8 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

दिनभर हाड़तोड़ मेहनत, शाम को चूल्हों में खपने पर ही सिकती हैं रोटियां

रामगंजमंडी क्षेत्र में खानाबदोश परिवारों की संख्या हजारों में है। मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के आदिवासी परिवारों की संख्या भी हजारों में है। ज्यादातर को केन्द्र सरकार की योजना की जानकारी नहीं है।

2 min read
Google source verification
kota

रामगंजमंडी में दो वक्त का खाना बनाने के लिए लकडिय़ां काटकर ले जाती आदिवासी महिलाएं।

कोटा.

केन्द्र सरकार भले ही उज्ज्वला योजना से लोगों को लाभान्वित करने का दावा करे, लेकिन ऐसे श्रमिकों तक ऐसी कोई योजना नहीं पहुंची है। मजबूरन ये परिवार इधर-उधर से लकडिय़ां लाकर खाना बनाने को मजबूर हैं। खनाबदोश परिवारों के लिए बनी ईजी ब्ल्यू सिलेण्डर योजना भी इन तक नहीं पहुंची है। नीला सोना के नाम से विख्यात कोटा स्टोन की खदानों वाले रामगंजमंडी क्षेत्र में रोजगार के लिए दूरदराज से आने वाले खानाबदोश परिवारों को दो वक्त का खाना बनाने के लिए ईधन के झंझट से मुक्ति नहीं मिल पाई है।
रामगंजमंडी तहसील क्षेत्र में कोटा स्टोन की दर्जनों खदाने हैं। इनमें काम करने के लिए बड़ी संख्या में बाहर से श्रमिक आते हैं। इसके अलावा क्षेत्र में चलने वाले सरकारी निर्माण कार्यों में भी मजदूरी करते हैं। बाहर से आने वाले इन श्रमिकों में बहुतायत मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के आदिवासी मामा भील परिवार हैं। मध्यप्रदेश के ही राजगढ़ जिले के माचलपुर व उसके आसपास के गांवों से भी हर साल श्रमिक आते हैं। ऐसे श्रमिकों को यहां सरकार की उज्ज्वला योजना का लाभ नहीं मिलता।

केरोसिन मुक्त जिला है कोटा
राज्य सरकार ने प्रदेश के 19 जिलों को केरोसिन मुक्त किया हुआ है। इनमें कोटा भी शामिल है। ऐसे में यहां केरोसिन नहीं आता। इस कारण बाहर से आने वाले इन श्रमिक परिवारों के समक्ष ईंधन की समस्या रहती है। आदिवासी श्रमिक परिवारों की महिलाएं जैसे-तैसे लंबी दूरी तय कर ईधन का इंतजाम करती हैं। जल्दी आग पकड़ लेने वाली पेड़ों की छोटी टहनियों का संग्रहण करती हैं। इन्हें ये ईंधन के तौर पर जलाते हैं। कई बार व्यवस्था नहीं होने पर इन्हें आरा मशीनों पर जाकर लकडिय़ां खरीदनी पड़ती है।

योजना है लेकिन जानकारी का अभाव

खानाबदोश परिवारों के लिए केन्द्र सरकार ने ईजी ब्ल्यू सिलेण्डर बाजार में उतारा है। पांच किलो क्षमता वाले इस सिलेण्डर को प्राप्त करने के लिए आवेदनकर्ता को आधार कार्ड के साथ एक फोटो उपलब्ध कराना होता है। प्रावधान है कि गैस एजेंसी संचालक की ओर से आधार कार्ड की फीडिंग कम्प्यूटर में करने के साथ ही उपभोक्ता को सिलेण्डर उपलब्ध कराया जाएगा। इस सिलेण्डर की एवज में पहली बार में उपभोक्ता को 1300 रुपए की राशि अदा करनी पड़ेगी। इसमें 950 रुपए सिलेण्डर राशि व 350 रुपए रिफलिंग चार्ज होगा। सिलेण्डर खाली होने पर तुरंत भराने की व्यवस्था है।

मात्र एक दर्जन परिवार लाभान्वित
रामगंजमंडी क्षेत्र में खानाबदोश परिवारों की संख्या हजारों में है। कुदायला-अमरपुरा औद्योगिक क्षेत्र में संचालित पोलिश इकाइयों में करीब 5 हजार से ज्यादा श्रमिक परिवार हैं। इसी तरह लाइम स्टोन खदानों में करीब 7 हजार है। भवन निर्माण कार्य में मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के आदिवासी परिवारों की संख्या भी हजारों में है। ज्यादातर लोगों को केन्द्र सरकार की योजना की जानकारी नहीं है। यहां इण्डेन गैस से मात्र 12 खानाबदोश परिवार रसोई गैस योजना से लाभान्वित हुए हैं।

खतरे ये भी हैं
10 हजार से ज्यादा श्रमिक परिवारों द्वारा लकड़ी का ईंधन के रूप में इस्तेमाल करना प्रदूषण को बढ़ा रहा है, इनके स्वास्थ्य के लिए भी घातक। पेड़ों से टहनियां तोडऩे पर इन परिवारों को कई बार आस-पास रहने वाले लोगों के कोप का भाजन बनना पड़ता है। झगड़े होते हैं। कुछ श्रमिक अवैध छोटे गैस सिलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं, अवैध रूप से इसकी रिफलिंग करा रहे, जो खतरनाक साबित हो सकती है।
शिविर लगाने का आश्वासन
रामगंजमंडी में गैस एजेन्सी चलाने वाले कंवर सिंह गुर्जर बताते हैं कि खानाबदोश परिवारों के लिए केन्द्र सरकार की ईजी ब्ल्यू सिलेण्डर योजना है। जानकारी के अभाव में ये परिवार योजना से नहीं जुड़ पाते हैं। हम खदान बहुल क्षेत्र में शिविर लगाकर ऐसे परिवारों को लाभांवित करने की कोशिश करेंगे।