
Jawaharlal Nehru himself did the prediction of his death
नेहरू-गांधी परिवार की वंशावली से लेकर उनकी धार्मिक मान्यताओं पर आए दिन कोई ना कोई पोस्ट सोशल मीडिया पर पढ़ने को मिल ही जाती है। इन पोस्ट में सबसे ज्यादा निशाना देश के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रा सेनानी जवाहर लाल नेहरू की धार्मिक आस्था पर ही साधा जाता है। कोई उन्हें नास्तिक साबित करने की कोशिश में जुटा रहता है तो कोई उन्हें गैर हिंदू बताने में, लेकिन कभी किसी पोस्ट में उसकी सच्चाई साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया होता। जबकि तमाम सबूत ऐसे हैं जो नेहरू को भगवान श्री कृष्ण का अनुयायी और प्रकांड भविष्यवेत्ता साबित करते हैं। जिनमें से एक है राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की लिखी पुस्तक 'लोकदेवता नेहरू' जो बाद में "पंडित नेहरू और अन्य महापुरुष" के नाम से प्रकाशित हुई।
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दिनकर की किताब से हुए खुलासा
राष्ट्रकवि दिनकर की इन किताबों से देश के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी जवाहर लाल नेहरू के निजी जीवन के बारे में तमाम चौंकाने वाली जानकारियां मिलती हैं। सन 1965 में लिखी गई इस किताब में राष्ट्रकवि दिनकर ने नेहरू जी की धार्मिक मान्यताओं, पूजा पाठ, ज्योतिष , कर्मकांड और आम हिंदुओं की तरह उनके परिवार में पाए जाने वाले वंशानुगत अंधविश्वासों को भी इस किताब का हिस्सा बनाया है।
श्रीमद भागवत गीता और ध्यान
राष्ट्रकवि दिनकर इस पुस्तक में लिखते हैं कि 'राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन मुझसे कहते थे कि मैं प्रधानमंत्री को भगवत के चुने हुए श्लोकों की व्याख्या सुनाता हूँ और वे जिस मुद्रा में इस आख्यान को सुनते हैं वह मुद्रा भक्तों सी है। राष्ट्रपति ने ही मुझे बताया था कि टंडन जी से मिलने को जब राष्ट्रपति इलाहाबाद गए, तब टंडन जी ने उनसे कहा, जवाहरलाल पर आपकी संगति का अच्छा प्रभाव पड़ा है. पिछली बार जब वह प्रयाग आया था वह आनंदमयी माँ के कीर्तन में गया और वहां डेढ़ घंटे बैठा रहा।" इसी किताब में दिनकर लिखते हैं कि पंडितजी के मरने के बाद 'कल्याण' का जो भक्ति अंक प्रकाशित हुआ उसमें माँ आनंदमयी के साथ पंडितजी के दो फोटो छपे हैं। एक में माँ आनंदमयी भी बैठी हैं और पंडित जी ध्यान में हैं, मानो माँ उन्हें ध्यान करवा रही हों। दूसरे में वे हाथ में माला धारण किये माताजी के पास खड़े हैं।
हठयोगी थे नेहरू!
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर इसी किताब में आगे लिखते हैं कि ' गीता वे जब-तब पढ़ा करते थे और हठयोग के प्रति भी आस्थावान थे। शीर्षासन तो उन्होंने जेल में ही आरम्भ किया था।" दिनकर बताते हैं कि जवाहर लाल नेहरू को तमाम यौगिक क्रियाएं धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने डरते-डरते सिखाईं थीं। दिनकर इसी किताब में लिखते हैं कि ' धीरेन्द्र ब्रह्मचारी से पंडित जवाहर लाल नेहरू ने शंख-प्रक्षालन आदि कुछ यौगिक क्रियाएं भी सीख ली थी। मैंने एक दिन धीरेन्द्र ब्रह्मचारी से पूछा, पंडितजी को योग ? सिखाने में आपको भय नहीं लगता है? जिसके जवाब में धीरेन्द्र जी ने कहा, पहले के छः-सात दिन तो मुश्किल के रहे। पंडितजी पर क्रियाओं का कोई फल ही नहीं होता था। मैं मन ही मन थोडा सहमने भी लगा था, किन्तु पंडितजी ने ही मुझे यह कहकर आश्वस्त किया था कि घबराने की क्या बात है, जब तक कहियेगा कोशिश करता रहूँगा. पीछे क्रिया सफल हो गई और पंडितजी बहुत प्रसन्न हो गए।'
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मौत की भविष्यवाणी
जवाहर लाल नेहरू ज्योतिषीय गणनाओं में भी खासे माहिर थे। राष्ट्रकवि दिनकर की ही किताब में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है। दिनकर लिखते हैं कि 'आदरणीय श्री प्रकाश नारायण सप्रू ने एक दिन मुझे बताया, कि कई वर्ष पूर्व पंडितजी एक दिन इलाहाबाद में बैठकर अपने पुरखों के बारे में यह हिसाब लगाने लगे कि कौन कितनी उम्र में मरे थे। फिर आप ही आप बोल उठे, मैं चौहत्तर और पचहत्तर के बीच मरूंगा।' नेहरू की यह भविष्यवाणी एक दम सही साबित हुई। इतना ही नहीं नेहरू को अपनी मौत से पहले ही इसका आभाष हो गया था। इसीलिए उन्होंने संसद की कार्यवाही शुरू करने का समय भी बदलवाया था। दिनकर लिखते हैं कि "और यह क्या विस्मय की बात नहीं है कि जबकि यह तय हुआ था कि संसद 29 मई को आरम्भ होगी, पंडितजी ने ही इस निश्चय को बदलकर संसद के आरम्भ की तारिख 27 मई (27 मई को नेहरु जी का देहावसान हुआ था) कर दी थी?"
धार्मिक आस्थाएं और अंधविश्वास
दिनकर आगे लिखते हैं कि 'अंधविश्वास अथवा पौराणिक संस्कार की बातें पंडित जी के भी परिवार में थी। पंडितजी की माताजी उसी अर्थ में धार्मिक थीं, जिस अर्थ में हमारी हिंदू माताएं हुआ करती थीं। श्रीमती कृष्णा हठी सिंह(नेहरु जी की बहन) ने लिखा है कि सन 1919-20 के करीब नेहरु परिवार जिस घर में रहा करता था उसके जलावन वाले हिस्से में एक साँप रहता था। पंडितजी की माताजी का विश्वास था कि वह साँप खानदान की किस्मत का पहरेदार है। इसलिए उसे डराना नहीं चाहिए। किन्तु दुर्भाग्यवश एक नए नौकर को परिवार के इस विश्वास का पता नहीं था, इसलिए एक दिन जब सांप उनके सामने पड़ा उसे मार दिया। इससे परिवार आशंकाओं से सन्न रह गया। इसके बाद जब बाप-बेटे जेल चले गए, नौकरों ने इस बात का बड़ा विलाप किया कि साँप इस परिवार के सौभाग्य का सचमुच ही रक्षक था।"
Updated on:
15 Nov 2017 08:01 am
Published on:
15 Nov 2017 08:00 am
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