
file photo
रामगंजमंडी. कोटा स्टोन की खदानों में लड्डू, जलेबी, भूंगड़ा सुनने में आमजन को चाहे अजीब लगे, लेकिन यह कटुसत्य है कि खदानों से निकलने वाले पत्थरों के नामी थरों का नाम खाने पीने की चीजों के अलावा कई ऐसे नामों से जुड़े है जिससे उनकी पहचान होती है। पत्थर की तासिर के हिसाब से कारीगरों ने इन पत्थरों के थरों के नाम रखे है जो करीब सात दशक से उन्ही नामों से प्रचलित है।लाइम स्टोन की खदानों में वर्तमान में 237 थरों का पत्थर नकली से लेकर चौथी सेक तक निकाला जाता है, जिसमे तीन फाड़ी व झगदा शामिल नहीं है।
खदानों में जब आधुनिकरण की शुरूआत नहीं हुई थी तब झगदे से लेकर तीन फाड़ी तक का पत्थर तोड़कर फैंक दिया जाता था। चैल्या थर से पत्थर काटने की शुरूआत होती थी। मोटे पत्थर के कई थरों को तोड़कर फैंका जाता था जिसमे मूंदड भी शामिल रहती थी। खदानों में जब मेनुअल पद्धति बंद हुई और आधुनिककरण का दौर चला तो टूटने वाले पत्थर को बनाने का काम चालू हो गया। इस परिपाटी ने लाइम स्टोन के उत्पादन में बेहताशा वृद्धि की। लाइम स्टोन खदानों में 1967 से कारीगर के बतौर काम की शुरूआत करने वाले कैलाशचंद कुमावत ने बताया कि पुशिया नामक जिस थर में अभी चौकडिय़ा कटती है उस थर को पहले तोड़ दिया जाता था।पत्थरों के थरों के नाम कारीगरों ने रखे कोटा स्टोन की खदानों में निकलने वाले कई पत्थर के थरों के नाम पत्थर की तासिर को देखकर उस समय खदानों में कार्य करने वाले श्रमिकों ने रखे थे उसी नाम से अभी ऐसे पत्थर के थरों की पहचान होती है।
थरों के नाम से जानते
कैलाशचंद कुमावत ने बताया कि कारीगरी से जब वह ठेकेदार बने तब भी पत्थरों को उसी थरों के नाम से जाना जाता था। खदान से निकलने वाले पत्थरों के नाम खदान में काम करने वाले कारीगरों ने पत्थर की खासीयत को देखकर रखे थे। खदान में जिस थर को जलेबी के नाम से जाना जाता है उस पत्थर के दोनों हिस्से रस भरे प्लेन होते है इसी कारण उसको जलेबी का नाम दिया गया। सेवडिय़ा थर का पत्थर कड़क सेव की तरह होता है। भूगड़ा थर के पत्थर को ज्यादा देरी तक बिना काटे धूप में रखने पर उसके फूटने का डर रहता है। लड्डू थर का पत्थर बिना फाड़े का होता है ज्यादा देर तक धूप खाने पर लड्डू की तरह उसके बिखरने का डर रहता है। उलेटा थर को पलटकर काटा जाता है।
दोनों तरफ ग्रीन लहर
लिलोती थर का पत्थर ग्रीन कलर का होता है, जिसके दोनों तरफ लहर आती है। इसी कारण उसे लीलोती नाम से जाना जाता है। हाथी पगा नामक थर हाथी के पैर की तरह होता है इसी कारण उसे यह नाम दिया गया।
कैसे-कैसे थर
कोटा स्टोन की खदानों में चैल्या से चौथी सैक तक निकलने वाले पत्थरों के थरों में अधिकांश के नाम प्रचलित है। पत्थर के जानकर दूर से देखकर उसकी पहचान कर लेते है। किस थर में हाईपोलिश होगी कौनसा पत्थर एक कलर का होगा। यह पत्थर के थर देखकर पहचान होती है। नामीधारों के पत्थर इसी कारण महंगी दरों पर बिकते है। खदानों में निकलने वाले थरों में जोलड़ी, जोलड़ी का पापड़ा, तीन फाड़ा, सात फाड़ा, मूंदण, चरचडिय़ा चारफाड़ा, घट्टी टांचा, अंधी, कूकड़ी, अंधी का तीन फाड़ा, गिरी का चारफाडा, नकटा, लगेदा, रेण्डी, केण्डा, केण्डा तीन फाडा, पांच फाड़ा,सुपडिय़ा, काल्याचार फाड़ा, काली, पिलिया, रैचया, मचादिया, खरा कट्टा, गोदडिय़ा, गडंगा, लखेरी, रात्या, तीन लेवटी, धोल्या चार फाड़ा, तीन फाड़ा,पटाखा धडऱ्ी, दूधिया जैसे कई थर शामिल है।
नकली व बिचली के नाम ज्यादा
मेनुअल तरीके से जब खदानों में उत्पादन होता था उस समय झगदे व चौथी सैक के पत्थर की कटाई नहीं होती थी। नकली के कुछ थरों के अलावा बिचली का पत्थर ज्यादा तराशा जाता था। इसी कारण नकली व बिचली केथरों के नाम पड़े। चौथी सैक के पत्थर को नाम नहीं देने से वह एक से बारह नंबर तक पहचाना जाता है। झगदे पत्थर के निकलने वाले थरों के नाम इसी कारण नहीं पड़े।
Published on:
05 Apr 2021 06:17 pm
बड़ी खबरें
View Allकोटा
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
