Talent of Kota कोटा (हेमंत शर्मा). आज भले ही सोशल मीडिया, यू ट़ूब सरीखे कई माध्यम है जहां कोई भी अदाकार, कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर सकता है और नाम कमा सकता है, लेकिन 90 के दशक में ऐसा नहीं था। तब केवल मंच ही एक सहारा होता था। .इसके बावजूद कोटा की रेखा राव के देशी सुरों का अंदाज संगीत प्रेमियों को ऐसा रास आया कि वह लोक कला संस्कृति से गूंथे हुए देसी सुरों का जादू परदेस में भी बिखेर रही है।
कोटा की बेटी रेखा राव ने शुरू में अपने पिता तेजकरण राव के लिए गाया तो पिता का आशीर्वाद इस तरह से बरसा कि संगीत की यह रेखा लंबी-दर लंबी होती गई। कोटा से मुम्बई और इसके बाद लंदन, मॉरीशस, सिंगापुर,इंडोनेशिया, बैंकाक समेत अन्य कई देशों में कार्यक्रम दे कर नाम रोशन कर चुकी है।
पिता रहे पहले गुरु, विरासत में मिला संगीत
रेखा बताती है कि वह उन्हें संगीत विरासत में मिला। उनके पहले गुरु उनके पिता तेजकरण राव रहे। उन्हीं से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ली, फिर जाने माने संगीतकार रविन्द्र जैन के सान्निध्य में संगीत को निखारा। यूं पिता के सान्निध्य में रेखा महज 4 साल की आयु से ही संगीत के सुर साधने लगी थी, लेकिन बड़ी हुई तो उनके पिता कोई एलबम बना रहे थे, लेकिन फीमेल सिंगर की उन्हें तलाश थी, ऐसे में उन्होंने अपने पिता के साथ एलबम नखराळी बंजारण बनाई। इस एलबम के सभी गीत हिट रहे। इसके बाद एक के बाद एक कई एलबम आती रही, जिनमें उनकी आवाज को खूब पंसद किया गया।
विभिन्न भाषाओं में आए गीत
राजस्थानी गीतों को खासा पसंद किया जाता है, लेकिन उनकी आवाज लोगाें को पसंद आई तो हिन्दी, सिंधी समेत अन्य पंजाबी, गुजराती, भोजपुरी, उडिया समेत अन्य भाषाओं में भी उन्होंने गीत गए। हिन्दी फिल्म जंगबाज, भेजा फ्राई-2,कौन कितने पानी में..,हीरो नंबर टू समेत अन्य फिल्मों में रेखा ने गीत गाए हैं। उनके गाए कई गीत लोकप्रिय हुए हैं। रेखा ने संगीत के क्षेत्र में प्रभावशाली गायकी के लिए कई पुरस्कार भी जीते हैं।
बस यही चाहत
रेखा का मानना है कि राजस्थानी को प्रोमोट करने के लिए भाषा को मान्यता मिलनी चाहिए। प्रदेश स्तर पर राजस्थानी फिल्मों का बेहतर वातावरण बने। रेखा मुम्बई में राजस्थानी फिल्म ऐसोसिएशन की उपाध्यक्ष भी है। वह बताती है कि प्रदेश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, मंच मिलने भी की जरूरत है।