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बड़े साहब कैसे अपने भ्रष्ट अधिकारियों को एसीबी के चंगुल से बचा लेते हैं…जानने के लिए पढि़ए खास रिपोर्ट

रावतभाटा सहित चित्तौडग़ढ़ के एक दर्जन अफसरों, कर्मचारियों व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ एसीबी में दर्ज प्रकरण अभियोजन स्वीकृति के अभाव में लम्बित हैं।

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कोटा

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Zuber Khan

Oct 24, 2017

corruption in rajasthan

12 से ज्यादा अधिकारियों व कर्मचारी रिश्वत लेते हुए थे गिरफ्तार, स्वीकृति के अभाव में एसीबी नहीं कर पा रही कार्रवाई

रावतभाटा. रावतभाटा उपखंड क्षेत्र सहित चित्तौडग़ढ़ जिले के करीब एक दर्जन अफसरों, कर्मचारियों व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में दर्ज प्रकरण अभियोजन स्वीकृति के अभाव में लम्बित हैं। इनमें से तीन मामले ऐसे हैं जिनमें उच्चाधिकारियों ने एसीबी को स्वीकृति देने से इंकार कर दिया। ऐसे में दोषियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश नहीं हो सके।

इनकी हो रही मौज
चित्तौडग़ढ़ सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता वास्तुपाल जैन 14 अक्टूबर 2014 को एसीबी में ट्रैप हुए। सार्वजनिक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता दिनेश ढण्ढ 14 अक्टूबर 2015 को, कार्यवाहक जिला आबकारी अधिकारी राजेन्द्र कुमार 8 मई 2017 को रिश्वत मांगने का प्रकरण दर्ज हुआ। स्वीकृति नहीं मिलने से अधिकारियों की मौज हो रही है।

इन तीन मामलों में नहीं मिल रही स्वीकृति
1. भैंसरोडग़ढ़ पुलिस थाने के तत्कालीन सब इंसपेक्टर श्यामलाल गुर्जर के खिलाफ रिश्वत मांगने का प्रकरण दर्ज हुआ था। इस पर एसीबी ने दोषी के खिलाफ कोर्ट में केस चलाने के लिए उदयपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक से स्वीकृति मांगी। लेकिन उन्होंने 12 फरवरी 2014 को एसीबी को पत्र भेजकर अभियोजन स्वीकृति देने से मना कर दिया। इस पर एसीबी ने फिर से पत्र लिखकर पुनर्विचार कर स्वीकृति देने का आग्रह किया तो जवाब नहीं दिया।

2. चित्तौडग़ढ़ के राशमी तहसील के तहसीलदार छीतरलाल वर्मा को एसीबी ने वर्ष २०१० में रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया था। इस मामले में अध्यक्ष व निबंधक राजस्व मंडल अजमेर ने 15 फरवरी 2012 को स्वीकृति देने से इंकार कर दिया। इस पर एसीबी ने २४ फरवरी २०१७ को दोबारा पत्र लिखकर पुनर्विचार करने का आग्रह किया। लेकिन राजस्व मंडल ने मना कर दिया।

3. चित्तौड़ की बड़ी सादड़ी नगर पालिका के कनिष्ठ अभियंता विक्रम जोरवाल के रिश्वत प्रकरण में पालिका के ईओ ने एसीबी को 10 दिसम्बर 2015 को पत्र भेजकर स्वीकृति देने से इंकार कर दिया। बार-बार मनाही होने पर एसीबी को पत्रालियां बंद करनी पड़ी।

इनकी स्वीकृति में लगे कई साल
तत्कालीन नगर पालिकाध्यक्ष ममताबाई व अधिशासी अधिकारी प्रहलादराय वर्मा के खिलाफ वर्ष २०१२ में पद का दुरुपयोग कर 8 लाख रुपए का गबन करने का प्रकरण दर्ज हुआ था। इस मामले में एसीबी को अभियोजन स्वीकृति मिलने में करीब 4 साल लग गए। वहीं, चित्तौडग़ढ़ कलक्टर के राजस्व अपील न्यायालय के वरिष्ठ लिपिक शांतिलाल यादव के खिलाफ पद का दुरुपयोग व आय से अधिक संपत्ति के दर्ज 4 प्रकरणों में, भैसरोडग़ढ़ पंचायत समिति के तत्कालीन विकास अधिकारी रूपसिंह गुर्जर, रावतभाटा पालिका के कनिष्ठ लिपिक कैलाश चंद्र शर्मा के खिलाफ छोटी सादड़ी पालिका में कार्यरत रहते दर्ज 2 मामलों में, भदेसर तहसीलदार रमेश चंद्र बहेडिय़ा व प्रथम ग्रेड लिपिक आसकरण सिंह, गंगरार पंचायत की ग्राम पंचायत उण्डवा के पदेन सचिव नरेन्द्र पाठक व राजकीय माध्यमिक विद्यालय आवंलहेड़ा के अध्यापक भगवानलाल सालवी के खिलाफ दर्ज रिश्वत के मामले में एसीबी को स्वीकृति लेने में कई साल लग गए।

इनका यह है कहना
तीन माह की अवधि में अभियोजन स्वीकृति न मिलने पर दोषी के संबंधित उच्चाधिकारी के विरूद्व कार्रवाई करने का सरकार व सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं लेकिन उच्च अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं की जाती। मनाही होने पर बार-बार पत्र भेजे जाते हैं।
डॉ. किरण कंग, एसीबी एसपी कोटा


दोषी के खिलाफ केस चलाने की मनाही होने पर एसीबी दोषी के खिलाफ कुछ भी कार्रवाई नहीं कर सकती। मजबूरी में पत्रावली बंद करनी पड़ती है।
बीएस चूण्डावत, एसीबी पूर्व एएसपी चित्तौडग़ढ़


कितने केसों में अभियोजन स्वीकृति पेंडिंग है और कितने स्वीकृति मिली है। उनकी जानकारी दूरभाष पर दिया जाना संभव नही है।
चिरंजीलाल मीना, एसीबी चित्तौडग़ढ़ एएसपी