
राजस्थान सरकार का बड़ा फैसला: अब शहर में नहीं घुस पाएंगे आवारा मवेशी, एक्शन प्लान तैयार
कोटा . राज्य के प्रमुख शहरों में सड़कों पर घूमते आवारा मवेशियों ( Stray cattle) की समस्या से नगरीय विकास विभाग और पुलिस तो जूझ ही रही है। इसके समाधान के लिए अब गोपालन विभाग ने भी योजना तैयार की है। विभाग ने योजना तैयार की है, जिसमें गांवों से आवारा मवेशियों को शहर में आने से रोकने के प्रयास किए जाएंगे। गोपालन विभाग राज्य की हर एक ग्राम पंचायत पर गोशाला खोलने की तैयारी कर रहा है। विभाग का मानना है कि गांवों के गोवंश को वहीं रोक दिया जाए तो शहरों में समस्या कम होगी।
विभाग के मंत्री प्रमोद जैन भाया ( Minister pramod jain bhaya ) ने बताया कि आमतौर पर देखा गया है कि गांवों से अनुपयोगी गोवंश को लोग शहरों के बाहर छोड़ जाते हैं। ऐसे गोवंश शहरों में समस्या बन रहे हैं। इसलिए ही विभाग ने यह तय किया है। सभी ग्राम पंचायतों में गोशाला बनाई जाएंगी। इसके लिए संसाधन जुटाने समेत अन्य सभी व्यवस्थाओं पर विचार किया जा रहा है। यह भी विचार किया जा रहा है कि गांवों में चारागाह की जमीन पर गोशालाएं बनाई जा सकती हैं। उन्होंने बताया कि विभाग के प्रयासों से ही पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने बजट में हर पंचायत समिति पर नंदी शाला खोलने की घोषणा की है। इससे पंचायत समिति स्तर पर भी काफी कुछ संख्या में गोवंश को रोका जा सकेगा। भाया ने बताया कि विभाग राज्य के हर एक जिले में गो अभयारण्य बनाने पर भी विचार कर रहा है। अभी राज्य में बीकानेर में ही गो अभयारण्य है।
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सरकार करवा चुकी है खुद की किरकिरी
आवारा मवेशियों ने आम लोगों को ही परेशान नहीं कर रखा है। उन्होंने पिछले दिनों राज्य सरकार का भी सिरदर्द बढ़ा दिया था। विधानसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने कोटा में तैनात अधिकारियों के हवाले से गलत जानकारी दे दी थी। जिसे कुछ दिन बाद सरकार ने दुरुस्त किया और गलत जानकारी का ठीकरा कोटा में तैनात अफसरों के सिर फोड़ दिया था। कोटा में बरसात के दिनों में आवारा मवेशी बड़ी समस्या बन जाते हैं। इसकी वजह से आए दिन हादसे होते रहते हैं। कुछ मौतें भी हुई हैं।
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शहर में बने बाड़ों का क्या होगा?
गोपालन विभाग का प्रयास सफल हो भी गया तो शहर में पल रहे आवारा मवेशियों का क्या होगा। शहर में अनेक स्थानों पर पशुपालकों ने बाड़े बना रखे हैं। ये अपने पशुओं को दुहने के बाद उन्हें सड़कों पर घूमने के लिए छोड़ देते हैं। यह मवेशी सारे साल सड़कों पर समस्या पैदा करते रहते हैं। शहर में रह रहे इन पशुपालकों के लिए स्थानीय निकाय के अफसरों के पास कोई योजना नहीं है।
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पशुपालक व अफसर, सभी को मिल सकती है सजा
आवारा मवेशियों से होने वाली दुर्घटनाएं निगम के अधिकारियों का उपेक्षापूर्ण कृत्य की परिभाषा में आता है। उच्चतम न्यायालय ने एक निर्णय राजकोट नगर निगम बनाम मंजुलबेन 1997(9)एससीसी 552 में भी कहा है कि यदि किसी लोक अधिकारी की लापरवाही के कारण कोई दुर्घटना होती है तो उपेक्षापूर्ण कृत्य का सिद्धांत ऐसे लोक अधिकारी पर भी लागू होता है और उसे उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। न्यूसेंस अपने आप में अपराध है और कोई भी लोक सेवक कत्र्तव्यों के निर्वहन में उपेक्षा बरतता है तो उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 166 के तहत एक वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। आवारा मवेशियों के मालिकों के खिलाफ भी धारा 289 के तहत कार्यवाही की जा सकती है। जिसके तहत छह माह तक का कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। पशु पालक का दायित्व है कि उसके द्वारा पाले जा रहे पशु के खाना पानी एवं रहने की व्यवस्था करें अन्यथा इसे पशुओं के प्रति क्रूरता माना गया है और ऐसी स्थिति में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 29 के तहत उसे प्रथम दफ ा पचास रुपए के जुर्माना से एवं अपराध दोहराने पर तीन वर्ष तक के कारावास से दण्डित किया जा सकता है।
विवेक नन्दवाना, एडवोकेट
Published on:
30 Jul 2019 11:35 am
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