7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

पद्मावती के जौहर के बाद मेवाड़ में बढ़ने लगा था जैन धर्म का प्रभाव, शाही सिक्कों से हुआ खुलासा

मेवाड़ के शाही सिक्कों से बड़ा खुलासा हुआ है कि पदमावती के जौहर के बाद मेवाड़ की जमीन पर जैन धर्म का प्रभाव बढ़ने लगा था।

3 min read
Google source verification
Royal coins of Mewar, Padmavati, Rani Padmavati of Mewar, currency experts, Jain Religion, Kesariya ji Temple Udaipur, First Jain Tirthankara Rishabhdev, Kota Rajasthan Patrika, Rajasthan Patrika Kota, Kota Latest News, Kota News in Hindi, Crime News Kota

Rare royal coins of Mewar found by currency experts

मेवाड़ की महारानी पद्मिनी पर निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली की अपकमिंग मूवी पद्मावती को लेकर देशभर में तल्खी, तनाव, विवाद, विरोध व प्रदर्शन का माहौल बना हुआ है। इन सबके बीच कोटा के मुद्रा विशेषज्ञ शैलेष जैन के इंटरनेशनल जर्नल में छपे शोध ने शौर्य व वीरता की गाथा कहने वाली मेवाड़ की वीरभूमि के इतिहास पर पड़ी बड़ी धूल को छांटने का काम किया है। मेवाड़ के शाही सिक्कों पर हुए इस शोध से पता चलता है कि रानी पद्मिनी के जौहर के 300 साल बाद मेवाड़ के शासकों का झुकाव जैन धर्म की ओर बढ़ने लगा था। यही वजह थी कि उनके द्वारा चलाए गए शाही सिक्कों पर भी जैन तीर्थ जगह बनाने लगे थे।

Read More: मदहोश होकर चलाई गाड़ी, अब कभी नहीं थाम सकेंगे स्टेयरिंग

400 साल से ज्यादा पुराना है शाही सिक्का

पिछले साल उदयपुर गए शैलेष को एक दुर्लभ सिक्का मिला। तांबे के इस सिक्के की ढ़लाई मेवाड़ की महारानी पदमावती के जौहर के करीब 300 साल बाद यानि 1616 ईस्वी के आसपास हुई थी। 8.4 ग्राम वजन के इस सिक्के पर देवनागरी लिपि में एक ओर कुंभलमेरू व दूसरी ओर जैन तीर्थ केसरियाजी का नाम अंकित है। शैलेष ने बताया कि इस सिक्के पर शासक का नाम अंकित नहीं है। ऐसा इसलिए कि उस दौर में मेवाड़ मुगलों के अधीन था। इस स्थित में शासक का नाम मुद्रा पर अंकित नहीं किया जाता था। कुंभलगढ़ के राजा अमर सिंह और मुगल शासक जहांगीर के मध्य 1615 में संधि हुई। इसके बाद 1616 में जहांगीर ने चित्तौड़ मेवाड़ शासकों को सौंप दिया। यह सिक्का इसी संधि काल के आस-पास का है।

Read More: भंसाली की पदमावती के विरोध में उतरे सांसद बिरला, बोले- गौरवशाली इतिहास से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं

प्रथम जैन तीर्थांकर में दिखाई आस्था

उदयपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर गांव धूलेव में स्थित प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव का मंदिर केसरियाजी के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन तीर्थ अरावली पर्वतमाला की कंदराओं के मध्य कोयल नदी के किनारे स्थित है। ऋषभदेव मंदिर को जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ माना जाता है। ऋषभदेव को तीर्थयात्रियों द्वारा अत्यधिक मात्रा में केसर चढ़ाए जाने के कारण केसरियाजी कहा जाता है। यह मंदिर न केवल जैन धर्मावलंबियों, बल्कि वैष्णव हिंदुओं और मीणा व भील आदिवासियों व अन्य जातियों द्वारा भी पूजा जाता है। आस्था की वजह से ही इस जैन तीर्थ ने मेवाड़ राजघराने के सिक्के पर भी जगह बना ली। इस सिक्के पर जैन तीर्थ केसरियाजी का जिक्र किया गया है। सिक्के में जैन तीर्थ का जिक्र तत्कालीन शासक के जैन मत व दर्शन के प्रति श्रद्धा भाव को प्रकट कर रहा है। वहीं दूसरी ओर कुंभलमेरू अंकित है। मेवाड़ राजाओं के किले कुंभलगढ़ को उस समय इसी नाम से जाना जाता था।

Read More: पदमावती के गुस्से का शिकार हुए राजस्थान वक्फ बोर्ड के चेयरमैन

सिक्के पर नहीं है शासक का नाम

मेवाड़ के शासकों ने अपने-अपने दौर में चांदी और तांबे के सिक्के चलाए। चांदी के सिक्कों को द्रव एवं रूपक और तांबे के सिक्के कर्षापण कहा जाता था। महाराजा संग्राम सिंह के द्वारा चलाए गए तांबे के सिक्कों पर स्वास्तिक और त्रिशूल अंकित मिले हैं। जबकि पूर्ववर्ती शासकों के कई सिक्कों पर मनुष्य, पशु पक्षी ,सूर्य, चन्द्र,धनुष,वृक्ष का चित्र भी अंकित रहता था। इतिहासकारों का मत है कि शासक जिससे ज्यादा प्रभावित होते थे उसी प्रतीक को सिक्कों पर जगह देते थे। यानि जिस दौर में जैन तीर्थांकर पर यह सिक्का चला उस समय के मेवाड़ शासक जैन धर्म से खासे प्रभावित थे। शैलेष की यह रिपोर्ट जर्नल ओरियंटल न्यूमिसमेटिक सोसायटी (ओएनएस) ने प्रमुखता से प्रकाशित की। जिसमें विश्व के मुद्रा विशेषज्ञों की टीम नई खोज की पुष्टि करती है। ओएनएस का मुख्यालय लंदन में है। इसके सम्पादक रॉबर्ट ब्रेसी हैं, जो ब्रिटिश म्यूजियम लंदन के प्रमुख हैं। दुर्लभ सिक्कों की रिपोर्ट को विश्व प्रसिद्ध वेबसाइट पर भी प्रकाशित किया है।