला हो रहा था... जहा सोचकर देखिए कि क्या आप ऐसी कड़कड़ाती ठंड में खेतों पर जाने के लिए गर्म बिस्तर छोड़ना और रजाई से मुंह बाहर निकालना चाहें? बिल्कुल भी नहीं। कोई भी इसके लिए तैयार नहीं होगा, , लेकिन इस देश का अन्नदाता लोगों के पेट की आग बुझाने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर रहा था। सिंचाई के लिए लगातार 7 घंटे बिजली सिर्फ रात में मिलती है इसलिए वह इस ठिठुरती ठंड में खेतों में पानी लगा रहा था। अन्नदाता का दर्द साझा करने राजस्थान पत्रिका की टीम रात में खेतों की ओर निकली और जो हालात देखे वो किसानों की जुबानी आप खुद जान लीजिए...

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रात साढ़े 12ः00 बजे @ काला तालाब

म्हां भी मनख छां

काला तालाब गांव के पास किसान शिवशंकर खेत की मेड़ पर बैठे मिले। पूछा तो बताया कि पास के खेत मालिक से किराए से पानी लेकर लहसुन को पिला रहे हैं। वो कहते हैं, 'दन मं थ्रीफेज बिजली देबा की पैल्यां भी करसाणा ने मांग उठाई छी। पण हाल ताई भी काईं न होयो। म्हां भी तो मनख छां। अगर दन में लाइट मल जावे तो खेतां में भी पाणी लाग जावे। कम सूं कम रातां तो काळी न करणी पड़े।'

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रात 11ः00 बजे @भदाना-किशनपुरा

अधिकार्यां के आगे बेबस

भदाना-किशनपुरा तकिया मार्ग पर खेत का पलेवा करते किसान तुलसीराम सुमन मिले। वो गेहूं की फसल के लिए पलेवा करने में जुटे थे। बकौल तुलसीराम 'नहर में पाणी आयो तब तो खेत में धान कट्यो पड़्यो छो। अब खेत खाली होयो तो नहर बंद हो ग्यी। अस्यां म्हं मोटर चला कै पाणी लेणों पड़ र्यो छै। काईं करां, अधिकार्यां के आगे बेबस छां। दन में थ्रीफेज लाइट दे दे तो कड़ाका की सर्दी में रात काळी न होवे।'

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रात 1ः30 बजे@अर्जुनपुरा का माल

करसाणां की सोचे सरकार

अर्जुनपुरा का माल में काला तालाब निवासी अब्दुल हमीद गौड़ लहसुन की फसल में पानी देते हुए मिले। वे नलकूप के पास ही अलाव जलाकर बैठे थे। नलकूप से सबमर्सिबल मोटर से पानी बह रहा था। गौड़ ने कहा कि 'दन मं सिंगल फेज लाइट ही आवे है। रात मं थ्रीफेज आबा पे मोटर चाले। अस्यां कड़ाका की रात मं भी खेत में रहणो पड़े। करसाण का बारा म्है भी सरकार के तांई सोचणी चाहिजै।'