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Big News: कोटा एफएसएल का कारनामा, 13 दिन पुराने ब्लड से कर दी रेप और मर्डर केसों की जांच

जघन्य अपराधों के खुलासे और दोषियों को सलाखों के पीछे भेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली एफएसएल में गंभीर लापरवाही बरती जा रही है।

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कोटा

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Zuber Khan

Feb 08, 2018

kota FSL

जुबेर खान @ कोटा .

जघन्य अपराधों के खुलासे और दोषियों को सलाखों के पीछे भेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली विधि विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) में किस तरह स्तर पर लापरवाही हो रही है, इसकी बानगी कोटा में देखने को मिली। एफएसएल की रिपोर्ट सजा दिलाने में महत्वपूर्ण साक्ष्य होती है।

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24 जून 2015 को रेप और मर्डर के 10 केसों की जांच कोटा में 13 दिन पुराने ब्लड के नमूने से की गई थी। जबकि, एफएसएल विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी सूरत में ब्लड 7 दिन से ज्यादा सुरक्षित नहीं रहता। इससे ज्यादा पुराने ब्लड से की गई जांच में सही निष्कर्ष नहीं निकल पाता है। रिपोर्ट सही नहीं रहती। इसके बाद भी प्रयोगशाला में यह सब किया गया। अब सामने आई जानकारियां चौंकाने वाली हैं।

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एफएसएल सूत्रों ने बताया कि 11 जून 2015 को कोटा मेडिकल कॉलेज से ए,बी,ओ ग्रुप के ब्लड मंगवाए गए थे। इनका उपयोग 24 जून को तत्कालीन वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. आनंद कुमार ने जांच में किया था। इसके बाद रिपोर्ट तैयार कर संबंधित जिलों के एसपी को भिजवा दी गई। जानकारी तत्कालीन अतिरिक्त निदेशक राजेन्द्र चतुर्वेदी को भी थी। इसके बावजूद उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।

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यह है मामला
28 मई 2015 में कोटा एफएसएल के सेरोलॉजी अनुभाग (जहां रेप और मर्डर केसों की जांच होती है) में वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी पद पर डॉ. आनंद कुमार की नियुक्ति हुई। चार्ज लेने के बाद वे 24 जून को पहली बार कोटा कार्यालय में उपस्थित हुए और उसी दिन उन्होंने रेप व मर्डर के 10 प्रकरणों की जांच कर दी। इसमें उन्होंने 11 जून को लेब असिस्टेंट द्वारा कोटा मेडिकल कॉलेज से मंगवाए गए रक्त के नमूनों का ही उपयोग किया, जबकि जांच के लिए ताजा रक्त की आवश्यकता थी।

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निष्कर्ष पर असर
कोटा एफएसएल के अतिरिक्त निदेशक केएन वशिष्ट ने बताया कि जांच के लिए ताजा ब्लड की आवाश्यकता होती है। आदर्श परिस्थिति में ही ब्लड सुरक्षित रहता है। परिस्थिति अनुकूल नहीं होगी तो ब्लड 7 दिन तो दूर एक दिन में ही खराब हो जाएगा। ऐसे रक्त से की गई जांच का निष्कर्ष सही नहीं आ सकता।

फ्रिज खराब था
कोटा एफएसएल के तत्कालीन अतिरिक्त निदेशक आरके चतुर्वेदी ने बताया कि मामला जून 2015 का है, गर्मी तेज थी और ऑफिस का फ्रिज खराब था। मामला मेरी यूनिट का नहीं था, वैसे पुराने ब्लड से जांच नहीं की जा सकती। 11 जून को किसने और किसलिए रक्त के नमूने मंगवाए, मेरी जानकारी में नहीं है। मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता।

अपराधियों को मिलता है संदेह का लाभ
अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने में एसएसएल का अहम योगदान होता है। लेकिन, कोटा एफएसएल में गंभीर मामलों की जांच में लापरवाही बरती गई। इसका खामियाजा पीडि़त पक्ष को भुगतना पड़ता है। रिपोर्ट सही नहीं होने की स्थिति में अपराधी को संदेह का लाभ मिलता है और ऐसी स्थिति में वह जघन्य अपराधों में बरी हो सकता है।