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चटोरों की निकल पड़ी लॉटरी, हर रोज इन चीजों को खाने आते हैं यहां 10 हजार लोग

कोटा का दशहरा मेला सिर्फ अपनी भव्यता के लिए ही विख्यात नहीं है। यहां देश भर के स्वाद और लजीज पकवानों का भी संगम होता है।

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Food Festival in Kota Dussehra Fair

कोटा दशहरे को यूं ही अंतरराष्ट्रीय पहचान नहीं मिली। विभिन्न अंचलों में खास महत्व रखने वाले उत्पाद इस मेले में देखने को मिलते हैं। लिहाजा, लोग सालभर तक इसका इंतजार करते हैं। चटोरों की तो मानो 20 दिन के लिए लॉटरी ही लग जाती है। एक ओर महकते पंजाबी व्यंजन, दूसरी ओर साउथ इंडियन का स्वाद। उत्तर भारत के तो हर शहर का खास पकवान यहां हर वक्त तैयार मिलता है।







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ब्रांड कोटा पन्नालाल पकौड़ी

शाम ढलने के साथ ही 'पन्नालाल पकौड़ी' काउंटर पर कढ़ाई शुरू हो जाती है। देर रात तक ग्राहक पकौड़ी का स्वाद चखते हैं। पकौड़ी व्यवसायी सुनील वैष्णव बताते हैं कि दशहरे से ही गोभी की आवक शुरू हो जाती है जो होली तक रहती है। इस दौरान चार माह के सीजन में वे पकौड़ी बनाते हैं। चैन्नई, दिल्ली, मंदसौर आदि जगह पर आयोजित हुए फूड फेस्टिवल में वे पकौड़ी का प्रदर्शन कर प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।

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नसीराबाद का कचौरा

निराले स्वाद के धनी नसीराबाद के कचौरे सालभर अपनी तासीर शहरवासियों की जुबां पर रखते हैं। मेला आया कि लोग बरबस खिंचे चले आते हैं स्टॉल्स पर। कचौरे में मसालों का मिश्रण ही इसके बेजोड़ स्वाद का रहस्य है। कचौरा व्यवसायी राजेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि एक कचौरे का वजन 600 से 800 ग्राम तक रहता है। कचौरा व्यवसाइयों दावा है कि कचौरा इतना प्रसिद्ध है कि विदेशों तक भी इसकी मांग रहती है।

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हर जुबान का जायका है यहां मौजूद

इसके साथ ही राजस्थानी दाल बाटी, चूरमा, कथ भापले से लेकर, आगरा की कचौड़ी-बेडई, पोठा, मथुरा का पेड़ा, उत्तराखंड की फेमस बाल मिठाई, डोसा-इडली-बड़े से सजी साउथ इंडियन थाली, छोले-भटूरे से लेकर आलू नान तक कोटा दशहरा मेला के दस्तरखान पर सजी हुई हैं। गर्म-गर्म रसगुल्ले से लेकर बड़ा गुलाबजाम और इमरती-रबड़ी की सुगंध आपके मुंह में पानी ले आएगी। जायके के दीवानों के लिए बनारसी पान तक का इंतजाम है इस मेले में।