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BIG News: कोटा में अवैध कोचिंग हॉस्टलों की भरमार, खतरे में एक लाख बच्चों की जान

Kota coaching, coaching institute, coaching hostels: कोटा आने वाले सवा लाख से ज्यादा कोचिंग छात्र भगवान भरोसे जिंदगी गुजार रहे हैं।

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कोटा

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Zuber Khan

Oct 07, 2019

coaching hostels

BIG News: कोटा में अवैध कोचिंग हॉस्टलों की भरमार, खतरे में एक लाख बच्चों की जान

कोटा. डॉक्टर-इंजीनियर बनने का ख्वाब लेकर कोटा आने वाले सवा लाख से ज्यादा कोचिंग छात्र भगवान भरोसे जिंदगी गुजार रहे हैं। ( Kota coaching ) कोटा में करीब 31,200 हॉस्टल पीजी हैं, (coaching institute ) लेकिन इनमें से सिर्फ 675 ही किसी एसोसिएशन से पंजीकृत हैं और सरकारी कायदे-कानून भी सिर्फ इन्हीं तक सिमट कर रह जाते है। ( coaching hostel) इनमें से भी 85 फीसदी जिला प्रशासन की गाइड लाइन की पूरी पालना नहीं करते। ( Fire in coaching hostel )

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राजस्थान पत्रिका ने जनवरी 2018 में हॉस्टल और पीजी में रह रहे छात्रों की सुरक्षा व्यवस्था जांचने के लिए 'हालात-ए-हॉस्टल अभियान चलाया था। इस दौरान हॉस्टल एसोसिएशन के पदाधिकारी तक के हॉस्टल में बेसमेंट में किचिन चलता मिला था। इतना ही नहीं करीब 95 फीसदी हॉस्टलों में फायर फाइटिंग सिस्टम खराब पड़े थे। दिखाने के लिए सिलेंडर दीवारों पर तो टंगे थे, लेकिन उनकी डेट सालों पहले ही एक्सपायर हो चुकी थी। हॉस्टलों में कमरों का निर्माण इतने सघन तरीके से किया गया था कि आग लगने पर फायर ब्रिगेड भी अंदरूनी हिस्सों तक नहीं पहुंच पाए। अधिकांश हॉस्टल और पीजी बिना फायर एनओसी के ही चलते मिले थे। हद तो यह थी कि उनमें इमरजेंसी एग्जिट तक का बंदोबस्त नहीं था।

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बनानी पड़ी थी गाइड लाइन
राजस्थान पत्रिका के खुलासे के बाद बाल संरक्षण आयोग और जिला प्रशासन बच्चों की सुरक्षा को लेकर न सिर्फ गंभीर हुए, बल्कि आयोग की अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी और तत्कालीन जिला कलक्टर डॉ. रविकुमार सुरपुर ने हॉस्टल और पीजी संचालकों के लिए गाइड लाइन तक बना दी। डॉ. सुरपुर ने इस 19 बिंदुओं वाली गाइड लाइन की अनिवार्य पालना सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के नेतृत्व में सेक्टर कमेटियां गठित की थीं, लेकिन जब तक वह जिला कलक्टर रहे, तब तक यह कमेटियां अस्तित्व में रहीं। उनके जाते ही कमेटियों के कार्रवाई करने की बात तो दूर इस गाइड लाइन का जिक्र तक बंद हो गया।

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सिर्फ एसोसिएशन पर बनाया दबाव
गाइड लाइन की पालना के लिए सेक्टर कमेटियों ने अपने क्षेत्रों में स्थापित एक-एक हॉस्टल का मौका मुआयना करने के बजाय सीधे हॉस्टल एसोसिएशनों पर जिम्मेदारी डाल निरीक्षण से पल्ला झाड़ लिया। इसके चलते हॉस्टल एसोसिएशन में पंजीकृत नहीं होने वाले 13 हजार से ज्यादा पीजी और हॉस्टल्स को सीधे तौर पर कायदे-कानून से बाहर कर दिया गया। गाइड लाइन की पालना न होने पर हॉस्टल और पीजी का लाइसेंस रद्द करने की घोषणा भी की गई थी, लेकिन गाइड लाइन जारी होने के 22 महीने बाद भी कोटा के 85 फीसदी हॉस्टल और पीजी ने लाइसेंस लेने या किसी एसोसिएशन से पंजीकृत होने की जरूरत ही नहीं समझी।

85 फीसदी हॉस्टल तो बिना लाइसेंस के ही चल रहे हैं। ऐसे में गाइड लाइन की पालना सिर्फ पंजीकृत छात्रावासों तक ही सिमट जाती है। जिला प्रशासन को पीजी और हॉस्टल संचालित करने से पहले लाइसेंस लेने के लिए सख्ती करनी होगी, तभी गाइड लाइन की पालना हो पाएगी।
मनीष जैन, फाउंडर प्रेसीडेंट, कोटा हॉस्टल एसोसिएशन