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जिनके लिए बनाया घर वे ही घर से लापता, जिनका है दबदबा वह कर रहे राज

जिन घडिय़ालों की संख्या और अनुकूलन से उत्साहित होकर 4 दशक पहले चंबल घडिय़ाल अभयारण्य बनाया गया, वह घडिय़ाल अब वहां से विलुप्त हो गए हैं।

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कोटा

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abhishek jain

Dec 12, 2017

 घडिय़ाल

रावतभाटा.

जिन घडिय़ालों की संख्या और अनुकूलन से उत्साहित होकर 4 दशक पहले चंबल घडिय़ाल अभयारण्य बनाया गया, बदलते हालात में दुर्दिन ऐसे आए कि अब गांधीसागर से लेकर कोटा तक घडिय़ाल विलुप्त प्राय हो गए हैं। वन्य जीव गणना में घडिय़ाल अभयारण्य के इस क्षेत्र में एक भी घडिय़ाल नहीं मिला। केवल घडिय़ाल अब धौलपुर के आसपास ही रह गए हैं। धौलपुर में इनकी संख्या 1151 सौ है। जानकारों का कहना है कि राजस्थान में घडिय़ाल अब धौलपुर के अलावा जयपुर के चिडिय़ाघर में ही नजर आते हैं। उत्तरप्रदेश में इटावा के आसपास भी इनकी आबादी है। घडिय़ालों का अधिकांश प्रजनन संरक्षण कृत्रिम प्रजनन केन्द्रों में ही हो रहा है।
चंबल अभयारण्य में गांधीसागर से राणाप्रताप सागर, जवाहर सागर समेत कोटा तक जलीय जीवों में मगरमच्छों का दबदबा है। घडिय़ाल मगरमच्छ से दूर ही रहता है। घडिय़ाल व मगरमच्छ अपने इलाके को लेकर संवेदनशील होते हैं। मगरमच्छ ताकतवर होने के कारण घडिय़ालों को मार देते हैं। वर्ष 2015-16 की गणना में घडिय़ालों की संख्या अभयारण्य के गांधीसागर से लेकर कोटा तक क्षेत्र में में शून्य मानी गई है।

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भारी पड़ते हैं मगरमच्छ
आवास व प्रजनन क्षेत्रों की कमी एवं शिकार के कारण घडिय़ाल काफी कम हो गए हैं। मगरमच्छों की दखलंदाजी भी इनकी संख्या में कमी का अहम कारण है। मगरमच्छ का जबड़ा काफी शक्तिशाली होता है, जबकि घडिय़ाल का जबड़ा मछली पकडऩे के लिए बना है। इसके चलते मगरमच्छ घडिय़ालों पर भारी पड़ते हैं। घडिय़ाल दूरी बनाकर मगरमच्छों से अपनी हिफाजत करते हैं।

इनके लिए मुफीद भी
वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि मगरमच्छों के लिए चंबल नदी आदर्श साबित हो रही है। यहां इनके लिए मुख्य आहार मछलियां व काई काफी मात्रा में है। बांधों में मछलियों की अच्छी तादाद है। इससे इन्हें आहार की कोई कमी नहीं। चंबल के लम्बे क्षेत्र के चलते इनके आवास का भी संकट नहीं। नदी किनारे अनुकूल मिट्टी व जंगल इन्हें खासा रास आ रहा है। नवम्बर 2007 के फरवरी 2008 के बीच 4 माह में चंबल अभयारण्य में अज्ञात बीमारी ने 120 घडिय़ालों की जान ले ली थी।

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ढलान का अभाव
चंबल घडिय़ाल अभयारण्य रणथम्भौर डीएफओ महेश गुप्ता का कहना है कि जिस क्षेत्र में घडिय़ालों की संख्या कम बताई जा रही है, वहां रेत का अभाव है। घडिय़ालों को सैण्ड और स्लोपी एरिया रास आता है। इसके अलावा सेंचुरी के अन्य इलाकों में काफी मात्रा में घडिय़ाल हैं।

नहीं आया नजर
भैंसरोडगढ़़ वन अधिकारी अनुराग भटनागर का कहना है कि हमारे यहां व आसपास के क्षेत्र में काफी समय से घडिय़ाल वन गणना में नजर नहीं आया और न ही ऐसी कोई सूचना मिली। लेकिन क्षेत्र में यदि घडिय़ाल का प्रोजेक्ट चलाया जाए तो वह यहां सरवाइव कर भी सकता है। यहां मगरमच्छों की बहुतायत है।