
कोटा .
हम मुकुंदरा हिल्स के बारे में तो जानते हैं, देखा भी है लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि टाइगर रिजर्व का नाम किसके नाम पर रखा गया और किसने रखा। कैसे यह अभ्यारण्य मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के रूप में जाना जाने लगा। आइए हम बताते हैं कैसे और कब अभ्यारणय का नामांकरण हुआ।
कोटा रियासत के पूर्व शासक महाराव मुकुन्द ने दरा के पहाड़ी वन क्षेत्र को शिकारगाह के रूप में विकसित किया था। चंबल नदी के निकट सेल्जर व कोलीपुरा से दरा होते हुए कालीसिंध तक फैली हुई समांतर पहाडिय़ों का नामकरण राव मुकुन्द के नाम पर मुकुन्दरा हिल्स रखा गया। इन्हीं मुकुन्दरा हिल्स पहाडिय़ों के नाम पर इस टाइगर रिजर्व का नाम फाइनली रखा गया।
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सालवान ने शुरू किया था सफर
मुकुन्दरा नेशनल पार्क व टागइर रिजर्व बनाने में भारतीय वन सेवा के अधिकारी (से.नि.) विजय कुमार सलवान आधार बने। दरा अभयारण्य को मुकुंदरा टाइगर रिजर्व बनाने तक का सफर 1988 में तत्कालीन उप वन संरक्षक वन्यजीव वीके सलवान (अब सेवानिवृत्त) ने शुरू किया था। दरा अभयारण्य रियासतकाल में घना जंगल था और जैव विविधता से आबाद रहा है।
इसे जवाहर सागर से जोड़ कर विस्तृत राष्ट्रीय उद्यान बनाने की अवधारणा सलवान की थी। उनके कार्यकाल में इसका प्रारूप तैयार किया गया तथा राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा गया। उन्होंने जयपुर तथा दिल्ली में विभाग के उच्चाधिकारियों के समक्ष प्रजेंटेशन दिया। वन्यजीव बोर्ड को सहमत किया। सलवान गत दिनों से बीमार हैं और दिल्ली में एक अस्पताल में भर्ती हैं।
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अलग ही नजारा है मुकुंदरा का
रिजर्व का नजारा बरसात में अलग ही होता है। यहां शुष्क, पतझड़ी वन, पहाडिय़ां, नदी, घाटियों के बीच तेंदू, पलाश, बरगद, पीपल, महुआ, बेल, अमलताश, जामुन, नीम, इमली, अर्जुन, कदम, सेमल और आंवले के वृक्ष हैं।
दुर्लभ जन्तुओं की शरणस्थली
घाटियों के बीच चम्बल नदी किनारे बघेरे, भालू, भेडिय़ा, चीतल, सांभर, चिंकारा, नीलगाय, काले हरिन, दुर्लभ स्याहगोह, निशाचर सिविट केट और रेटल जैसे दुर्लभ प्राणी भी यहां हैं। अधिकारियों के अनुसार यहां 800 से 1000 चीतल, 50 से 60 भालू, 60 से 70 पैंथर व 60 से 70 सांभर हैं।
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आकर्षक शिकारमाले और देवालय भी
रिजर्व में 12वीं शताब्दी का गागरोन का किला, 17वीं शताब्दी का अबली मीणी का महल, 8वीं-9वीं शताब्दी का बाडोली मंदिर समूह, भैंसरोडगढ़ फोर्ट, 19वीं शताब्दी का रावठा महल, शिकारगाह समेत कई ऐतिहासिक व रियासतकालीन इमारतें, गेपरनाथ, गरडिय़ा महादेव भी हैं, जिनसे कला संस्कृति व आस्था प्रकट होती है।
पक्षियों का कलरव
करीब 225 तरह के पक्षियों की प्रजातियां यहां हैं। इनमें अति दुर्लभ सफेद पीठ वाले व लम्बी चोंच वाले गिद्ध, क्रेस्टेड सरपेंट, ईगल, शॉट टोड ईगल, सारस क्रेन, पैराडाइज प्लाई केचर, स्टोक बिल किंगफिशर, करर्ड स्कोप्स आउल, मोर समेत पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां मन मोहने को पर्याप्त हैं।
शहरवासियों ने जताई खुशी
वन्य जीव प्रेमियों एवं विभिन्न संगठनों से जुड़े लोगों ने मुकन्दरा में टाइगर छोड़े जाने पर खुशी जाहिर करते हुए हाड़ौती के इतिहास में इसे स्वर्णिम पल बताया है।
Published on:
04 Apr 2018 01:02 pm
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