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नागफनियों को उखाड़ फेंकें

लीजिए, विकास की राह दिखाने वाली एक और किताब तैयार हो गई। इस बार इसका नाम कोटा मास्टर प्लान-2031 है।

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कोटा

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ritu shrivastav

Nov 24, 2017

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kota

विजय चाैधरी:
इस तरह के दस्तावेज पहले भी आते रहे हैं और जब-जब ये जारी होते हैं, शहर को एक स्वर्णिम सपना परोसा जाता है। चौड़ी सड़केंं, हरियाली के लिए हजारों एकड़ खुली जमीन, नदी-तालाबों को जिंदा रखने के प्रस्ताव, खुले-खुले फुटपाथ, हॉकर्स जोन जैसे सैद्धांतिक जुमलों के साथ सुनियोजित विकास की कई बातें होती हैं। विडंबना यह है कि इनमें से अधिकांश दम तोड़ देती हैं। मौजूदा और पुराने मास्टर प्लानों के प्रावधानों के लिहाज से जहां मकान नहीं बनने थे, वहां सीमेंट कॉन्क्रीट के जंगल खड़े होकर उन किताबों का उपहास कर रहे हैं। अनंतपुरा, छत्रपुरा, सूरसागर तालाबों से लेकर काला तालाब, रंग तालाब की जिस जमीन पर पानी या हरियाली होना थी, वहां क्या हो रहा है? पूरी की पूरी कॉलोनियां बस गईं। अवैध निर्माण होते रहे और कथित जिम्मेदार आंखों में गीजड़ों का बहाना बनाकर सुस्ताते रहे।

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यही हाल उद्योगों के लिए आरक्षित जमीनों का भी है। वहां सैंकड़ों हॉस्टल बन गए और उनमें हजारों बच्चे रह रहे हैं। इन क्षेत्रों में आबादी का इतना दबाव है कि जमीन रीत गई। सैंकड़ों मीटर नीचे भी पानी नहीं मिल रहा। आखिर यह कैसे हो गया, क्या रातों रात हॉस्टल बन गए, क्या किसी को मास्टर प्लान के उल्लंघन का पता ही नहीं चला? ऐसा ही होता रहेगा तो मास्टर प्लान की कितनी ही किताबें बना लें, कुछ नहीं बदलने वाला।

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कोशिश यह की जानी चाहिए कि मास्टर प्लान को पवित्र धर्मग्रंथों की तरह अपनाया जाए। इसमें जो भी बातें दर्ज की जाएं, उनके पीछे कोई छिपा हुआ उद्देश्य न हो। सिर्फ यह सोचा जाए कि भावी पीढ़ी को कैसे एक सुंदर, सुव्यवस्थित और सुविधाजनक शहर दिया जा सकता है। जो लोग इस मार्ग में बाधा बनते हैं, उन्हेंं दंडित भी किया ही जाना चाहिए।

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नगर विकास से जुड़े निकायों को यह भी खयाल रखना होगा कि रोजगार और बेहतर जीवन स्तर की तलाश में गांवों से हजारों लोग लगातार शहरों में आ रहे हैं। इस नई किताब में भी अनुमान लगाया ही गया है कि वर्ष 2031 में कोटा की आबादी 25 लाख से अधिक हो जाएगी। जो आबादी बढ़ेगी, उसके लिए पानी, सड़क, मकान, बाजार, खेल के मैदान, बगीचे और स्वच्छ हवा कैसे आएगी, यह आज ही सोचना होगा।

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इसके लिए मास्टर प्लान में लिखे प्रावधानों को निगलने वाली माफिया रूपी नागफनियों को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। उन नेताओं और अफसरों को बेनकाब करना होगा, जो वोट बैंक के लिए अवैध बसाहटों, फुटपाथों पर कब्जों को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे लोगों को हर तरह से सबक सिखाने के लिए जनता को भी मुखर होना होगा।