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नाम की योजनाएं, मजदूरों के काम की नहीं

कोटा. एक फिल्मी संवाद है, ‘मजूदर का हाथ लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देता है....,’ बेशक!. इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदलने वाले श्रमिक खुद के जीवन को नहीं संवार पा रहे।

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कोटा

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Hemant Sharma

May 13, 2025

कोटा. एक फिल्मी संवाद है, ‘मजूदर का हाथ लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देता है....,’ बेशक!. इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदलने वाले श्रमिक खुद के जीवन को नहीं संवार पा रहे।

खुद का नहीं ठिकाना

ऊंची- ऊंची इमारतों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कई श्रमिकों के पास न तो खुद के घर हैं, न कोई ठिकाना है। सरकार इनके लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन जागरूकता की कमी, जानकारी का अभाव और सरकारी अनदेखी के चलते श्रमिकों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा। कुछ मजदूरों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘काम के बदले जो पैसा मिल जाता है,उसमें तो गृहस्थी का खर्चा भी नहीं चलता है। बच्चों को पढ़ाना, मकान बनाना तो सपना है।’ श्रम विभाग कोटा से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले में 61993 श्रमिक पंजीकृत हैं लेकिन अधिकतर मजदूर तो सरकारी योजनाओं से अनजान नजर आए।

योजनाएं इतनी सारी

इन श्रमिकों के लिए निर्माण श्रमिक शिक्षा व कौशल विकास योजना, दुर्घटना में घायल व मृत्यु होने पर आर्थिक सहयोग, निर्माण श्रमिक सुलभ्य आवास योजना, निर्माण श्रमिक औजार, टूलकिट सहायता योजना, भविष्य सुरक्षा योजना, व्यवसायिक ऋण पर ब्याज पुनर्भरण योजना, निर्माण श्रमिक व उनके आश्रित बच्चों को प्रतियोगी परीक्षा में सफल रहने पर प्रोत्साहन, आई आईटी, आईआईएम में प्रवेश मिलने पर ट्यूशन फीस पुनर्भरण योजना, रोजगार के लिए वीजा पर होने वाले व्यय के पुनर्भरण अंतरराष्ट्रीय खेलों में भाग लेने पर प्रोत्साहन समेत अन्य योजनाएं हैं। ई-श्रम कार्ड धारी अलग हैं।

बोले मजदूर

हुकम चंद साहू बताते हैं कि काम करते हुए 10 साल हो गए। सरकार की ओर से कोई सहायता दी जाती है तो मुझे नहीं पता। कभी मिली भी नहीं। श्रम कार्ड बनाने की औपचारिकताएं हम पूर्ण नहीं कर पाते। सरकार को मजदूरों से संबंधित योजनाओं के नियम सरल करना चाहिए। सुरेश भूरिया के अनुसार

हम झाबूआ से हैं। कोटा में मेहनत के बदले जो राशि मिलती है, इससे तो घर का खर्च भी नहीं चलता। जहां काम चलता है, वहीं झौपड़ी बना लेते हैं। कोई हमें योजनाओं के बारे में बताए तो लाभ मिले। चक्कर काटने का भी क्या फायदा। आधार कार्ड जरूर बना हुआ है। शंभूलाल व मीरा बाई के अनुसार मजदूरी करते 40 साल हो गए। श्रमिक कार्ड नहीं है। लाभ कहीं से नहीं मिला। हम दोनों मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। खुद का मकान नहीं है, किराए से रहते हैं।

कालू लाल बड़ा परिवार है। मजदूरी करके जो पैसों मिलते हैं, उसके खर्चे भी पूरे नहीं होते। मकान कहां से बनाएं। परिवार के साथ सड़क किनारे ही जीवन काट रहे हैं। कभी किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठाया। जो भी राशन लगता है, उसे मोल ही लेते हैं। मजदूरों का जीवन ऐसा ही हैं।

...और इनका है कहना

इधर श्रम विभाग में संयुक्त श्रम आयुक्त साकेत मोदी बताते हैं कि श्रमिकों के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही है। प्रयास रहता है कि लोगों को इनका लाभ मिले। इसके लिए 90 दिवस कार्य व नियोजक का प्रमाणीकरण जरूरी है।