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कोटा कचौरीः चटखारे के लिए गंदगी भी नजरअंदाज

कोटा में हर जोर तकरीबन चार लाख कचौरी बिकती है। मांग बढऩे के साथ जब दुकानों के 'शोरूम' सजने लगे तो कचौरियां तलने के लिए कड़ाहे रखने की जगह कम पड़ गई। नतीजन, दुकानदारों ने इन्हें दुकान और फिर गोदाम से बेदखल कर सड़क पर खड़ा कर दिया और बजबजाती नालियां और कूड़े के ढ़ेर के बीच इन्हें तला जा रहा है।

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Vineet Kumar Singh

Mar 17, 2017

Kota Kachori is frying among the dirt

Kota Kachori is frying among the dirt

अल्फांसो के आम और दार्जलिंग टी की तरह ही कोटा की कचौरी भी बौद्धिक संपदा के अधिकार में 'ज्योग्रॉफिकल आइडेंटिफिकेशन' के तौर पर दुनिया भर में मशहूर है। उड़द की दाल में हींग के तड़के के साथ तली जाने वाली इस खास कचौरी को दुनिया कोटा कचौरी के नाम से जानती है, लेकिन गंदगी के बीच भभक रही भट्टियां अब इस नाम पर बट्टा लगाने लगी हैं।

कोटा में हर जोर तकरीबन चार लाख कचौरी बिकती है। मांग बढऩे के साथ जब दुकानों के 'शोरूम' सजने लगे तो कचौरियां तलने के लिए कड़ाहे रखने की जगह कम पड़ गई। नतीजन, दुकानदारों ने इन्हें दुकान और फिर गोदाम से बेदखल कर सड़क पर खड़ा कर दिया और बजबजाती नालियां, कूड़े के ढ़ेर और हवा के साथ उड़ती धूल मिट्टी के बीच इन्हें तला जाने लगा।

चटखारे लेते लोगों को भले ही कोटा कचौरी के स्वाद में कोई कमी महसूस हुई हो या नहीं, लेकिन उनकी सेहत पर जरूर इसका असर दिखने लगा। गुणवत्ता और स्वास्थ्य मानकों की धज्जियां उड़ाकर तली जा रही कोटा की कचौरी अब लोगों की सेहत पर भारी पड़ रही है। हालात यह हैं कि कचौरी के दीवानों की रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से घट रही है। अस्पतालों में बेमौसमी बीमारियों से पीडि़त लोगों की लंबी कतार इसकी जीवंत गवाह है। बावजूद इसके न तो लोगों को अपनी सेहत की चिंता है और ना ही स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में कोई कदम उठा रहा है।

पत्रिका की टीम शुक्रवार को भी जब शहर के प्रमुख बाजारों में कचौरी बनाने के दौरान साफ-सफाई के हालात देखने गई तो बेहद बुरे हालात मिले। हालांकि राजस्थान पत्रिका में खबर प्रकाशित होने के बाद चिकित्सा विभाग में हलचल हुई है। तय हुआ है कि सोमवार से खाद्य सुरक्षा टीमें तीन दिन का समझाइश अभियान शुरू करेंगी, फिर भी सुधार नहीं हुआ तो लापरवाह दुकानदारों पर शिकंजा कसा जाएगा।

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