इसमें बताया कि एमबीएस अस्पताल व मेडिकल कॉलेज में चिकित्सकों की लापरवाही बढ़ती जा रही है। अस्पताल प्रशासन, अस्पताल की व्यवस्थाओं एवं गंदगी की परेशानी को गंभीरता से नहीं लेता। इसी कारण हाल ही में अस्पताल के आईसीयू में भर्ती महिला मरीज की आंख को चूहे ने कुतर दिया। किसी वार्ड में खतरनाक चूहों का आना और भर्ती मरीज को लहूलुहान कर जाना गंभीर चिंता का विषय है। अस्पताल प्रशासन की ओर से परिसर में साफ सफाई व फॉल सीलिंग को सही नहीं करवाया गया तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। इसका नुकसान आमजन को उठाना पड़ सकता है।
एमबीएस अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज में विद्युत व्यवस्था लचर है। ऑपरेशन के दौरान लाइट चली जाए तो मोबाइल टॉर्च की रोशनी में ऑपरेशन करना पड़ता है। इससे मरीज की जान का खतरा हो सकता है। यदि बिजली की व्यवस्था सही नहीं है तो अस्पताल प्रबंधन को इसकी जानकारी संबंधित अधिकारी को देनी चाहिए। डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ की लापरवाही भी कई मामलों में इन्ही अव्यवस्थओं का कारण बनी है। जिला प्रशासन एवं अस्पताल प्रबंधन की ओर से जन समस्याओं का जानकर उसका निदान करना चाहिए। लेकिन एमबीएस अस्पताल व मेडिकल कॉलेज कोटा में गंदगी का अंबार लगा है। न्यायालय ने मामले में अस्पताल अधीक्षक, मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं प्रभारी मेडिकल कॉलेज और जिला कलेक्टर को नोटिस जारी कर 27 मई तक जवाब तलब किया है
टूटी फॉल सीलिंग के कारण अस्पताल की दीवारों में नमी आ जाती है। इसे दुरुस्त नहीं कराया जाता है, इस कारण वार्डों में चूहों, कॉकरोच व मच्छरों आदि का सामना आमजन को करना पड़ रहा है। इन मूल समस्याओं में अस्पताल प्रशासन की लापरवाही कारण बन रही है। सरकार के सहयोग से अस्पताल प्रशासन को ऐसी स्थिति में टूटी फॉल सीलिंग को सही करना चाहिए। अस्पताल के किसी भी वार्ड में पानी जमा न हो एवं सफाई होनी चाहिए ताकि अव्यवस्था को रोका जा सके। अस्पताल परिसर के वार्डोँ के दरवाजे-खिड़कियों के कांच टूटे हुए हैं। अस्पताल के टॉयलेट की स्थिति ऐसी है कि वहां टूंटियों से पानी टपकता है और उसी पानीसे पोछा आदि लगता है। जिससे गन्दगी होने और कीटाणु से संक्रमण का खतरा बना रहता है। अस्पताल में जगह-जगह फर्श उखड़ा हुआ है। पीने के पानी की व्यवस्था ठीक नहीं है। पानी की टंकियों में गंदगी बनी रहती है। अस्पताल में लाइटिंग की फिटिंग भी सही नहीं है। हमेशा शॉर्ट सर्किट होने से संभावना बनी रहती है। एमबीएस अस्पताल मेडिकल कॉलेज में अवस्थाओं के लेकर कई बार शिकायतें की गई , लेकिन असपताल प्रशासन, एमबीएस अधीक्षक व सरकार की ओर से अव्यवस्थाओं को लेकर कोई ठोक कदम नहीं उठाए गए।
निजी अस्पतालों की ओर से स्वास्थ्य के क्षेत्र में मनमाने रूप से मोटी फीस व खर्चे वसूले जा रहे हैं। जिस कारण गरीब व मध्यम परिवार के लोग उसका खर्चा उठाने में असमर्थ है। इस कारण आमजन सरकारी अस्पतालों में अपना इलाज करवाना सुरक्षित समझते हैं, लेकिन यहां भी आमजन को अपनी जान जोखिम में डालना पड़ता है। सरकार को आमजन की भावना व उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिए अस्पतालों की अवस्थाओं को सुचारू रूप से व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। जिससे जान बच सके व दुर्घटनाओं को रोका जा सके तथा आमजन का विश्वास बना रहे। न्यायालय ने मामले में सुनवाई करते हुए अस्पताल अधीक्षक, मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं प्रभारी मेडिकल कॉलेज और जिला कलेक्टर को नोटिस जारी कर 27 मई तक जवाब तलब किया है