
समय के साथ मिट्टी से मेट तक पहुंचा ये लोकप्रिय देशी खेल
कोटा. एक समय था जब खिलाड़ी मिट्टी से सने कबड्डी-कबड्डी करते मैदान में जोर आजमाइश करते थे। समय बदला तो आधुनिकता की दौड़ में पारम्परिक खेल भी हाईटैक हो गए। जी हां! हम बात कर रहे हैं देश के चर्चित और पारम्परिक खेल कबड्डी की। खिलाड़ी अपनी माटी की सौंधी खुशबू के बीच पल बढ़कर आगे बढ़े। आज कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा चुके हैं। यह सब संभव हुआ प्रो-कबड्डी लीग शुरू होने से। अब मिट्टी से खेल मेट तक जा पहुंचा। मेट पर आने के बाद विदेश में भी कबड्डी को पसंद करने लगे हैं। कोटा विश्वविद्यालय की ओर से खेल संकुल परिसर में चल रही अखिल भारतीय पश्चिम क्षेत्र अंतर विश्वविद्यालय कबड्डी (पुरुष) प्रतियोगिता में कई राष्ट्रीय खिलाड़ी व कोच भाग लेने पहुंचे हैं। उन्होंने कबड्डी खेल में आए बदलाव को लेकर पत्रिका से बातचीत की।
समय के साथ नियम भी बदले
प्रो-कबड्डी की शुरुआत से ही इस खेल के नियम भी बदले हैं। पहले खिलाड़ी कबड्डी-कबड्डी बोलकर खेलते थे, लेकिन अब कुछ नहीं बोलना पड़ता। एक खिलाड़ी को 30 सैकण्ड का समय दिया जाता है। उन्हें संसाधन भी दिए।
पहले कबड्डी के प्रति लोगों का रुझान नहीं था। उसे हीन भावना से देखा जाता था। ट्रेनों में खिलाडिय़ों को रिर्जवेशन तक नहीं मिलता था, लेकिन बदले दौर में प्रो-कबड्डी लीग से लोगों का रुझान बढ़ा है।
मोहम्मद आजम खान, रैफरी
गांव में छोटे थे, तब मिट्टी में ही खेलते थे। एक शिक्षक ने मेरे टैलेंट को पहचाना और एकेडमी में दाखिला करवा दिया। राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मैं खेल चुका हूं। मेरा मानना है कि मिट्टी की जगह नेट पर फिटनेस व दमखम ज्यादा लगता है।
प्रतीक पाटिल, शिवाजी विवि कोल्हापुर
पहले खो-खो खेलते थे, लेकिन एक बार कबड्डी में भाग्य आजमाया तो शिक्षक ने कबड्डी खेलने के लिए प्रेरित किया। उसके बाद आगे बढ़ते गए। छह बार राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुका हूं।
सौरभ पाटिल, शिवाजी विवि, कोल्हापुर
Published on:
21 Nov 2019 06:08 pm
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