बजरी माफिया की अब खैर नहीं मुस्तैद हुआ RTO
डीसीएम श्रीराम फर्टीलाइजर कंपनी में डीप्टी चीफ इंजीनियर सैय्यद तौसिफ अली बताते हैं, कुरआन के दूसरे पारे की आयत 183 में रोजा रखना हर मुसलमान के लिए जरूरी बताया गया है। रोजा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि नफ्स पर काबू पाना है। शारीरिक और मानसिक दोनों के कार्यों को नियंत्रण में रखना है। पूरी दुनिया की कहानी भूख, प्यास और इंसानी ख्वाहिशों के इर्द-गिर्द धूमती है और रोजा इन पर नियंत्रण रखने की साधना है। रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख प्यास को समझने का माह है, ताकि रोजेदारों में भले-बुरे को समझने की ताकत पैदा हो सके।
मां सैय्यद सलामत अली कहती है, रमजान के लिए 30 दिनों का समय निर्धारित है, लेकिन इसे 6 अतिरिक्त दिनों तक भी किया जा सकता है। यह अनिवार्य नहीं है। यह उनके लिए है जो किसी कारणवश रोजा नहीं रख पाए हों तो वे अगले छह दिनों में पूरा कर लें।
पिता सैय्यद सलामत अली मानते है, रमजान में पांच वक्त की नमाज व तरावीह अदा करने से मानसिक तनाव दूर होता है। साथ ही एकाग्रता बढ़ती है। इसके अलावा बार-बार कुरआन दोहराने से याददाश्त तेज होती है। वहीं, रमजान का क्रम इंसान को समय की पाबंदी सिखाता है।