
कोटा. स्वाइन फ्लू और डेंगू से ड़रने के बजाय उनसे बचाव के उपाय करें।
कोटा.
डेंगू:-
डेंगू वायरसजनित रोग है। यह मादा एडीज मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर दिन में काटता है। डेंगू से पीडि़त मरीज को काटने वाला मच्छर अगर दूसरे स्वस्थ व्यक्ति को काटे तो उससे रोग फैलता है।
पहला स्टेप : मच्छर काटने से 4 से 7 दिन बाद बुखार आता है। आंखों व कमर में दर्द रहता है। ऐसा चार-पांच दिन रहता है, फिर सही हो जाता है।
दूसरा स्टेप : दस प्रतिशत लोगों की रक्त नलिका से प्जामा लीक होकर शरीर के आंतरिक अंगों में एकत्र होता है। इसमें पेट में पानी जमा होना, फेफड़ों में सूजन, लीवर, तिल्ली में सूजन, पेशाब कम आना, शरीर में नीले धब्बे होना व प्लेटलेट्स में कमी आती है।
तीसरा स्टेप : डेंगू शॉक सिन्ड्रोम में बीपी कम होता है। मल्टी ऑर्गन फेलियर का खतरा रहता है। यह जानलेवा होता है।
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क्या करें
रक्त जांच में 20 हजार से कम प्लेटलेट्स होने पर उसे बढ़ाने के लिए इलाज व अच्छा खान-पान रखना चाहिए।
ऐसे करें बचाव
शरीर ढककर रखें। शरीर पर मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं। घरों के कूलर, फ्रीज व टंकियों को साफ रखें। चिकित्सक की सलाह से दवाइयां लें।
कैसे होती है जांच
कैसे होती है जांच
डेंगू जांच के लिए तीन टेस्ट होते हैं। इनमें आईजीजी, एजीएम व एनएस-वन होता है। इसमें एनएस वन सामान्य होता है, जबकि दो अन्य में प्लेटलेट्स की आवश्यकता होती है।
डेंगू मरीज का सबसे पहले कार्ड टेस्ट होता है। उसके बाद एलाइजा टेस्ट। सीबीसी टेस्ट में प्लेटलेट्स का पता लगाया जाता है। सामान्य रोगी में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स जरूरी है। इससे कम पर प्लेटलेट्स चढ़ाई जाती है।
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स्वाइन फ्लू :-
प्रदेश में 9 साल में पहली बार 40 डिग्री तापमान में स्वाइन फ्लू का वायरस सामने आया है, जबकि पहले अक्टूबर-नवम्बर में बारिश व सर्दी में सामने आता था, जो मार्च तक सक्रिय रहता।
यू शेप में आता है यानी पहले बढ़कर, फिर कम और फिर बढ़कर आता है।
इसकी चार स्टेप होती है। एच वन/एन टू (एन्टीजेनिक ड्रिप), एच वन/एन थ्री (एन्टीजेनिकशिप) मिलकर वायरस बनाते हैं। एन्टीजेनिक ड्रिप वायरस चेंज होकर आता है, जबकि एंटीजेनिकशिप वायरस खतरनाक होता है, इससे मौत भी हो जाती है। यह विकराल रूप धारण करता है। यह 2015 में आया था।
इन्हें लेता है चपेट में
सबसे पहले मेडिकल स्टाफ, गर्भवती महिला, 65 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गों, दमा, कैंसर व अन्य बीमारियों से पीडि़त बच्चों, युवाओं व महिलाओं पर असर करता है।
केलिफोर्निया से आया
केलिफोर्निया से स्वाइन फ्लू वायरस ने 2009 में राजस्थान में दस्तक दी थी। उसके बाद 2013, 2015 में वायरस आया। यह वायरस हर बार बदलकर आ रहा है।
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वैक्सीन है कारगर
2010 में सिमर इंडिया कम्पनी ने सरकार के माध्यम से नाक में लगाने वाले वैक्सीन जारी किए थे, जिसे नेजो वैक कहते हैं। फ्लू, एंटी फ्लू व फ्लू वीर नाम से टीके लगाने चाहिए।
अमरीका सेन्टर फोर डिजीज कंट्रोल व डब्ल्यूएचओ के अनुसार, स्वाइन फ्लू में देशी काढ़ा सबसे खतरनाक है। इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
ये हैं लक्षण
सर्दी, जुकाम, खांसी व बुखार का एक साथ आना।
बचाव
यदि नेगेटिव रिपोर्ट आई है और लक्षण हैं तो भी पांच दिन की दवाइयों का कोर्स लेना होगा।
लक्षण दिखते ही तुरंत वैक्सीन लगाना चाहिए।
स्वस्थ व्यक्ति को वैक्सीन
लगाने के 15 दिन बाद असर करता है।
बार-बार हाथ धोना व मास्क लगाना चाहिए।
बाजारों की भीड़-भाड़ से बचाना चाहिए।
कैसे होती है जांच
गले और नाक के स्वाब की जांच से पता चलता है
इन्फ्लूएंजा-ए, स्वाइन इन्फ्लूएंजा-ए और स्वाइन इन्फ्लूएंजा एच वन की जांच होती है।
आरएनएएसईपी जांच भी होती है। इससे रिबाउंस लेक एसिड की बढ़त-घटत का पता चलता है।
Published on:
31 Aug 2017 06:08 pm
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