Jain Samaj news: कोटा. चैन्नई के प्रतिष्ठित व्यवसायी शांति लाल गोलेच्छा कोटा में चातुर्मास कर रहे खरतरगच्छाचार्य संत जिन पीयूष सागर सुरीश्वर के सान्निध्य में दीक्षा लेंगे। गोलेचछा चैन्नई के ग्रेनाइट के प्रतिष्ठित व्यवसायी हैं। वह 72 वर्ष की आयु में दीक्षा ले रहे हैं। दीक्षा कब होगी, और कहां होगी, फिलहाल यह तय होना है, संयम व सन्यास की ओर बढ़ने की कहानी कुछ खास है।
गोलेच्छा ने बताया कि उनका शुरू से ही धार्मिक कार्यों में रूझान रहा है। करीब 25 वर्षों से वह संतों के सान्निध्य में रहे हैं। वह 15 वर्षी तप कर चुके हैं। 8 वर्ष से एक समय आहार ले रहे हैं। परिवार में दो बेटे व पत्नी मंजू गोलेच्छा समेत भरापूरा परिवार है, लेकिन गोलेच्छा मानते हैं कि जीवन मरण के बंधन से मुक्त होने का एक यही मार्ग है। इस कारण इस मार्ग को चुना है। यह सब पांच मिनट में तय हुआ। उन्होंने पत्रिका बताया कि वह शुरू से ही साधु संतों के सान्निध्य में रहे हैं। संतों की शरण व भक्ति मार्ग से बढ़कर सुख नहीं है,इसे उन्होंने महसूस किया है। गोलेच्छा मूल रूप से फलौदी राजस्थान के रहने वाले हैं, लेकिन वर्षों से चैन्नई में रह रहे हैं।
मां की अंतिम इच्छा थी, मेरा बेटा संयम के मार्ग पर चले..
गोलेच्छा के मन में दीक्षा के भाव उनमें शुरू से ही थे, लेकिन पांच मिनट में तय हो गया कि सन्यास मार्ग पर बढ़ना है। छह माह पहले वह उज्जैन गए व साध्वी वृत्तियशा श्री के दर्शन् किए और उनसे जीवन के कल्याण के लिए मार्गदर्शन चाहा तो उन्होंने मोक्ष के लिए इस मार्ग पर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। साध्वी के मार्गदर्शन ने इस मार्ग पर बढ़ने के लिए प्रेरित कर दिया। इस दौरान मां के अंतिम वाक्य थे कि मेरा बेटा संयम की राह पर चले। पांच साल की आयु में शांति लाल के पिता की कस्रूर चंद का निधन हो गया था। मां छोटां बाई गोलेच्छा ने ही शांति के जीवन को संवारा। सौभाग्य है अंतिम इच्छा को पूर्ण करुंगा।
पत्नी ने कहा देरी किस बात की
संतों से दीक्षा की इजाजत के साथ पत्नी मंजू गोलेच्छा से इजाजत ली तो उन्होंने सहर्ष स्वीकार। पत्नी ने तो इतना तक कहा कि इतनी देरी क्यों कर दी। बेटे विकास व रुपेश ने कुछ ने कुछ माह के लिए ठहरने का आग्रह किया। इससे छह माह की देरी हो रही है। अब सभी का सहयोग है।
कोटा में सत्कार
गोलच्छा के कोटा प्रवास के दौरान वरघोड़ा निकाला गया। इसमें बडी संख्या में लोग शामिल हुए।मुकुक्षु गोलेच्छा को देव दर्शन करवाया गया। गोलेच्छा ने वर्षीदान भी किया। समाज के लोगों के साथ गोलेच्छा के परिजन भी वरघोड़े में शामिल हुए। इससे पहले संताें कर प्रेरणा से चार पट्टों की स्थापना की।