
कड़वी हकीकत: कोबरा डसे या क्रेट, भारत में इलाज की दवा सिर्फ 1, हर साल सैकड़ों लोगों की मौत
सुरक्षा राजौरा @ कोटा.
देश में सर्पदंश (snake Bite ) के उपचार के तौर-तरीकों पर अब भी काफी काम होना बाकी है। इतना ही नहीं,विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के तय मानकों पर भी हम खरे नहीं उतरते हैं। देश में मिलने वाले विभिन्न प्रजातियों के विषैले सांपों के लिए एक ही प्रतिविष (एंटीवेनम) ( Snake antivenom ) तैयार किया जा रहा है। ( most Dangerous poisonous snakes) देश में प्रतिवर्ष हजारों लोगों की सांप के डसने से मौत हो जाती है। ( People Deaths From snake Bite ) हैरानी की बात यह है कि दुनियाभर में सांप के काटे जाने के 70 प्रतिशत मामले दक्षिण-पूर्व एशिया में होते हैं। हमारा उपमहाद्वीप भी इसी में शामिल है। विशेषज्ञों का मानना है कि सर्पविष के उपचार में अनुसंधान की काफी जरूरत है।
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दुनिया से बहुत पीछे हैं हम
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक विष का प्रतिविष अलग होना चाहिए, ताकि वह पीडित की समुचित मदद कर सके। ( Snake bite treatment medicine ) प्रतिविष रक्त में मिल कर सांप के जहर को समाप्त कर देता है। दुनियाभर में 3000 और भारत में 250 प्रजाति के सर्प सर्वाधिक विषैले हैं। ( most Dangerous poisonous snakes in India ) विकसित देशों में सांपों की प्रजाति के अनुसार ही प्रतिविष बनाया जाता है।
भारत में मुख्यतौर पर मिलने वाले चार विषैले सर्पोंं का एक ही प्रतिविष बनाया जाता है। कुछ वर्ष पहले तक भारत में नाग और वाइपर के प्रतिविष अलग-अलग बनाए जाते थे। तब समस्या यह थी कि उपचार करने वाले लोग पहचान नहीं कर पाते थे कि किस प्रजाति के सर्प ने डसा है। इसलिए अक्सर गलत प्रतिविष लग जाता था। गलत प्रतिविष कई बार विपरीत प्रभाव पैदा करता है। ऐसे कई मामले सामने आने के बाद देश में एक ही प्रतिविष तैयार किया जाने लगा। यह इतना प्रभावशाली नहीं होता, जितने की रोगी को जरूरत होती है।
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तीन का प्रतिविष अनावश्यक देने की मजबूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि चार सर्पों के विष का एक प्रतिविष तैयार किया जाता है। एक बार में एक ही सर्प डसता है, ऐसे में पीडित को हर बार तीन सर्प का प्रतिविष जबरन देना पड़ता है। नाग की 35 और सॉ स्किल्ड वाइपर की 30 प्रजातियां पायी जाती हंै। सभी का प्रतिविष समान कैसे हो सकता है। दो ऐसे रोगी आए जिन्हें 42 व 35 प्रतिविष इंजेक्शन दिए गए, लेकिन असर नहीं हुआ। इस दुरुपयोग को रोकना होगा।
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बच के रहना रे बाबा
राजस्थान में मुख्यत: तीन ही प्रजाति के विषधारी पाए जाते है। वाइपर, क्रेट और कोबरा (नाग)। सॉस्किल्ड वाइपर का 6 से 8 मिग्रा, रसल वाइपर का 5 से 6 मिग्रा, कोबरा का 6 से 8 मिग्रा और क्रेट का दशमलव 4 मिग्रा जहर किसी भी व्यक्ति की जान लेने के लिए काफी है। सर्प एक बार में विषथैली से 35 से 40 फीसदी विष छोड़ता है।
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बारिश में बढ़ रहे मामले
बरसात शुरू होने के साथ हाड़ौती में सांपों का प्रकोप बढ़ गया। उमस के चलते सांप बिलों से बाहर आने लगते हैं। जहरीले क्रेट, ( krait snake ) वाइपर और नागदंश ( Dangerous snake Viper ) से पीडि़त अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। चिकित्सकों के अनुसार आधे से अधिक पीडि़त तंत्र-मंत्र और नीम हकीमों के चक्कर में 8 से 10 घंटे देर से अस्पताल पहुंचते हैं, तब काफी देर हो चुकी होती है। राज्य भर में प्रतिवर्ष सैकडों लोगों की मौत सर्पदंश से हो जाती हैं, जिनका अलग से रिकार्ड तक नहीं रहता। हाड़ौती में ही सौ से अधिक स्थान हैं, जहां तंत्र-मंत्र से सर्पदंश के इलाज का दावा किया जाता है।
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एक्सपर्ट व्यू
जहरीले सांप के डसने पर दवा और वेंटिलेटर समय पर मिले तो जान बच सकती है। यह दोनों ही सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं। सर्प के जहर से स्नायु तंत्र, श्वसन तंत्र पर असर होता है और रक्त काफी पतला हो जाता है। जहां तक प्रतिविष की बात है तो इसे बनाने के तरीके में जीवित घोड़े के रक्त में सर्प का विष प्रविष्ट कराया जाता है। इससे रक्त में एंटीबॉडी बनती है। इससे प्रतिविष बनता है। सामान्यत: इसकी कुछ अधिक मात्रा तो लगाई जाती है, क्योंकि यह पता नहीं होता कि सर्प का कितना विष शरीर में गया है। अगर प्रतिविष की शरीर में ज्यादा मात्रा चली जाए तो इससे एलर्जी हो जाती है। एनाफाइलेक्सी होने पर रोगी जान भी खतरे में आ सकती है।
डॉ. मनोज सलूजा, प्रोफेसर मेडिसिन, मेडिकल कॉलेज
Published on:
10 Aug 2019 11:07 am
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