
रोहित शर्मा/मोईकलां। इसे किसानों की बदकिस्मती कहे या समय का तकाजा कि मोईकलां क्षेत्र के बूढनी गांव के दर्जनों किसान ऐसे हैं जिनकी सोयाबीन की फसल समय पर कट तो गई लेकिन अभी तक तैयार नहीं हुई। इसकी वजह है परवन नदी के टापू पर स्थित किसानों की जमीन। Rajasthan के बपावरकलां थाना क्षेत्र के खडिया ग्राम पंचायत का छोटा सा गांव है बूढनी। गांव के करीब 50 किसानों की करीब साढे सात सौ बीघा जमीन परवन नदी के टापू के बीच में आ रही है।
साढे सात सौ बीघा जमीन का यह टापू नवम्बर माह में भी परवन नदी के पानी से चारों तरफ से घिरा हुआ है। खेतों तक पहुंचने के लिए किसानों के पास छोटी नाव के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यहां पुलिया का निर्माण नहीं होने से किसान अपनी फसल को समय पर तैयार नहीं कर पाते है। बूढनी गांव के किसानों ने समय पर सोयाबीन की बुवाई कर तो दी, समय पर मजदूरों से कटवा भी ली, लेकिन विडंबना है कि उनकी फसल अभी तक तैयार नहीं हो पाई है।
किसानों का कहना है कि सोयाबीन को निकालने के लिए अभी खेतों तक थ्रेसर नहीं पहुंच पा रहा है। हंकाई व बुवाई के लिए ट्रैक्टर तो नाव के सहारे खेतों तक ले जाते हैं पर थ्रेेसर नहीं जा सकता। किसानों का कहना है कि खाद, बीज, मजदूर, बुवाई करने की मशीन, डीजल सबकुछ नाव से टापू तक पहुंचाते है।
ताज्जुब तो यह है कि साढे सात सौ बीघा जमीन में फसल करने के लिए गांव के दो किसानों ने दो छोटे ट्रैक्टर खरीद रखे हैं। गांव के सभी किसान इन दोनों छोटे ट्रैक्टरों को नावों से इस पार से उस पार पहुंचाते है और बुवाई का काम निपटने के बाद दोनों ट्रैक्टरों को वापस नाव से बूढनी गांव लाया जाता है।
बांध से पानी छोड़ने के बाद मिलेगा रास्ता
गांव के किसानों ने बताया कि तुलसा बांध से रबी की फसलों के लिए पानी छोडऩे के 15 दिन बाद नदी के उपरी हिस्से का पानी कम हो जाएगा। जिसके बाद उसी रास्ते से ट्रैक्टर, ट्रॉली व थ्रेसर को खेतों तक पहुंचाया जाएगा। तब जाकर सोयाबीन की फसल तैयार हो पाएगी।
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दो माह तक वही रहते ट्रैक्टर
गांव के किसानों के पास वैसे तो बड़े ट्रैक्टर भी हैं, लेकिन उनका वजन ज्यादा होने के कारण नाव में नहीं ले जाया जा सकता, इसलिए गांव के दोनों छोटे ट्रैक्टरों को उस पार पहुंचाने के बाद ट्रैक्टर दो माह तक वही रहते हैं।
गुजर गई पीढ़ियां
किसानों का कहना है कि पहले उनके परिवार के बुजुर्ग यहीं काम करते थे। अब वो कर रहे है। नदी में ट्रैक्टर ले जाते समय खतरा भी रहता है।
पथरा गई आंखें
गांव के किसान बताते है कि जब तक गांव से टापू तक पुलिया नहीं बन जाती तब तक समस्या मिटने वाली नहीं है। पुलिया निर्माण की उम्मीद करते-करते आंखें पथरा गई। परन्तु अभी तक किसी भी जनप्रतिनिधि ने गांव पहुंचकर यह भरोसा तक नहीं दिलाया कि पुलिया निर्माण को लेकर प्रयास किया जाएगा।
Published on:
12 Nov 2022 04:56 pm
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